काव्य/कविता/शायरी:”नई किरण”

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माँ आंचल से प्राची में अंशुमाली जाग रहा,
अम्बर केसरिया परिधान ओढ इठला रहा!
व्योम ललाट सिन्दूर टीका दमक बिखेर रहा,
उगता अस्त प्रभाकर एक समान चमक रहा!
सुख दुःख जीवन में परछाई द्योतित हो रहा,
धरा गगन क्षितिज में मोन आलिंगन हो रहा!
मंजिल पाने की ठानी रुकता नही ठोकरों से,
अश्म शिलाएं चीरी छैनी हथोड़ो की मार से!
उगते सूरज में छिपी हुई नई आशा सौगात ,
चढ़ता रश्मि-रथी हरपल सिखाता नई बात!
सूरज किरणे तम को हरा नई सुबह लाई है,
तुम चल पड़ो मंजिल की ओर पैगाम लाई हैं!
बाधाओं को देखकर निराश कभी न होना है,
घोर अंधेरों का सीना चीर रोशनी जगमगाती हैं!
सूरज चमकता जोश से जब सृष्टि मुस्कुराती हैं ,
बहें बयार नदी उतंग लहरें अटखेलियां करती हैं!
श्रम क्लांत सोये गहरी नींद पाने को राहत,
अगली सुबह की सुनहरी किरण देती आहट!
समय के साथ चलो उमंग नई खूब मन रखो,
कदम ज़मीं पे आसमाँ छूने की कूबत रखो!
सूरज जैसे जलकर दूसरों को भी चमकाओ,
बाधाओं में असंभव संभव करके दिखाओ।