जिसके जो भाग्य,कर्म में लिखा होता हैं वह उसे भोगना ही पड़ेगा_मुनि सुश्रुत सागर महाराज 

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केकड़ी 0जून(केकड़ी पत्रिका न्यूज पोर्टल)  दिगम्बर जैन मुनि सुश्रुत सागर महाराज ने कहा कि जिनेन्द्र भगवान के अभिषेक करने वाला जल सामान्य जल नहीं है।सम्यकदर्शन ,सम्यकज्ञान, सम्यकचारित्र रत्नत्रय से पवित्र ,वीतरागता के कारण एवं मंत्रों के संयोग से वह जल पवित्र गंधोदक बन जाता है। जिनेन्द्र भगवान का गंधोदक बड़ी ही श्रद्धा के साथ मस्तकादि शरीर के प्रमुख उच्च स्थानो पर लगाना चाहिए।

मुनि सुश्रुत सागर महाराज शहर के देवगांव गेट के पास विद्यासागर मार्ग पर स्थित चंद्रप्रभु चैत्यालय में अष्टान्हिका महापर्व पर आयोजित सिद्धचक महामंडल विधान के दौरान श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे उन्होंने कहा कि जिस प्रकार चंदन के सम्पर्क में आने वाली वस्तु कुछ समय के लिए सुगन्धित हो जाती है,उसी प्रकार जिनेन्द्र प्रभु के शरीर से स्पर्शित जल पवित्रता को प्राप्त हो जाता है।और यह भक्ति एवं श्रद्धापूर्वक लगाने पर अनेक कष्टों ,दुःखो से छुटकारा दिलाता है।

नरेश जैन प्रचार संयोजक दिगम्बर जैन समाज, केकड़ी  ने बताया कि मुनि सुश्रुत सागर महाराज ने पूर्व से चल रही श्रीपाल मैना सुंदरी की कथा को बड़े ही सरल तरीक़े से समझाया। उन्होंने कहा कि जिसके जो भाग्य ,कर्म में लिखा होता हैं वह उसे भोगना ही पड़ेगा। हमारे द्वारा किए गए पुरूषार्थ सेही भाग्य एवं कर्म का निर्माण होता है।संसार में पांचों इंद्रियों के विषय भोग शरीर में होने वाली उस खाज के समान खुजलाने पर भोगने में खाज पर खुजली करने पर अच्छा लगता हूं लेकिन पश्चात दुखदायी होता हैं। कुत्ता हड्डी चूसता है जिसके कारण उसके जबड़े से मुंह से निकलने वाले खून को वह हड्डी है निकलता समझकर चूसता रहता है, प्रसन्न होता है और अंत में अपना ही नुकसान करवा लेता है। उसी प्रकार संसारी जीव संसार के विषय भोगों में सुख मान रहा है। और दुःखी हो रहा है।

उन्होंने कहा कि मन की चंचलता को सम्भाल कर रखना चाहिए ताकि हम अपने आत्मा के गुणों की रक्षा कर सके।प्रवचन से पहले पायल पाण्डया द्वारा मंगलाचरण किया गया।

सिद्धचक महामंडल विधान के दौरान सिद्ध भगवान को चढाये 128 श्रीफल अर्ध :मुनि सुश्रुत सागर महाराज एवं क्षुल्लक सुकल्प सागर महाराज के सानिध्य में चल रहे सिद्धचक महामंडल विधान के दौरान पांचवीं पूजन में सिद्ध भगवान को एक सौ अठ्ठाईस गुणों की पूजा आराधना करते हुए मंडल विधान पर श्रीफल अर्ध समर्पित किये। सिद्ध भगवान सभी कर्मों से रहित अवस्था को प्राप्त कर अनंत चतुष्टय रुप में सिद्ध शिला पर विराजित हैं। सिद्ध भगवान एक सौ आठ तरह के पाप क्रोध, मान, माया और लोभ, कृत कारित और अनुमोदना, अनंतानुबंधी आदि शरीर रहित शुद्ध आत्मा सभी विभाव भावों को नष्ट कर चुके हैं।जो सिद्ध भगवान ने गुणों को धारण कर प्रकट किये है ऐसे ही गुण हमें भी प्रकट होवे ,इस प्रकार की भावना से सिद्धचक महामंडल विधान के दौरान श्रद्धालुओं ने शुभ भावों का संचालन करते हुए सिद्ध अवस्था को प्राप्त करने की मंगल भावना लिये पूजन आराधना की।

किया अभिषेक :सिद्धचक महामंडल विधान से पहले भगवान आदिनाथ का मुख्य इंद्रो सहित सभी इंद्र बनें श्रद्धालुओं ने अभिषेक किया। इसी दौरान भगवान आदिनाथ की शांतिधारा की गई । मुनि सुश्रुत सागर महाराज के मुखारविंद से उच्चारित शांतिधारा के मंत्रों के साथ बोली से चयनित प्रथम शांतिधारा करने का सौभाग्य प्रमोद कुमार प्रेमचंद बाकलीवाल परिवार एवं दूसरी तरफ से शांतिधारा करने का सौभाग्य प्रकाश चंद कैलाश चंद बज परिवार को मिला।

शांतिधारा पश्चात नित्य नियम की पूजा के साथ कई मांगलिक कार्य सम्पन्न किये। : जिनेन्द्र भगवान और सिद्धचक महामंडल विधान की महाआरती करने का सौभाग्य चांदमल शीतल कुमार जैन पारा वाले को प्राप्त हुआ। निवास स्थान लाभचंद मार्केट से चंद्रप्रभु चैत्यालय गाजे बाजे के साथ जुलुस निकाला गया।महाआरती को विशेष तरह से सजाया गया। चंद्रप्रभु चैत्यालय पहुंचकर प्नारभु भक्ति में नाचते हुए सिद्धचक महामंडल विधान और पंचपरमेष्ठी की आरती की गई। आरती पश्चात संगीतकार पुष्पेन्द्र जैन ने भक्ति संगीत के दौरान भजनों की प्रस्तुतियां दी। पंडित देवेन्द्र जैन ने शास्त्र प्रवचन किया।

सिद्धचक महामंडल विधान में मुख्य पात्र की भूमिका में इंद्र इंद्राणी बनने का सौभाग्य:  अरिहंत कुमार रितू बज – सौधर्म इंद्र सची इंद्राणी, अर्पित कुमार प्राची पाटनी – श्री पाल मैना सुंदरी, मनीष कुमार माधुरी टोंग्या – यज्ञनायक , महावीर प्रसाद नीता टोंग्या – धनकुबेर इंद्र, चेतन कुमार कांता टोंग्या – ईशान इंद्र, विनोद कुमार सुनिता पाटनी -सनत कुमार इंद्र, चेतन कुमार शकुन्तला रांवका – महेन्द्र इंद्र।

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