काव्य/शायरी/कविता: अन्तर्राष्ट्रीय चाय दिवस

अरि कहाँ हो रात नींद दिन का चैन मनमीत,
आवो भोर की चाय तेरे होंठो से लगा पीते है!
तुम पहले जैसी नही रही चाय ठंडी हो रही,
एक चुस्की लो तेरे लबों की मिठास नही आ रहीवो
पल पल नही जिस पल तेरा एहसास ना हो,
वो चाय कैसी जिसमें तेरे होठों की मिठास ना हो!
हमारे बाद महफ़िल में सिर्फ अफसाने होंगे ,
बहारें ढूंढेगी हमें हम न जाने किस हाल होंगे!
सुबह की चाय से भी वो ताजगी नहीं आती है,
जो भोर में तेरी एक झलक पा जाने में आती है!
तेरे हाथों बनी चाय गर्म एहसासों सा शुकूँ है,
सर्दी में तुम्हारी जुदाई बर्दाश्त अब नही होती!
मिलो कभी चाय पर फिर कोई किस्से बुनेंगे,
तुम खामोश ही रहना हम अँखियों से पियेंगे !
कुछ इस तरह से शक्कर को बचा लिया करो,
चाय जब पीओ हमें जहन में बिठा लिया करो!
तेरी यादों का नशा है मुझे अफीम की तरह,
मुझ में मिश्रित हो चाय में शक्कर की तरह।