भारत की आध्यात्मिक शक्ति से प्रभावित होकर न्यूजीलैंड निवासी व्यक्ति संत बन कर रहे है यज्ञ में तपस्या,

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मेवदाकला 24 अप्रैल (केकड़ी पत्रिका) जब सात समंदर पार से कोई आत्मा भारत की आध्यात्मिक धरा पर खिंची चली आए और यहां की धूल में अपने जीवन का सार ढूंढे तो समझिए वह केवल एक यात्रा नहीं एक आत्मिक जागरण है। कुछ ऐसा ही हुआ न्यूजीलैंड निवासी ज़कारिया रॉन मिलर के साथ जो आज संत कबीर दास महाराज के रूप में केकड़ी के मेवदाकला कॉलोनी की पावन भूमि पर ध्यान-साधना में लीन हैं।

सफेद धोती पहने गले में तुलसी की माला और शांत मुद्रा में ध्यानस्थ यह संत मानो किसी प्राचीन ऋषि की जीवंत झलक हों। उनके मुख पर स्थिरता और नेत्रों में समर्पण की ज्योति है। जिसने श्रद्धालुओं का मन सहज ही अपनी ओर खींच लिया। कबीर दास महाराज पहली बार नवंबर 2024 में भारत आए थे। प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान उन्होंने 22 दिन बिताए जहां संतों के संग भक्ति के रंग और वैदिक संस्कृति से उनका पहला साक्षात्कार हुआ।

वहीं पर पहलवान बाबा महाराज ने उन्हें कबीर दास नाम दिया। कुंभ से लौटते वक्त उनका मन साधना की ओर स्थिर हो गया और तभी से उन्होंने सनातन धर्म को आत्मसात करने का निश्चय किया। इसके बाद वे अर्जुन दास महाराज के संपर्क में आए जिन्होंने उन्हें राजस्थान के श्रीरामधाम संत सेवा आश्रम लाकर महंत रघुवीर दास महाराज से मिलवाया। आश्रम में रहकर कबीर दास ने ध्यान, भक्ति और सेवा के गूढ़ रहस्य सीखे। वे कहते हैं कि यहां उन्हें सच्ची शांति और आत्मा का सुकून मिला है।

इन दिनों श्रीरामधाम आश्रम में नवकुण्डीय गौपुष्टि महायज्ञ एवं मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव चल रहा है जिसमें 19 अप्रैल से लगातार धार्मिक आयोजन हो रहे हैं। वहीं आश्रम में चल रहे यज्ञ में कबीर दास ने हवन में आहुति देकर श्रद्धालुओं का ध्यान आकर्षित किया। यज्ञाचार्य राधा शरण शर्मा के नेतृत्व में नित्यर्चन, हवन, मूर्ति अभिषेक, पुष्पांजलि और आरती जैसे धार्मिक अनुष्ठान संपन्न हुए।

महंत रघुवीर दास महाराज ने बताया कि इस मिनी कुंभ में देश-विदेश के सनातनी धर्म प्रेमी यो का मेला है जिसमें कई महात्माओं ने भाग लेकर भक्ति का मार्ग प्रतस्त किया है। महायज्ञ की पूर्णाहुति 25 अप्रैल को होगी जिसमें मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा और संतों के आशीर्वचन के साथ भव्य समापन होगा।

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