काव्य/शायरी/कविता : पहलगाम नर संहार !

लुटे सब हारसिंगार घिनोने आतंकी कहर से, कफ़न लपेट लायी सुहाग जोड़ा कश्मीर से!
आंखों के आगे मिटा सुहाग विलाप कर रही, गोली मारने से पहले दरिंदो से वजह पूछ रही !
सुहाग मेहन्दी नही छूटी सिन्दूर उजड़ गया , कदम एक बढ़ाया खून का सैलाब बह गया!
कौन लाएगा मेरे प्राणेश्वर के उड़े प्राणों को , छीन लिया नर पिशाच ने मेरे अरमानों को !
दरिंदो ने छलनी किया सीना माथे के सिंदूर का , रक्त रंजित कश्मीर धरती दर्जा था स्वर्ग का !
मुझे मार दिया होता नहीं बिलखती फूट फूट, जब तक जीवित खून आंसू पिऊंगी घूँट घूँट!
सुहाग मेहन्दी रची थी अभी तो मेरे हाथों में , सात जन्मों के सपनों को छीना पहलगाम में!
खुशियाँ उतरी न मेरे आंगन में अर्थी उठ गई, ताउम्र सुहाग की सांसे कफ़न में सिमट गई !
चाहत उमंग रही अधूरी सांसे तन छोड़ गई , तराने अश्क बने खुशी मातम में बदल गई!
खुशियां हिलोर रही शबाब अभी परवान था , धरा मखमली गगन तारों से पूरा भरा न था!
निर्दयी बर्बरता की ऐसी बहसी गोली चली, लूट गयी कश्मीरी वादियों में खिली कली!
सांसे थमी रह गयी गोलियों की बौछार हुई , बन्दूकों का कहर सपने संजोये बिखर गये!
सपन सलोने पल में जलकर खाक हो गए, चाहत न पूरी हुई सजन हाथ से निकल गए!
जिस वृक्ष की गहरी छांव मेंअडिग खड़ी थी , बिखरे अरमान जिंदगी पहाड़ सी खड़ी थी !
पिता साया सिर से उठा बच्चे हुए अनाथ, किन शब्दों में तुम्हें तर्पण करूँ प्राण नाथ!
सुहाग चूड़ियां टूटी किस्मत मेरी रूठ गई, प्रभु चरणों में वास दे रूह तन छोड़ गई!
गोविन्द नारायण शर्मा