काव्य/शायरी -“तेरे नयना”

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धवल चाँदनी में तारों से तुम्हारे नयन,
सीप मौक्तिक से सुनहरे तुम्हारे नयन !
नदिया में किलोल करती मीन से नयन,
मेघ में दामिनी से चमकते तुम्हारे नयन!
गहरी झील कश्ती से तेरते तुम्हारे नयन ,
हंस जोड़े से अटखेलियां करे तुम्हारे नयन!
मेरे नयनों से दो चार हुए जब तेरे नयन,
मुरीद हुआ नशेमन नशीले तुम्हारे नयन!
ह्रदय स्पंदित होता देख तुम्हारे कंज नयन,
प्रीत की रीत को उदीप्त करे तुम्हारे नयन!
कजरे की कोरक लगे तेरे कजरारे नयन,
शरमाई श्याम घटा कातिल तुम्हारे नयन!
होंठ सील गये बतियाते चकोरी से नयन,
चिलमन की ओट मोन इशारे तुम्हारे नयन!
स्वर्ण कटोरे में धरे हुए दो उज्ज्वल नयन,
कमल सरोवर में हिलोरे मारे तुम्हारे नयन!
अधजल गगरी से छलकते दोऊ तेरे नयन ,
अनमोल प्रेम रस उड़ेलते राधे तुम्हारे नयन!
गोविन्द नारायण शर्मा