14 June 2025

महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह आयोजित- परंपरा के साथ आधुनिक ज्ञान की दृष्टि से ही बनेगा भारत विश्व गुरु-राज्यपाल श्री बागडे

0
Screenshot_2025-03-29-21-09-58-62_40deb401b9ffe8e1df2f1cc5ba480b12

जयपुर,29 मार्च(केकड़ी पत्रिका) राज्यपाल श्री हरिभाऊ बागडे ने  कहा कि परंपरा के साथ आधुनिक ज्ञान की दृष्टि से ही भारत विश्व गुरु बनेगा। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में कुलपति को कुलगुरु कहना प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति की पुनस्थापना की दिशा में एक कदम है। प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति परिपूर्ण थी। उन्होंने नई शिक्षा पद्धति को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि यह विद्यार्थियों के विकास से जुड़ी है।

राज्यपाल श्री बागडे शनिवार को महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के 12वें दीक्षांत समारोह में संबोधित कर रहे थे।  इसमें वर्ष 2023 एवं 2024 के स्वर्ण पदकों का वितरण किया गया। साथ ही विद्या वाचस्पति उपाधि धारकों को भी उपाधियां वितरित हुई। 

राज्यपाल ने कहा कि भारत की समृद्ध वैज्ञानिक परंपरा रही है। उन्होंने कहा कि महर्षि भारद्वाज के द्वारा वर्णित विमान विज्ञान के आधार पर 1895 में श्री शिवकर बापूजी तलपे ने हमारे यहां विमान उड़ाया था। उन्होंने श्री चिरंजिलाल वर्मा से संस्कृत ग्रंथों की शिक्षा ग्रहण की थी। इसके बाद ही 1903 में राइट बंधुओं ने विमान बनाया। इसी प्रकार गुरुत्वाकर्षण के बारे में न्यूटन से बहुत ही पहले कॉपरनिकस और उससे भी पहले भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत दिया था। 

उन्होंने कहा कि विनोबा भावे ने आजादी के तत्काल पश्चात् शिक्षा पद्धति में बदलाव की आवश्यकता बताई थी। लॉर्ड मैकाले ने भारत को गुलाम बनाने के लिए जो शिक्षा पद्धति चलाई वह अभी तक चल रही है। नई शिक्षा पद्धति भारत के समाज, नागरिक और संस्कृति के अनुसार है। नई शिक्षा नीति से निकले हुए विद्यार्थियों के माध्यम से समाज को आगामी कुछ समय में ही परिणाम मिलने लगेंगे। 

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में इस प्रकार के पाठ्यक्रम तैयार होने चाहिए जिससे समाज में रोजगार का सृजन हो सके। ज्ञान की विभिन्न शाखाओं का अध्ययन कर युवा उद्यमी बनने चाहिए। इससे देश के विकास में उनका योगदान सुनिश्चित होगा। उन्होंने कहा कि शिक्षा मनुष्य का निर्माण करने वाली हो। महर्षि दयानंद सरस्वती मानव मूल्यों के साक्षात उदाहरण रहे है।

उन्होंने कहा कि देश के 400 कुलगुरुओं तथा 1000 से अधिक शिक्षाविदों ने दो वर्षों तक गहन चर्चा के उपरांत नई नीति को बनाया है। यह शिक्षा पद्धति विद्यार्थियों की बौद्धिक क्षमता में वृद्धि करने में कारगर सिद्ध होगी। उन्होंने कहा कि अर्जित विद्या का व्यवहारिक उपयोग समाज हित में और राष्ट्रहित में किया जाना चाहिए। शिक्षा एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। इसीलिए प्राध्यापकों और अध्यापकों को नई पुस्तकें पढ़ने के साथ ही नई विद्या भी प्राप्त करनी चाहिए। विद्यार्थी को भी पाठ्य पुस्तकों के अतिरिक्त अन्य पुस्तकें को भी पढ़ने में अपना समय देना चाहिए। इससे उनकी बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होगी। 

विधानसभा अध्यक्ष श्री वासुदेव देवनानी ने कहा कि दीक्षांत समारोह माता-पिता, परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति दायित्वों के स्मरण का दिन होता है। शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली एक प्रक्रिया है। आज के विज्ञान, प्रौद्योगिकी और डिजिटल युग में हमें विश्व के साथ-साथ चलना होगा। बढ़ती तकनीक में आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने समाज को बहुत प्रभावित किया है। सोशल मीडिया और सार्वजनिक जीवन पर इसके दुष्परिणाम देखे जा सकते हैं। नई पीढ़ी को इन दुष्प्रभावों से बचाए जाने की आवश्यकता है। 

उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति ने चार आश्रमों और चार पुरुषार्थों के माध्यम से शिक्षा व्यवस्था दी है। नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला के शिक्षा केंद्रों, मैत्रेई, गार्गी, अपाला, घोषा, विश्ववारा जैसी विदुषियों और वराह मिहिर, आर्यभट्ट, चरक, सुश्रुत, आश्वघोष, चाणक्य एवं समर्थ गुरु रामदास जैसे शिक्षकों के कारण भारत विश्व गुरु रहा है। विद्यार्थियों को छत्रपति संभाजी महाराज और महाराणा सांगा जैसे पूर्वजों के पद चिह्नों का अनुकरण करना चाहिए। क्रूर आक्रांताओं को सम्मान देने वाले लोग इस भारत और भारत की संस्कृति के नहीं हो सकते हैं। 

उन्होंने कहा कि युवाओं में राष्ट्र के प्रति पूर्ण समर्पण और त्याग होना आवश्यक है। सबके मन में राष्ट्र प्रथम का स्थाई भाव होना चाहिए। स्वराज, स्वधर्म, स्वदेशी और स्वभाषा को साथ लेकर शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थी समाज की विकृतियों को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। शिक्षा के क्षेत्र में भारत अपना प्राचीन गौरव पुनः प्राप्त करने के लिए प्रयास कर रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने राजस्थान के विश्वविद्यालय के कुलपतियों को अब कुलगुरु के नाम से जाना जाएगा। यह उनके सम्मान में एक बहुत बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन होगा। नई शिक्षा नीति शिक्षा की सार्थकता और सदुपयोग के लिए महत्वपूर्ण होगी। अनुशासनात्मक, बहुविषयक और बहुआयामी दृष्टिकोण के द्वारा विद्यार्थियों में मूल्य, मान्यताएं और संवेदनाएं विकसित की जानी चाहिए। नई शिक्षा नीति में आधुनिक ज्ञान से जुड़े विषयों के महत्व को प्रतिपादित करने के साथ ही प्राचीन भारतीय संस्कृति, वैदिक ज्ञान और सनातन जीवन मूल्यों को भी महत्व दिया गया है। युवाओं को शिक्षा के क्षेत्र में पाश्चात्य नरेटिव से बचना होगा। महिला एवं बाल विकास मंत्री डॉ. मंजू बाघमार ने कहा कि दीक्षांत समारोह विद्यार्थी की जीवन यात्रा का महत्वपूर्ण पड़ाव होता है। विद्यार्थी जीवन में सीखे गए अनुशासन, विनम्रता और नैतिक मूल्यों से आदर्श नागरिक का निर्माण होता है।

कुलगुरु श्री कैलाश सोडाणी ने कहा कि भारत सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था है। नया भारत समस्याओं से टकराकर मिटाना जानता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed

You cannot copy content of this page