श्री नेमिनाथ जैन मंदिर में आयोजित सत्यार्थ बोध पावन वर्षा योग के अवसर पर आयोजित हुई धर्म सभा,अनुयायी मुनि अनुपम सागर महाराज के प्रवचन से हुए लाभान्वित
अनुयायी मुनि अनुपम सागर महाराज के प्रवचन से हुए लाभान्वित
केकड़ी 26 सितंबर (केकड़ी पत्रिका न्यूज) इंसान जिंदगी में दौड़ के पीछे दौड़ लगाकर होड़ लगाने में लग रहा है । जिसने जन्म लिया उसका मरण निश्चित है और किसी भी पल मौत का तूफान आ जाने पर मरणासन्न हो जाता है ।हम मौत का परिणाम जानते हुए भी मन की विशुद्धि नहीं रखते हुए आत्म कल्याण के प्रति भाव नहीं बना पा रहे हैं।
वस्तु पर गमनशील है ,कोई वस्तु स्थायी रूप से अपनी नहीं है,आंख खुलने पर सपने टूट जाते हैं और आंख बंद हो जाने पर अपने छूट जाते हैं, इसलिए आंख बंद हो उससे पहले ही सत्यार्थ का बोध कर लेना चाहिए ।विषय कसायों में लिप्तता के कारण इंद्रियभोगों के रसास्वादन के कारण मृत्यु के बोध का एहसास नहीं रहता है,मौत का तूफान ऐसा चक्र है कि सदियों से चला आ रहा है, इस चक्र को न तो कोई तोड़ पाया है और न हीं कोई समझ पाया है ।हम इस सत्य की पहचान नहीं कर पा रहे हैं ,मौत का तूफान एक अंतिम सत्य है ।जिंदगी एक गुब्बारा है इसे खिलौना नहीं समझे बल्कि खिलाड़ी बनकर खेलें ।
मौत का तूफान इंसान को मिट्टी बना देता है ओर मिट्टी में ही मिला देता है बोहरा कॉलोनी स्थित श्री नेमिनाथ जैन मंदिर में आयोजित सत्यार्थ बोध पावन वर्षा योग के अवसर पर आयोजित धर्म सभा में मुनि अनुपम सागर महाराज ने अपने प्रवचन के दौरान कहे । धर्म सभा में मुनी यतींद्र सागर महाराज ने कहा कि वर्तमान में भारतीय संस्कृति का ह्वास होता जा रहा है, अन्याय से कमाया हुआ धन कभी भी संकट में डाल सकता है,अपने धन का उपयोग मानव सेवा में करना सबसे बड़ा धर्म है, सहयोग करने वाले का अनादर करने पर अपनी प्रगति भी रुक जाती है।
समय परिवर्तनशील है,कभी आपको भी किसी के सहयोग की आवश्यकता पड़ सकती है,इसलिए प्राणी मात्र की रक्षा करने का भाव रखना चाहिए । प्रातःजिनाभिषेक,शांतिधारा जिनेंद्र अर्चना सहित धार्मिक कार्यक्रम मुनि ससंघ के सानिध्य में संपन्न हुए ।
आचार्य श्री के चित्र अनावरण, दीप प्रज्वलन ,मुनि ससंघ के पाद प्रक्षालन व शास्त्र भेंट का सौभाग्य विमल कुमार चेतन कुमार अभिषेक मोहित नीरज बंसल व वीरसेन हर्षित बंसल परिवार ने प्राप्त किया। धर्मसभा मे औरंगाबाद, बड़ोद ,सहारनपुर के भक्तों ने धर्म लाभ प्राप्त किया । मंगलाचरण चंद्रकला जैन ने और संचालन अशोक सिंघल ने किया ।