एक दूसरे शत्रु-मित्र से मन से क्षमा मांग एवं क्षमा करके मनाया जाना चाहिए क्षमावाणी पर्व – मुनि सुश्रुत सागर
केकड़ी 30 सितंबर (केकड़ी पत्रिका न्यूज़ पोर्टल) केकड़ी शहर में देवगांव गेट के पास विद्यासागर मार्ग पर स्थित चंद्रप्रभु चैत्यालय मे शनिवार को क्षमावाणी पर्व पर आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि सुश्रुत सागर महाराज ने कहा कि हमें अपने जीवन मे क्रोध का सर्वथा अभाव करके अपने शत्रु एवं सभी जीवों के प्रति हमारे भाव निर्मल रहे, यह अवश्य ही ध्यान रखना चाहिए।प्रतिशोध,बैर विरोध की भावना समाप्त कर अपने हृदय में क्षमाभाव धारण करने से ही इस क्षमापना दिवस और क्षमावाणी पर्व महोत्सव की सार्थकता प्रासंगित होगी। हम औपचारिक क्षमावाणी पर्व तो वर्षों से मनाते चले आ रहे हैं,आज हमें चाहिए कि हम सभी से मन खोलकर, अहंकार से रहित होकर, अंदर की समस्त गांठों को खोलकर,मन की द्वेषता को मिटाकर, बैर- विरोध, मनमुटाव पुरानी गलत बातों को भुलाकर मन से,प्रेम से,आंतरिक श्रद्धा,सज्जनता से क्षमा मांगे। सामने वाला हमें क्षमा करें, चाहे नहीं करें हमें तो अपना मन साफ रखना चाहिए। आज क्षमावाणी पर्व पर सबसे पहले उनसे हृदय से क्षमा मांगे जिनसे हमारी शत्रुता,कटुता, द्वेषता रही होवे। इससे सभी में पुनः संबंधों में मधुरता आयेगी,सभी एक दूसरे की आपस की गलतियों को सच्चे मन से, पवित्र भावों से क्षमा करें। मुनिराज ने कहा कि उत्तम क्षमा से उत्तम ब्रह्मचर्य तक दस धर्मो का उपदेश श्रवण करके जो आत्मशोधन हुआ, उसी के फलस्वरूप श्रद्धालु महिला- पुरूष किसी भी निमित्त परस्पर मे होने वाली मनो- मलिनता भूल रूपी शूल को दूर कर आपस मे क्षमा मांगनी चाहिए।क्षमा से व्यक्ति शुद्ध सरल सकारात्मक विचारों वाला,शिष्ट सुसंस्कारित विवेकशील व विनम्र बनता है।उसका यश चहुं ओर फैलता है।क्षमा शांति का मंत्र व अहिंसा का आधार स्तम्भ है। दूसरों से मन से क्षमा मांगकर- क्षमा कराके एवं उन्हें क्षमा करके अपने हृदय मे अपूर्व आनन्द का अनुभव एवं मन को प्रसन्नता मिलती है। क्षमा सभी उलझनों का समाधान है, वरदान है,जीवन का अनुसंधान है।
मुनिराज ने कहा कि जगत मे अनन्त जीव है, छोटे- बड़े है,ज्ञात – अज्ञात है। उन सभी जीवों से जाने अनजाने मे,आर्त व रूद्र परिणामों के कारण सताया हो,कष्ट दिया हो ,वे जीव हमें क्षमा करें एवं हमारे साथ ऐसा हुआ होवे तब उन सभी जीवों के प्रति अपने हृदय मे क्षमा भाव रखना चाहिए एवं क्षमा करना चाहिए। क्षमा प्रेम है,स्नेह है,नेह है। बुद्धि पूर्वक करूणा की निर्मल धारा से मैत्री भावों द्वारा हृदय से सभी को क्षमा करना तथा दूसरों से अपने लिए क्षमा करवाना ही क्षमावाणी पर्व है। मन, वचन, काय द्वारा भूतकाल में की गई होवे, वर्तमान में हो रही होवे, भविष्य में होने वाली होवे ऐसी सभी भूलों, गलतियों एवं विवादों को भूलाकर आत्मशुद्धि शांति एवं समतामय सरल जीवन जीने के कारणों को प्राप्त करना चाहिए।
दिगम्बर जैन समाज द्वारा क्षमावाणी पर्व देवगांव गेट के पास विद्यासागर मार्ग पर स्थितचंद्रप्रभु चैत्यालय (क्षमापना स्थल) मे जिनेन्द्र भगवान के कलशाभिषेक पश्चात महिला, पुरूष, वृद्ध, युवा, बच्चो ने परस्पर मे एक दूसरे से क्षमा मांगकर और परस्पर एक दूसरे को क्षमा करके क्षमावाणी पर्व मनाया। मन के भावों मे मैत्रीपूर्ण, विशालता,सहजता, सरलता को धारण कर साथ ही जगत के प्रत्येक जीवों से क्षमा मांगकर एवं सभी जीवों पर क्षमा भाव धारण करके अपनी आत्मा को पवित्र बनाया।
शहर के सभी दिगम्बर जैन मंदिरों मे दोपहर को जिनेन्द्र भगवान की पूजन पश्चात कलशाभिषेक किये गये। कलशाभिषेक को देखने श्रद्धालुओ का हुजूम उमड़ पड़ा।पश्चात जुलुस रूप मे ही सभी मंदिरों के कलशाभिषेक क्रमशः शांतिनाथ मंदिर (अजमेर रोड), ऋषभदेव जिनालय, नेमीनाथ मंदिर,आदिनाथ मंदिर,पार्श्वनाथ मंदिर, मुनिसुब्रतनाथ मंदिर, शांतिनाथ मंदिर (पुरानी केकड़ी) पश्चात जुलुस रूप मे देवगांव गेट स्थित चंद्रप्रभु चैत्यालय, क्षमापना स्थल पहुंच सम्पन्न हुआ। जुलुस चंद्रप्रभु चैत्यालय मे धर्म सभा के रूप मे परिवर्तित हो गया। चंद्रप्रभु चैत्यालय मे वर्षायोग के लिए विराजित मुनि सुश्रुत सागर महाराज एवं क्षुल्लक सुकल्प सागर महाराज का मंगल आशीर्वाद एवं पावन सानिध्य मे जिनेन्द्र प्रभु की पूजन सहित सभी मांगलिक क्रियाओ को करने के पश्चात् जिनेन्द्र भगवान का कलशाभिषेक किया गया कलशाभिषेक के तत्पश्चात् क्षमापना पर्व मनाया गया। उपस्थित सभी महिला पुरूषो, युवक युवतियों, बच्चे बच्चियों ने एक दूसरे से बड़े ही सौहार्द पूर्ण वातावरण मे,अति उत्साहित हर्षोल्लास पूर्वक अपने द्वारा पूर्व मे की गई सभी जानी- अनजानी गलतियों, भूलों के लिए क्षमा मांगी और उन सभी की गलतियों को क्षमा किया। श्री दिगम्बर जैन समाज एवं वर्षायोग समिति के प्रवक्ता नरेश जैन ने बताया कि प्रातः मुनि महाराज के प्रवचन से पहले चित्र अनावरण,दीप प्रज्ज्वलन एवं मुनि सुश्रुत सागर महाराज के पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य नितिन कुमार समकित कुमार पाटोदी परिवार को मिला।