वहम् एवं भ्रम के कारण ही अहम् का सृजन होता है – मुनि सुश्रुत सागर महाराज

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केकड़ी 20 सितंबर (केकड़ी पत्रिका न्यूज़ पोर्टल) दिगम्बर जैन मुनि सुश्रुत सागर महाराज ने पर्वाधिराज दशलक्षण महापर्व के अवसर पर आयोजित धर्मसभा मे प्रवचन करते हुए कहा कि जहां मान कषाय,धमण्ड खत्म होता है वहां मार्दव गुण प्रकट होता है।

मान,धमण्ड,अहंकार के कारण पूज्य के प्रति बहुमान नहीं होता।हृदय मे नम्रता,मृदुता,दयालुता, विनम्रता के भाव स्वीकार करना चाहिए। उत्तम क्षमा, मार्दव,आर्जव ये स्वभाव है, लेकिन अनादिकाल से आज तक इस संसारी आत्मा ने इन्हें पूर्ण रूपेण प्रकट नहीं किया।इन भावों को प्रकट करने के लिए शौच ,सत्य,संयम,तप, त्याग धर्म का पालन करना ही एक मात्र उपाय है।यही आत्मधर्म है।आंकिचन्य और ब्रह्मचर्य मुक्ति प्राप्त करने के अंतिम सोपान है। उत्तम जाति,कुल ,रूप,विद्वता, ऐश्वर्य,श्रुत,लाभ, शक्ति आदि से युक्त होने पर भी तत्क्षण मद, अभिमान, अहंकार का नहीं होना एवं साथ ही दूसरों के द्वारा परिभव निमित्त उपस्थित किये जाने पर भी धमण्ड नहीं होना ही उत्तम मार्दव धर्म गुण है।

मुनिराज ने कहा कि ” मैं हूं ” यह ठीक है। मात्र ” मैं ” मे अहंकार नहीं होता ,इसको विशेष महसूस करने मे अहंकार होता है, लेकिन ” मैं कुछ हूं “। यही से अहम् की शुरुआत होती है।इस पर धमण्ड करना कि मैं बड़ा हूं, उच्च पद पर हूं,मैं मुख्य मंत्री हूं, अध्यक्ष हूं आदि। इसका मतलब कि मैं एक सामान्य व्यक्ति नहीं हूं, मैं भी कुछ हूं, यही अहम्, अहंकार की परिणति है। सभी समान है ऐसा सोचना चाहिए। समानता मे अहंकार नहीं होता, अपने आपको विशेष महसूस करने मे अहंकार होता है। वहम् एवं भ्रम के कारण ही अहम् का सृजन होता है। हमने भ्रम मान्यता व कल्पना के कारण अपने आपको ऐसा मान रखा है। मुनिराज ने कहा कि धन यौवन,जीवन सब क्षणभंगुर है,पानी के बुलबुले के समान है,सदैव रहने वाले नहीं हैं,सब नष्ट होने वाले हैं, शाश्वत नहीं है,इन पर अहंकार नहीं करना चाहिए,यही सच्चाई है। रूपवान कब कुरूप बन जाये,अमीर कब गरीब बन जाये,जो आज अनाथ है वो कब नरनाथ बन जाये,आज है- कल रहे ना रहे, किसी का कोई पता नहीं है। अहंकार, गुमान, मद,धमण्ड,अभिमान नहीं करना चाहिए।

मुनिराज ने कहा कि संसार मे अहंकार किसी का नहीं रहता। रेत के घरौंदे के समान है, कभी भी ढह सकता हैं।
कौरव,रावण,कंस,इसके उदाहरण हैं। रावण को अहम् और वहम् था कि ये राम लक्ष्मण दो छोकरे मेरा क्या बिगाड़ लेंगे। और इसी अहंकार ने लंका नष्ट करवा दी।चक्रवर्ती छह खंडों का अधिपति विजयार्थ पर्वत पर अपनी प्रशस्ति लिखना चाहता है लेकिन अपना नाम मात्र लिखने तक को वहां जगह नहीं मिलती है। यहां उसका मान,धमण्ड दूर हो जाता है, सोचता है कि मेरे पहले भी इतने चक्रवर्ती हो गये है।तब वो एक नाम मिटाकर अपना नाम लिखता है।

मुनिराज ने कहा कि अपनी भूल सुधारकर संसार से मुक्ति पाने के लिए निरन्तर अपने सच्चे तत्वज्ञान से जानकर श्रद्धान करना कि मैं भी शुद्ध चैतन्य स्वभावी आत्मा हूं,आत्म तत्व की साधना करना चाहिए मैं भी सिद्धपद को प्राप्त करूं ऐसी भावना रखनी चाहिए।
इसी दौरान क्षुल्लक सुकल्प सागर महाराज ने प्रवचन करते हुए कहा कि हमें आठ मदों का त्याग करना चाहिए। जीवन मे मान,धमण्ड का त्याग कर सरलता, मृदुता लाना चाहिए।

पर्वाधिराज दशलक्षण महापर्व के अवसर पर आज दूसरे दिन उत्तम मार्दव धर्म के गुणों की पूजा आराधना की गई। शुरुआत मे श्रावकों द्वारा जिनेन्द्र भगवान का अभिषेक किया गया। पश्चात मंत्रों के उच्चारण के साथ-साथ शांतिधारा अरिहंत बज व अंकुर पाटनी ने की। इसके पश्चात संगीतमय मंगलाष्टक पाठ,पूजन स्थापना की क्रियाओं के साथ जल,चंदन,अक्षत, पुष्प,नैवेद्य, दीप,धूप,फल अष्ट द्रव्यों से देव शास्त्र गुरु पूजन व नित्यमह पूजन अर्घ्य अर्पित कर जिनेन्द्र प्रभु की पूजन की गई।इसी दौरान दशलक्षण महामंडल विधान मे उत्तम मार्दव धर्म की पूजा करते हुए मंडल विधान पर श्रीफल अर्घ्य समर्पित किए। शांतिपाठ के बाद विसर्जन पाठ किया गया।

छिंदवाड़ा म.प्र.से पधारे संगीतकार राजेश जैन एण्ड पार्टी ने भजनों की रसगंगा बहाई। श्रद्धालुओं ने जिनेन्द्र प्रभु की भक्ति मे भाव विभोर हो भक्तिनृत्य किया।
दिगम्बर जैन समाज एवं वर्षायोग समिति के प्रवक्ता नरेश जैन ने बताया कि मुनि महाराज ‍के प्रवचन से पहले चित्र अनावरण,दीप प्रज्ज्वलन एवं मुनि सुश्रुत सागर महाराज के पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य अनिल कुमार संदीप कुमार पुनीत कुमार शाह परिवार को मिला।

दोपहर मे मुनिराज सुश्रुत सागर महाराज तत्त्वार्थसूत्र का बड़ी ही सरलता से अर्थ समझा रहे हैं। शाम को आरती, भक्ति संगीत पश्चात ऋषभ भैया द्वारा प्रवचन व इसके पश्चात विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।

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