संसार की कोई भी वस्तु नित्य नहीं है — मुनि सुश्रुत सागर

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केकड़ी 18 जुलाई (केकड़ी पत्रिका न्यूज पोर्टल) देवगांव गेट के पास विद्यासागर मार्ग पर स्थित चंद्रप्रभु चैत्यालय में वर्षायोग के लिए विराजित मुनि सुश्रुत सागर महाराज ने आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जो श्रावक गृहस्थ जीवन में अहिंसाणुव्रत,सत्याणुव्रत,अचौर्याणुव्रत, ब्रह्मचर्याणुव्रत, परिग्रह प्रमाण अणुव्रत पांच अणुव्रत आदि व्रतों का पालन करते हुए बारह भावनाओं का चिन्तवन करते हैं उनके परिणाम निश्चित ही वैराग्य की ओर बढ़ते जाते हैं। वैराग्य को जन्म देने वाली बारह भावनाओं का चिन्तवन तीर्थंकर भगवानो ने भी किया है।

कोई भी वस्तु नित्य नहीं है:मुनिराज कार्तिकेयानुप्रेक्षा ग्रंथ में अनित्य अनुप्रेक्षा, भावना को समझा रहे थे। उन्होंने कहा कि संसार की कौई भी वस्तु नित्य नहीं है गांव,नगर, स्थान, चक्रवर्ती, इन्द्र,धरणेन्द्र, देह -शरीर,माता, पिता,पुत्र, स्त्री, धन- सम्पत्ति राज्यादिक वैभव आदि सभी सांसारिक पदार्थ हमारे लिए अनित्य है। हमारे साथ हमेशा रहने वाले नहीं है। समयानुसार सभी नष्टता को प्राप्त होंगे ही।

शाश्वत नहीं है,अनित्य है: मुनिराज ने कहा कि हम इस शरीर का बहुत ही अच्छे तरीके से लालन-पालन करते हैं दुर्गन्ध से बचने को मल मल कर नहाते हैं, सुगन्धित पदार्थों साबुन, तेल, क्रीम पाउडर,इत्र,सेन्ट आदि का उपयोग करते हैं। शरीर को बलिष्ठ और पुष्ट बनाने के लिए तरह तरह के पदार्थों का सेवन करते हैं। लेकिन एक समय पश्चात यह शरीर भी ढल जायेगा। देश विदेश में नाम कमाने वाला पहलवान भी मरते वक्त अंत समय में अपने शरीर की मक्खी भी नहीं उडा पाता। यही इस नश्वर शरीर की सच्चाई है। जिस प्रकार कच्चे घड़े में भरा पानी ज्यादा समय तक सुरक्षित नहीं रहता,धड़ा थोड़े समय बाद ढह जाता है उसी प्रकार संसार के विषय भोग और सामग्री है, ज्यादा टिकने वाले नहीं हैं। शाश्वत नहीं है,अनित्य है। शरीर से ज्यादा राग नहीं करना। इस शरीर के लालन-पालन के लिए ही तो धन अर्जित करते हैं यह भी हमेशा रहने वाले नहीं हैं। पुण्य से मिली सम्पत्ति भी हमारे पाप कर्मों के उदय आने पर चली जाती है।

इनसे बढ़ती है शरीरबकी शुद्धता: मुनिराज ने अत्यन्त अरूणा भावों से कहा कि सम्यकदर्शन, सम्यकज्ञान और सम्यकचारित्र रत्नत्रय की वजह से इस शरीर की शुद्धता बढ़ती है। जब भी यह आत्मा पवित्र होगी धर्म की आराधना से ही होंगी। हसलिए सच्चे देव शास्त्र गुरु पर श्रद्धान कर अनित्य भावना का चिन्तवन करना चाहिए और संसार की असारता का मनन करना चाहिए। हमेशा रहने वाली नित्य है तो बस एक शुद्ध अविनाशी आत्म चिन्तवन करने योग्य आत्मा ही है।

आतिथ्य सत्कार का लाभ: दिगम्बर जैन समाज एवं वर्षायोग समिति के प्रचार संयोजक नरेश जैन ने बताया कि मुनिराज सुश्रुत सागर महाराज के प्रवचन से पहले आचार्य विधासागर महाराज एवं आचार्य सुनील सागर महाराज के चित्र अनावरण, दीप प्रज्ज्वलन एवं मुनि सुश्रुत सागर महाराज के पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य चेतन कुमार अनिल कुमार अंकुश कुमार निकुंज कुमार अभय कुमार रांवका परिवार को मिला। आतिथ्य सत्कार का लाभ भी रांवका परिवार को मिला। मंगलाचरण चेतन रांवका ने किया।

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