संसार में संयोग वियोग सहना पड़ता है – मुनि सुश्रुत सागर

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केकड़ी 16 जुलाई (केकड़ी पत्रिका न्यूज पोर्टल) शहर के देवगांव गेट के पास विद्यासागर मार्ग पर स्थित चंद्रप्रभु चैत्यालय में तपस्वी सम्राट आचार्य सुनील सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिराज सुश्रुत सागर महाराज एवं क्षुल्लक सुकल्प सागर महाराज ससंध वर्षायोग के लिए विराजित हैं। चंद्रप्रभु चैत्यालय में रोजाना मुनिराज ससंध के सानिध्य में बहुत से धार्मिक आयोजन किये जा रहे हैं। मुनिराज सुश्रुत सागर महाराज के दर्शन के लिए केकड़ी क्षेत्र के अलावा बाहर से भी भक्तगणों का आना जाना लगा रहता है। मुनिराज के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु अपनी धार्मिक शंंकाओ, जिज्ञासाओं को मुनिराज से पूछते हैं। जटिलतम शंकाओं,जिज्ञासाओं का निराकरण मुनिराज सामान्य रूप से ही हल कर देते हैं, और इसके प्रमाण स्वरूप आचार्य प्रणीत धर्ग्रंमथों की प्राकृत की गाथाओं द्वारा, संस्कृत के श्लोकों द्वारा एवं हिंदी के दोहो आदि के द्वारा सरलतम भाषा के माध्यम से आगम के अनुसार समझाते हैं। दयालुता की मूर्ति मुनि सुश्रुत सागर महाराज कठोर तपस्या में रत रहते हैं। इनका कहना है कि हमारे गुरु आचार्य सुनील सागर महाराज कहते हैं कि जितना तुम तपोगे यानि तपस्या करोगे, समाज उतना ही विकास करता है,प्रगतिशील बनता है।

संध की दैनिक चर्या के अन्तर्गत प्रातः चार बजे से पूर्व ससंध स्वाध्याय पश्चात सामायिक प्रतिक्रमण, साढ़े छह बजे अभिषेक शांतिधारा पाठ का मंत्रोच्चारण, सात बजे सामूहिक भक्ति पाठ एवं आचार्य वंदना, पौने आठ बजे अष्टपाहुड ग्रंथ का स्वाध्याय कक्षा, साढ़े आठ बजे मंगल प्रवचन, दस बजे आहार चर्या,बारह बजे से तीन बजे तक निजी सामायिक प्रतिक्रमण चिन्तन मनन, तीन बजे स्वाध्याय कक्षा कार्तिकेयानुप्रेक्षा ग्रंथ, साढ़े पांच बजे प्रतिक्रमण- सामायिक, सात बजे तत्त्वार्थसूत्र ग्रंथ की कक्षा, इसी दौरान गुरु भक्ति आरती पश्चात स्वाध्याय चिंतन मनन जाप्य रात्रि नो बजे से सवा नो मुनिराज जी की वैयावृति श्रद्धालुओं द्वारा की जाती है।

मुनिराज सुश्रुत सागर महाराज ने आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि देह के भीतर जो चैतन्य आत्मा है वहीं मैं हूं और यही शाश्वत है हमेशा रहने वाली है कभी भी नाश को प्राप्त नहीं होगी, इसी के भक्त बनना, इसी का ध्यान करना, इसी पर सम्यक दृष्टि रखना, और इसी को संसार परिभ्रमण से छुटकारा दिलाने के लिए सतपुरूषार्थ करना चाहिए।

मुनिराज ने कहा कि सच्चे देव शास्त्र गुरु, उत्तम धर्म और उत्तम धर्म का पुरूषार्थ ही श्रेयस्कर है यही परमार्थ का पुरूषार्थ संसार के दुःखों से दूर करता है और अनंत सुखों की प्राप्ति कराकर मोक्ष में ले जाता है।

मुनिराज कार्तिकेयानुप्रेक्षा ग्रंथ की वाचना कर रहे हैं उर्न्होने कहा कि संसार अवस्था में परिवार चलाने के लिए धन की आवश्यकता होती है,धन कमाने के लिए अनुकूल शरीर चाहिए, शरीर की अनुकुलता बनी रहे इसके लिए धर- मकान चाहिए और धर को चलाने के लिए परिवार बच्चे का होना आवश्यक है।बस यही क्रम निरंतर चलता रहता है और यही हम अनादिकाल से करते चले आ रहे हैं। सत्यता यही है कि इनमें ही सुख सुविधा ,सब कुछ मानकर बैठना सही नही है, ये सब अस्थिर है। संसार में संयोग – वियोग सहना पड़ता है। पाप और पुण्य कर्म के उदय रूप में जो धन,वैभव विषय भोग, गरीबी अमीरी समयानुसार स्थिर नहीं रहते। इससे जीवन में पड़ने वाले शुभ और अशुभ प्रभावो में सहजता से मंथन करके परिणामों में समभाव रखते हुए सम्यक चिंतन द्वारा बिजली के समान मानना, क्यों कि देखते ही देखते सब नष्ट होने वाली है। 

दिगम्बर जैन समाज एवं वर्षायोग समिति के प्रचार संयोजक नरेश जैन ने बताया कि मुनिराज सुश्रुत सागर महाराज के प्रवचन से पहले जयपुर से पधारे ब्रह्मचारी ऋषभ भैया द्वारा मधुर शब्दों में मंगलाचरण किया गया। इसी दौरान आचार्य विधासागर महाराज एवं आचार्य सुनील सागर महाराज के चित्र अनावरण, दीप प्रज्ज्वलन एवं मुनि सुश्रुत सागर महाराज के पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य कमल कुमार वैभव कुमार ठोलिया परिवार को मिला। आज के आतिथ्य सत्कार का लाभ भी इन्हें ही मिला।‌

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