श्री प्राज्ञ महाविद्यालय के छात्रों ने तिलोनिया के ‘बेयरफुट कॉलेज’ में सीखा नवाचार का पाठ
बिजयनगर 16 दिसंबर (केकड़ी पत्रिका/तरनदीप सिंह ) तिलोनिया, राजस्थान – सोमवार, 15 दिसंबर 2025 को श्री प्राज्ञ महाविद्यालय, बिजयनगर के 39 छात्रों और तीन शिक्षकों के एक दल ने सोशल वर्क एंड रिसर्च सेंटर (SWRC), जिसे लोकप्रिय रूप से ‘बेयरफुट कॉलेज’ (Barefoot College) के नाम से जाना जाता है, तिलोनिया का एक प्रेरणादायक शैक्षिक भ्रमण किया।
यह दौरा छात्रों के लिए जमीनी स्तर के नवाचार और ग्रामीण विकास के स्थायी समाधानों को समझने का एक शक्तिशाली माध्यम बना।कॉलेज से सुबह प्रस्थान करने के बाद, दल 10:00 बजे तिलोनिया पहुंचा, जहाँ SWRC के मिशन और ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाने के उसके प्रयासों पर एक परिचय सत्र आयोजित किया गया।सुबह का मुख्य सत्र केंद्र की अद्भुत सामुदायिक पहलों पर केंद्रित रहा। छात्रों ने स्थानीय उद्यम और स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करने वाले विभागों का दौरा किया: छात्रों ने पारंपरिक कारीगरों को स्थानीय संसाधनों को आर्थिक अवसरों में बदलते देखा, जिसने स्वदेशी शिल्पों के संरक्षण और व्यावसायीकरण के महत्व को उजागर किया।

नर्सरी और पुस्तकालय ने पर्यावरण शिक्षा और स्थिरता के प्रति कॉलेज की प्रतिबद्धता को दर्शाया, जो समुदाय के भीतर पारिस्थितिक संतुलन को बढ़ावा देते हैं। ‘जुगाड़ फ्रॉम स्क्रैप’ (कबाड़ से जुगाड़): इस अनूठे विभाग ने बेकार सामग्री से बनाए गए अभिनव, कम लागत वाले समाधानों का व्यावहारिक प्रदर्शन किया। यह इंजीनियरी दिखाती है कि कैसे संसाधनों की कमी के बजाय सरलता और नवाचार से ग्रामीण चुनौतियों का समाधान किया जा सकता है।दोपहर का सत्र बेयरफुट कॉलेज के विश्व प्रसिद्ध सौर अनुभाग (Solar Section) के भ्रमण को समर्पित था।छात्रों ने प्रत्यक्ष रूप से जाना कि सौर प्रौद्योगिकी को न केवल स्थापित किया जाता है, बल्कि उसका रखरखाव भी पूरी तरह से स्थानीय समुदायों द्वारा ही किया जाता है।
सत्र में विशेष रूप से ‘सोलर ममास’ (Solar Mamas) के रूप में जानी जाने वाली ग्रामीण महिलाओं को सौर इंजीनियर के रूप में प्रशिक्षित करने की क्रांतिकारी अवधारणा पर ध्यान केंद्रित किया गया। ये महिलाएँ ही ग्रामीण घरों में रोशनी, बिजली और जल पम्पिंग के लिए सौर प्रणालियों का निर्माण, स्थापना और रखरखाव करती हैं।भ्रमण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए प्राचार्य दुर्गा कंवर मेवाड़ा ने कहा ,”तिलोनिया का यह दौरा हमारे छात्रों के लिए किताबी ज्ञान से परे एक अमूल्य अनुभव था। यहां उन्होने देखा कि कैसे ग्रामीण समुदायों की स्थानीय प्रतिभा और साधारण ‘जुगाड़’ को उपयोग में लाकर बड़े सामाजिक और तकनीकी बदलाव लाए जा सकते हैं। ‘सोलर ममास’ का उदाहरण दर्शाता है कि सशक्तिकरण के लिए औपचारिक डिग्री नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और व्यावहारिक कौशल महत्वपूर्ण हैं।
यह हमारे छात्रों को समस्याओं का समाधान स्थानीय स्तर पर खोजने के लिए प्रेरित करेगा।”छात्रों ने आत्म-निर्भरता, विकेंद्रीकरण और सरलता के माध्यम से ग्रामीण भारत में स्थायी परिवर्तन लाने की नई और व्यापक समझ प्राप्त की।