बालक की बाल मनोदशा में माता-पिता और शिक्षक की भूमिका
केकड़ी 16 नवम्बर (केकड़ी पत्रिका) परिवार में माता-पिता प्यार, सुरक्षा और स्थिर वातावरण प्रदान करते हैं, वही शिक्षक शैक्षणिक मार्गदर्शन और सामाजिक कौशल विकसित करने में मदद करते हैं। दोनों के बीच प्रभावी संचार और सहयोग से बच्चे का सर्वांगीण विकास संभव हो पाता है, जिससे वह आत्मविश्वास और चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनता है। ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि माता-पिता शिक्षक एवं प्रत्येक जन को बालक की बाल मनोदशा जानकार प्रतिक्रिया करनी चाहिए।
कई बार देखा जाता है कि बालक द्वारा अपने मित्रों से दूरी बना लेना ,उसका अधिक आक्रामक होना ,उसकी घबराहट और स्कूल जाने से मना कर देना आदि व्यवहार देखने को मिलता है हर माता-पिता को बालक की इन संकेतों पर ध्यान देने की सख्त जरूरत है किसी भी कार्य को माता-पिता द्वारा बालक पर थोपे जाने से बालक एंजायटी या तनाव का शिकार हो जाता है जिसके परिणाम कई बार गंभीर रूप से देखने को प्राप्त होते हैं ऐसी स्थिति में माता-पिता या शिक्षक को उसके साथ मित्रवत व्यवहार करना चाहिए जिससे वह अपनी हर समस्या को अवगत करा सके उसके साथ खुलकर बातें करें उसकी गतिविधियों पर पुख्ता नजर रखें विशेष तौर पर सोशल मीडिया की उपयोगिता पर तथा उसके अच्छे व्यवहार पर सराहना भी करें। उसके हर सकारात्मक व्यवहार पर प्रोत्साहित करें।
किसी भी बात का दबाव न डालें और ना ही ज्यादा अपना आदेशात्मक रवैया अपनाये।दार्शनिक विचारक जीन पियाजे ने बताया कि बच्चे छोटे वैज्ञानिक होते हैं जो सक्रिय रूप से अपने आसपास की दुनिया के बारे में ज्ञान का निर्माण करते हैं।उन्होंने तर्क दिया कि बच्चों का संज्ञानात्मक विकास चार चरणों में होता है जिसमें प्रत्येक चरण एक विशिष्ट क्रम का पालन करता है जो पिछले चरण पर आधारित होता है और और यह विकास एक निश्चित क्रम में आगे बढ़ता रहता है।
ऐसे में हर माता-पिता और शिक्षक को बाल मनोदशा जानकर व्यवहार करना चाहिए जिससे बालक कुंठित मनोदशा का शिकार ना हो।
एक नियमित दिनचर्या बच्चों को बेहतर ध्यान केंद्रित करने और अच्छे अध्ययन की आदतें विकसित करने में मदद करती है यह स्कूल में बेहतर प्रदर्शन के लिए बहुत जरूरी है साथ ही माता-पिता को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पढ़ाई लिखाई के दौरान टीवी और मोबाइल जैसी विकर्षण का उपयोग कम किया जाए।
एक आदर्श शिक्षक में कई गुण होते हैं जिसमे विषय का गहरा ज्ञान , मजबूत संचार कौशल ,अनुकूलनशीलता ,सृजनात्मकता सहानुभूति और छात्रों के प्रति संवेदनशीलता आदि । एक अच्छे शिक्षक को कक्षा के प्रबंधन में निपुण होना चाहिए तथा सभी छात्रों से समान रूप से भेदभाव रहित व्यवहार करना चाहिए।
माता-पिता के साथ शिक्षक को भी बाल विकास का ज्ञान होना चाहिए जिससे बालक का सर्वांगीण विकास संभव हो सके जिन शिक्षकों को बाल विकास के सिद्धांतों की गहरी समझ होती है वे छात्रों के लिए यथार्थवादी अपेक्षाएं विकसित कर सकते हैं वे मानते हैं कि प्रत्येक बच्चा अपनी गति से प्रगति कर सकता है तथा वे व्यक्तिगत विभिन्नताओं का भी सम्मान करते हैं जिससे छात्रों की क्षमताओं का अनुचित तुलना करने की प्रवृत्ति कम हो जाती है।”उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत
- डॉ राम बाबू सोनी केकड़ी