संसार के दुःखों से छुटकारा तभी मिल सकता है जब हमारे जीवन में सच्चे धर्म का संचालन हो_मुनि सुश्रुत सागर
केकड़ी29 जून(केकड़ी पत्रिका न्यूज पोर्टल) देवगांव गेट के पास विद्यासागर मार्ग पर स्थित श्री दिगम्बर जैन चंद्रप्रभु चैत्यालय में आयोजित सिद्धचक्र महामंडल विधान का आयोजन हुआ नरेश जैन प्रचार संयोजक दिगंबर जैन समाज केकड़ी ने बताया की इस दौरान श्रद्धालुओं को धर्मोपदेश देते हुए मुनि सुश्रुत सागर महाराज ने कहा कि धार्मिक अनुष्ठान विधानादि भगवान की भक्ति ,अर्हन्त भक्ति, सिद्ध भक्ति, सांसारिक कामनाओं के भावों से परे होकर आत्म विशुद्धि के लिए करनी चाहिए। धार्मिक कार्यों में धनादि का दान अपने धन का सदुपयोग का सौभाग्य मानते हुए श्रद्धा भाव से मन,वचन,काय की एकाग्रता के साथ करना चाहिए।यह हमारे मन के अशुभ चिंतन एवं नकारात्मक भावनाओं को दूर हटाकर सकारात्मक एवं शुभ चिंतन की ओर बढ़ाती है।
महाराज श्री ने कहा कि संसार के दुःखों से छुटकारा तभी मिल सकता है जब हमारे जीवन में सच्चे धर्म का संचालन हो, जीवन धर्ममयी हो जायेगा। जीवन में प्रमाद वश हमारे द्वारा किए गए पाप रूपी कार्यों से बचने के लि ए दान,पूजा,व्रत, उपवास,शील,सेवा, भगवान की उपासना , आराधना से दोषों का प्रक्षालन करना चाहिए। इससे हमारे जीवन के सुख समृद्धि और शांति के साथ संतोष पनपता है।
मुनि सुश्रुत सागर महाराज अपनी अमृतमयी वाणी से बड़े ही मधुर एवं सरल शब्दो मे सिद्धचक महामंडल विधान की मुख्य भूमिका के पात्र रानी मैना सुंदरी और राजा श्रीपाल की कथा एवं कथानक के चरित्र का बड़े ही सुन्दर तरीके से बता व समझा रहे हैं। रानी मैना सुंदरी ने जीवन में आई कठिनतम परेशानियो को किस प्रकार से सच्चे धर्म के श्रद्धान के द्वारा अपने कोढ़ी पति का संकट दूर किया था। कथानक में आये प्रसंगों में उन्होंने कहा कि पुत्री के लिए माता-पिता की आज्ञा मानना ही सर्वोपरि धर्म है। माताएं ही बच्चों में संस्कार देने की जननी होती है। सभी जीवों में एक दूसरे के प्रति पवित्र, निर्मल और सरल दृष्टि एवं भाव होना चाहिए।शब्द तो पुदगल की पर्याय होती है, शब्द ब्रह्म का कार्य करते हैं। शब्दों में उलझना नहीं चाहिए। शब्दों के भावों को समझकर उलझनें की बजाय सुलझकर निकल जाना चाहिए।यही जीवन में पवित्र भावों को बढ़ाता है मंजू बज ने प्रवचन से पहले मंगलाचरण किया।
- सिद्धचक महामंडल विधान पर चढाये चौसठ श्रीफल अर्ध
मुनि सुश्रुत सागर महाराज और क्षुल्लक सुकल्प सागर महाराज के पावन सानिध्य में एवं पंडित देवेन्द्र जैन के विधानाचार्यत्व में सिद्धचक महामंडल विधान की चौथी पूजा करते हुए आज सिद्ध भगवान के चौसठ गुणों की पूजा की गई जिसमें चौसठ ऋद्धियो और इनके स्वरूप का वर्णन आता है। दिगम्बर साधु को अपने विशेष तपस्या के द्वारा इन चौसठ ऋद्धियो की प्राप्ति होती है।
सिद्धचक महामंडल विधान से पूर्व यहां विराजित आदिनाथ भगवान की प्रतिमा को श्रद्धा भक्ति पूर्वक सिंहासन से लाकर पाण्डुक शिला पर विराजमान किया गया। जहां सभी मुख्य इंद्र पात्रो सहित सभी इंद्रो ने रजत कलशों में प्रासुक जल भरकर अभिषेक किया। अभिषेक पश्चात भगवान आदिनाथ की शांतिधारा की गई।बोली द्वारा चयनित प्रथम शांतिधारा करने का सौभाग्य कमल कुमार वैभव कुमार ठोलिया परिवार एवं दूसरी तरफ से शांतिधारा करने का सौभाग्य विमल कुमार प्रितम कुमार सोगानी परिवार को मिला।मुनि सुश्रुत सागर महाराज के मुखारविंद से विश्व में अहिंसा के साथ सुख शांति और समृद्धि के विकास की पवित्र भावनाओं को लिए शांतिधारा के मांगलिक मंत्रों का वाचन किया गया। शांतिधारा पश्चात पूजनादि क्रिया स्थापना, मंगलाष्टक पाठ,विनय पाठक, स्वस्ति मंगल पाठ,देव शास्त्र गुरु पूजन, नंदीश्वर द्वीप पूजन, भगवान आदिनाथ पूजन,विनायक यंत्र पूजन, मंडल विधान पूजन अर्धावली सहित शांतिधारा विसर्जन सहित कई मांगलिक व धार्मिक क्रियाओं को संपन्न किया गया।
टीकमगढ़ मध्य प्रदेश से आए श्री पार्श्वनाथ म्यूजिकल ग्रुप के मुख्य संगीतकार पुष्पेन्द्र जैन के द्वारा प्रस्तुत सुमधुर भजनों ने श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर दिया।श्रावक श्राविकाओं ने बड़ी ही भक्ति भाव से प्रभु भक्ति में नृत्य किया।
सायंकालीन जिनेन्द्र भगवान और मंडल विधान की महाआरती करने का सौभाग्य सिद्धचक महामंडल विधान के विधानाचार्य पंडित देवेन्द्र दीपेश पुष्पेन्द्र जैन परिवार को मिला। पंडित देवेन्द्र जैन के निवास स्थान से चंद्रप्रभु चैत्यालय गाजे बाजे के साथ महाआरती को विशेष तरह से सजाकर जुलुस रूप में लाया गया। जहां सभी ने जिनेन्द्र प्रभु एवं मंडल विधान की आरती की। इसी दौरान भक्ति संगीत एवं पंडित देवेन्द्र जैन द्वारा शास्त्र प्रवचन किया गया।