9 November 2025

विशेष आलेख: चना की फसल में “उखठा रोग”की रोकथाम के लिए करें प्रभावी उपाय

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कुशायता, 06 नवम्बर(केकड़ी पत्रिका/ हंसराज खारोल) कृषि विभाग द्वारा किसानों में जागरूकता बढ़ाने के लिए “चना की फसल में मृदा तथा बीज जनित उखठा रोग” की रोकथाम हेतु विशेष अभियान चलाया जा रहा है। यह अभियान संयुक्त निदेशक कृषि विस्तार श्री संजय तनेजा के निर्देशन में प्रारंभ किया गया है।अभियान के तहत कृषि अधिकारी पुष्पेन्द्र सिंह ने जानकारी दी कि वर्तमान मौसम और अनुकूल परिस्थितियों के कारण चना फसल में अन्य कीट व्याधियों के साथ मृदा एवं बीज जनित उखठा रोग फैलने की संभावना रहती है। यह रोग फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम नामक हानिकारक फफूंद से फैलता है।

यदि इस रोग का समय रहते उपचार नहीं किया जाए तो इसकी रोकथाम कठिन, खर्चीली और कई बार असंभव हो जाती है। इससे फसल की गुणवत्ता घटती है और किसानों को बाजार में उचित मूल्य नहीं मिल पाता। रोग के प्रारंभिक लक्षण खेत में छोटे-छोटे टुकड़ों में दिखाई देते हैं — पौधे की ऊपरी पत्तियाँ मुरझा जाती हैं और धीरे-धीरे पूरा पौधा सूखकर नष्ट हो जाता है।रोग की पहचान:जड़ के पास तने को चीरने पर भीतर काले रंग के धागेनुमा कवक-जाल दिखाई देते हैं, जो इस रोग की प्रमुख पहचान है।रोकथाम के उपाय:कृषि विभाग द्वारा किसानों को निम्नलिखित उपाय अपनाने की सलाह दी गई है—खेतों में सही जल-निकास व्यवस्था रखें।

पूर्व प्रभावित क्षेत्रों में फसल चक्र (Crop Rotation) अपनाएँ।सरसों या अलसी के साथ चना की अंतरफसल (Intercropping) लगाएँ।रोग-रोधी किस्मों का चयन करें जैसे— RSG 888, CSGD 884, RSG 963, RSG 945, RSG 807, RSG 902, RSG 991, GNG 1581, RSG 974, CSJK 6, GNG 1958, CSJ 515, CSJK 174 आदि।भूमि उपचार के लिए:बुवाई से पूर्व 2.5 किलो ट्राइकोडर्मा को 100 किलो गोबर खाद में मिलाकर 10–15 दिन छाया में रखें। इस मिश्रण को बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर खेत में पलेवा करते हुए मिट्टी में मिलाएँ।

बीज उपचार के लिए:जड़ गलन, सूखा जड़ गलन एवं उखठा रोग की रोकथाम हेतु कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम + थायरम 2.5 ग्रामयाकार्बोक्सिन 37.5% + थायरम 37.5% (75% W.S.) 2 ग्राम प्रति किलो बीजयाट्राइकोडर्मा 10 ग्राम प्रति किलो बीज से बीज उपचार करें।कृषि विभाग की अपील:किसान किसी भी प्रकार के कीट या रोग की समस्या होने पर अपने स्थानीय कृषि पर्यवेक्षक, सहायक कृषि अधिकारी या नजदीकी कृषि कार्यालय से संपर्क कर विशेषज्ञ परामर्श प्राप्त करें, ताकि फसल को संभावित नुकसान से बचाया जा सके।

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