10 November 2025
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केकड़ी 04 नवम्बर (केकड़ी पत्रिका/ तरनदीप सिंह) सदभावना की किरण पन्द्रहवीं सदी का भारत जब समाज भेदभाव,ऊँचनीच व अंधविश्वास में डूबा हुआ था,उसी समय ननकाना साहिब की धरती पर जन्म हुआ एक ऐसे प्रकाश का,जिसने इंसानियत का असली अर्थ सिखाया उसका नाम था गुरुनानक देव जी। उन्होंने कहाँ था कि ना वो हिन्दू में है ना वो मुसलमान में है अगर वो निरंकार है तो फकत इंसान में है,उन्होंने बताया सच्चा धर्म है वो है इंसानियत व मानवता की सेवा,गुरुनानकदेव जी का जब भी हम नाम लेते है तो भीतर एक शांति व एक रोशनी महसूस होती है।

गुरुनानक देव देव जी ने कहाँ था कि सच्चा प्रकाश बाहर नही है,वो हमारे भीतर ही है।।गुरुनानक देव जी ने अपनी शिक्षाओं में बताया कि एकम कार सतनाम, ईश्वर हम सभी में है और एक जैसा ही है और यही परम सत्य है।बाल्य काल से ही आपके मुख पर तेज व नूर दिखायी देने लग गया था, जिसके कारण तत्कालीन पंडितों व ज्योतिषयो ने उनके पिता कालू जी मेहता से कहाँ कि यह कोई साधारण बालक नही है, इसके तेज व प्रखर ज्ञान से लगता है कि इस बालक को ईश्वर ने किसी ना किसी विशेष उद्देश्य से इसे धरती पर अवतरित किया है। बालक नानक अपने बाल्य काल से ही अपनी प्रखर बुद्धि व ज्ञान की बाते करने लग गये थे।।

गुरु नानक देव जी ने इस कलजुग में भक्ति व नाम की से शब्द गुरु की आराधना करके कैसे ईश्वर की अनुभूति की जा सकती है उसकी मार्ग अपनी यात्राओं (उदासियो)के जरिये सदमार्ग व मानवता का संदेश दिया।आपने अपनी यात्रा के दरमियान बहुत से रोगियों के कष्ट दूर किये जिसमे कोड़ी को निरोग किया,सज्जन ठग को सही मार्ग दिखलाया, सदना कसाई को जीवन की सच्चाई से अवगत करवाकर उसका कल्याण किया ।आपने अपने जीवन दर्शन में तीन सिद्धांत बताये जो मील का पत्थर साबित हुए जो आज भी कायम है पहला कीरत करना (कर्म)करना ईमानदारी से अपने हक हलाल से पैसे कमाना ताकि परिवार का जीवन यापन हो सके।

दूसरा मिल जुल कर खाना इस सिद्धांत के द्वारा ही विश्व के सभी गुरुद्वारो में निःशुल्क लंगर की सेवा अनावरित जारी है और तीसरा सिद्धान्त था नाम जपना यानी नाम भक्ति मार्ग से उस रब तक पहुचना।।यह तीन सिद्धांत सिखिज्म के आधार है।।गुरुनानक देव जी ने अपने जीवन काल मे मानव कल्याण,भाईचारा,सदभावना की अलख जगायी थी जो आज भी प्रकाशयमान है,उन्होंने कर्म काण्ड से ऊपर उठकर कलजुग में शब्द गुरु के जरिये भक्ति व नाम के द्वारा उस रब तक पहुचने का सरल मार्ग प्रशस्त किया था। (लेखन राम पंजाबी ब्यावर)

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