आत्मा की अंतर्ज्योति की प्रेरणा से करें कार्य का सही चयन -डॉ. सोनी
केकड़ी 03 नवम्बर (केकड़ी पत्रिका/अम्बा लाल गुर्जर) अक्सर देखा जाता है कि किशोरवय: बालक अपने कार्य क्षेत्र के चयन को लेकर किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में रहते हैं वे यह तय नहीं कर पाते हैं कि क्या करना सही है क्या गलत ऐसे में हम अनेक लोगों की सलाह लेते रहते हैं जो अलग-अलग कार्य क्षेत्र से संबंधित होते हैं कई बार हम अपने कार्य क्षेत्र के विरुद्ध अन्य लोगों से संबंधित विषय की सलाह ले लेते हैं परिणामत: दिग्भ्रमित स्थिति पैदा हो जाती है।
सटीक निर्णय तक नहीं पहुंच पाते हैं तो यह बहुत जरूरी है पहले तो हम यह जान सके कि हमारा कार्य क्षेत्र क्या है और हम जिससे सलाह लेने की अपेक्षा कर रहे हैं क्या उनके विषय अपने अनुकूल हैं ? नहीं होने पर आपकी स्थिति सही निर्णय पर नहीं पहुंच पाएगी यह सत्य है।ऐसी स्थिति हर किसी के साथ उत्पन्न हो सकती है जबकि सही मार्ग का चयन करने की क्षमता आप में स्वयं में ही है बस बात है पहचान की, सही दिशा प्राप्त करने के लिए आत्मा की अंतर्ज्योति की आवाज आपको सही मार्ग प्रशस्त करती है।।
आत्म ज्योति की प्रेरणा से काम करने के लिए आपको ध्यान ,भक्ति और आत्म चिंतन के माध्यम से अपनी आंतरिक रोशनी को खोजना होगा जो आपको बाहरी विकर्षण से हटकर अपने सात्विक स्व से जुड़ने में मदद करेगा। यह आपको सही निर्णय लेने , दूसरों को प्रेरित करने एवं रचनात्मक कार्य के माध्यम से आनंद खोजने के लिए प्रेरित करेगा।आत्म ज्योति की प्रेरणा को समझने के लिए हम एक पौराणिक प्रसंग पढ़ते हैं जिसमें राजा जनक ने अपने मन में उपजे संशय को शांत करने का वृत्तान्त जिसमे वे अपने गुरु महर्षि याज्ञवल्क्य जी से प्रश्न करते है-कि ऋषिराज मेरे मन में एक शंका है कृपया उसका निवारण करें।
उन्होंने कहा कि गुरुवर हम जो देखते हैं वह किस ज्योति से देखते हैं ?महर्षि ने जवाब दिया कि – यह क्या बच्चों जैसी बातें करते हैं आप?सभी जानते हैं कि हम जो कुछ भी देखते हैं वह सूर्य की ज्योति की वजह से देखते है।राजा जनक ने पुनः प्रश्न किया -कि ,महर्षि जब सूर्य अस्त हो जाए तो हम किसके प्रकाश से देखते हैं?महर्षि ने उत्तर दिया कि “उस समय हम चंद्रमा के प्रकाश से देखते हैं”राजा जनक ने अगला प्रश्न किया – महर्षि जब सूर्य ना हो, चंद्र ना हो ,तारों भरी रात भी ना हो, अमावस्या का अंधकार हो तब हम किसके प्रकाश से देखते हैं ?महर्षि ने बड़ी सहजतापूर्ण जवाब दिया की राजन तब हम शब्दों की ज्योति से देखते हैं। कल्पना करें – एक विस्तृत वन है ,घना अंधेरा है एक राहगीर रास्ता भूल गया हो वह आवाज देता है मुझे रास्ता दिखाओ तभी दूर खड़ा व्यक्ति कहता है की इधर आ जाओ मैं तुम्हें रास्ता दिखाता हूं।
इस तरह ‘शब्द प्रकाश’ व्यक्ति तक पहुंच जाता है ।राजा जनक ने फिर प्रश्न किया की महर्षि जब शब्द भी ना हो तब किस ज्योति से देखगे हैं ?महर्षि ने जवाब दिया -कि उस समय हम आत्मा की ज्योति से देखते हैं और उसी ज्योति से सारे काम करते हैं। राजा जनक का संशय और बढ़ता है और फिर प्रश्न करते हैं कि, महर्षि ” यह आत्मा क्या है”?महर्षि ने राजन को उत्तर दिया :- :”योऽयं विज्ञानमये प्राणेषु हृद्यन्तर्ज्योतिः पुरुषः ।”अर्थात जो विशेष ज्ञान से भरपूर है जीवन और ज्योति से भरपूर है जो हृदय में विद्यमान है वही आत्मा हैजब कहीं कुछ दिखाई नहीं देता है,मन में संशय विद्यमान है, जीवन में सही मार्ग का चयन नहीं हो रहा है तब आत्मा की ज्योति ही जीवन जगत को प्रकाशित करती है।मार्ग प्रशस्त करती है।”असतो माँ सद्गमय,तमसो मा ज्योतिर्गमय,मृत्योर्मा अमृतं गमय ।।