श्रद्धा ही भव सागर से पार उतार सकती है: धैर्य मुनि

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आसींद 06 अगस्त (केकड़ी पत्रिका/ विजयपाल सिंह राठौड़) जो व्यक्ति सच्ची श्रद्धा रखते है, वे अपने संकल्प को साकार करते है, और उनके जीवन में कभी भी अंधकार नहीं रहता है। जो श्रद्धा पर संदेह या शंका करते है वे अपनी राह से भटक जाते है यानि कि जहां पर शंका होती है वहां पर श्रद्धा नहीं होती है। श्रद्धा और संदेह के बीच का अंतर समझे क्यों कि जीवन का हर निर्णय इसी पर आधारित होता है। श्रद्धा की ताकत अदभुत है। मन से प्रार्थना कर आप जो भी चाहोगे वह आपको मिलकर ही रहेगा। जीवन में सफलता के लिए श्रद्धा, ज्ञान और क्रिया का होना जरूरी है। उक्त विचार नवदीक्षित संत धैर्य मुनि ने महावीर भवन में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए।
प्रवर्तिनी डॉ दर्शन लता ने कहा कि क्रोध, मान, माया, लोभ यह चारों कषाय का त्याग करना होगा। जो जितना क्रोधी होता है उसकी कीमत उतनी ही कम होती है। जो व्यक्ति संयमित और मर्यादित होता है वह व्यक्ति समाज का हीरा कहलाता है। उत्तम श्रावक वही है जो कषायो पर नियंत्रण रखे।
साध्वी ऋजु लता ने कहा कि हर व्यक्ति पुण्य तो चाहता है लेकिन पुण्य के काम करता नहीं है। पाप जो जानते हुए भी पाप के कार्य करता है। जैन आगम के अनुसार 9 तरह के पुण्य एवं 18 तरह के पाप बताए गए है। पाप के कार्यों को नहीं करके पुण्य के कार्य करके अपनी आत्मा को उज्ज्वल बनावे। व्यक्ति को सांप से तो डर लगता है लेकिन पाप से नहीं लगता है। अपनी आत्मा को उज्ज्वल बनाने के लिए पुण्य के कार्य की तरफ अपने हाथ बढ़ावे।