कैसी न्यायपालिका जो अपने कर्मचारियों के साथ न्याय नहीं कर सकती – डॉ मनोज आहूजा

- राज्य सरकार के कर्मचारियों को पदोन्नति लाभ मिल सकते हैं तो न्यायिक कर्मचारियों को क्यों नहीं
बांदनवाड़ा 29 जुलाई केकड़ी पत्रिका/प्रकाश टेलर ) न्यायिक कर्मचारी 18 जुलाई से सामूहिक अवकाश पर चल रहे थे, जिनको सोमवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा फटकार लगाने के बाद उन्होंने अपना आंदोलन वापस ले लिया है और कल से सभी कर्मचारी वापस काम पर लौट रहे हैं।
क्या थी इनकी मांगे-
इन न्यायिक कर्मचारियों की बिलकुल वाजिब मांग ये थी कि जिस प्रकार से राज्य सरकार के कर्मचारियों को सरकार की अधिसूचना के अनुसार पदोन्नति लाभ मिलता है वो लाभ हमें भी मिलना चाहिए*केकड़ी बार एसोसिएशन के अध्यक्ष,वरिष्ठ पत्रकार एवं समाज सेवी डॉक्टर मनोज आहूजा ने बताया कि समानता के अधिकार के तहत इनकी मांगे वाजिब थी इसलिये राजस्थान उच्च न्यायालय की फुल बैंच ने 6 मई 2023 को प्रस्ताव पास करते हुए राज्य सरकार को ये अनुशंसा कर दी थी कि कर्मचारियों को उक्त कैडर पुनर्गठन का आदेश पारित करते हुए लाभ दिया जावे।
हाईकोर्ट की फुल बैंच द्वारा दिए गए आदेश की पालना करवाने के लिए कर्मचारी यूनियन द्वारा राज्य सरकार व न्यायपालिका को 110 पत्र लिखे गए तथा पूर्व सूचना के बाद प्रदेश अध्यक्ष सुरेन्द्र नारायण जोशी व बृजेश कुमार शर्मा भूख हड़ताल पर बैठे उसके बाद भी जब कोई सुनवाई नहीं हुई तब जाकर 18 जुलाई से प्रदेश के न्यायिक कर्मचारियों ने सामूहिक हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया।*इसी बीच हाईकोर्ट के न्यायाधिपति अशोक कुमार जैन ने जमानत आवेदन की सुनवाई करते हुए कर्मचारियों की हड़ताल को अवैध ठहराते हुए उनके खिलाफ कठोर कार्यवाही करने के निर्देश जारी कर दिए जिसकी पालना करते हुए जिला न्यायाधीशों ने कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही प्रारम्भ कर दी मजबूरन कई कर्मचारियों को संगठन के खिलाफ जाकर काम पर जाना पड़ा इन स्थितियों को देखते हुए कर्मचारी संघ ने न्यायमूर्ति अशोक कुमार जैन के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी तो सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें काम पर लौटने के निर्देश दिए जिसके चलते कर्मचारी अब कल से वापस काम पर लौटेंगे।
इस पूरे एपिसोड के बाद सवाल ये उठता है कि(1) आखिर इन कर्मचारियों को न्याय कब और कैसे मिलेगा?(2) आखिर ये न्यायपालिका अपने ही कर्मचारियों के साथ हो रहे अन्याय को कैसे और क्यों बर्दाश्त कर रही है?और आश्चर्य की बात ये है कि राज्य सरकार के कर्मचारी 12 वीं पास हैं जबकि न्यायपालिका के कर्मचारी स्नातक हैं और तो और ये कर्मचारी सप्ताह में 6 दिन काम करते हैं जबकि राज्य कर्मचारी 5 दिन।हाइकोर्ट प्रशासन द्वारा सरकार को दो साल पहले भेजे गए प्रस्ताव और निर्देश की पालना करने हेतु अगर थोड़ी भी सख़्ती की होती तो आज इन कर्मचारियों के साथ ये अन्याय नहीं होता। जिस जनता को खुश करने के लिए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट अपने ही कर्मचारियों को आँख दिखा रही है वो ही जनता आज ये सवाल कर रही है कि आखिर न्यायपालिका अपने ही कर्मचारियों के साथ न्याय क्यों नहीं कर पा रही है? इनके साथ न्याय होना चाहिए….