काव्य/शायरी/मुक्तक: “हरियाली अमावस्या”

मनाओं सभी हरियाली अमावस्या,
सावन में प्रकृति लाई ढेरों खुशियाॅं।
पर्व का उद्देश्य प्रकृति से प्रेम करो,
हरे भरे खेत देखकर झूमें सखियाॅं।।
जगह-जगह लगते मिठाई के ठेले,
बागो में झूले और बाजारो में मेले।
सभी, जश्न त्योंहार मनाते परिवार,
युवाओं के साथ झूमें गुरु एवं चेले।।
गेहूं की धाणी और गुड का प्रसाद,
मूॅंग, मक्का, बाजरा बीजते ज्वार।
वृक्षों , पोधों में देवताओं का वास,
पर्यावरण से सबको मिलती श्वास।।
ब्रह्मा विष्णु महेश का पीपल वास,
ऑंवले लक्ष्मीनारायण विराजमान।
इनके बिन कोई पत्ता नही हिलता,
प्रकृति कण-कण में यह विद्यमान।।
- गणपत लाल उदय, अराई (अजमेर) राजस्थान

