29 June 2025

ग्रेनाइट माइंस और ग्राम बघेरा: उन्नति या अवनति ?

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बघेरा 29 जून (केकड़ी पत्रिका,) राजस्थान के अजमेर ज़िले का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध ग्राम बघेरा हाल के वर्षों में ग्रेनाइट खनन गतिविधियों के कारण चर्चा में आया है। ग्रेनाइट खनन से जुड़े इस विकास की कहानी कहीं प्रगति की प्रतीक बनती है तो कहीं संघर्ष और हानि की चेतावनी।

सकारात्मक पहलू:

संभावनाओं की उम्मीद ग्रेनाइट माइंस के कारण ग्राम पंचायत को आय का एक नया स्रोत प्राप्त हुआ है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, खनिज पट्टों के माध्यम से ग्राम पंचायत को लाइसेंस शुल्क, रॉयल्टी आदि के रूप में एक निश्चित आय प्राप्त होती है। इससे पंचायत की वित्तीय स्थिति बेहतर हो सकती हैं ।

संभावित लाभ हो सकते हैं:

भविष्य में बुनियादी ढांचे (जैसे सड़क, जल, शिक्षा) में सुधार की उम्मीद है। यदि उचित नीति अपनाई जाए तो युवाओं को रोजगार मिलने की संभावना है – जैसे ट्रक ड्राइवर, हेल्पर, मशीन ऑपरेटर आदि।कुछ लोगों ने इस खनन व्यवसाय में निजी ठेकेदारी या सहयोगी भूमिका के जरिए आर्थिक लाभ प्राप्त किया है।

नकारात्मक पहलू:

जमीनी सच्चाई हालांकि कागजों पर यह खनन गतिविधि ‘विकास’ के रूप में दिख रही है, लेकिन स्थानीय लोगों का अनुभव इसके विपरीत है। ग्रामवासियों की शिकायतें गंभीर और चिंतन योग्य हैं:

1. रोजगार का अभाव माइंस में स्थानीय लोगों को अपेक्षित रोजगार नहीं मिला है। बाहर से मजदूर और तकनीकी कर्मचारी बुलाए जाते हैं।युवाओं को यह कहकर दरकिनार कर दिया जाता है कि उन्हें आवश्यक अनुभव या ट्रेनिंग नहीं है।

2. पर्यावरणीय संकट खनन के दौरान होने वाले धमाकों से मकानों में दरारें पड़ गई हैं। सड़कें धूल-मिट्टी से ढकी रहती हैं और गांव में प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ गया है। पौधे नहीं लगाए गए, जिससे हरियाली घट रही है।

3. अधिकारों की अनदेखी : CSR (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) के तहत जो सामाजिक कार्य माइंस को करने चाहिए, वे अक्सर नहीं किए जाते।

4. सामाजिक-आर्थिक असमानता कुछ बाहरी ठेकेदार और मालिक लाभ कमा रहे हैं, जबकि स्थानीय जनता को नुकसान झेलना पड़ रहा है।संसाधनों का शोषण हो रहा है पर लाभ के हिस्से में से कुछ अंश ग्राम के सामाजिक विकास, ग्राम में शिक्षा के विस्तार,ग्राम की मूलभूत जरूरतें,ग्राम का सौंदर्यकरण में लगाने की उम्मीद की जाती है लेकिन सब उम्मीदें बेकार नजर आती है।

निष्कर्ष:

विकास बनाम विनाश की लड़ाई : बघेरा ग्राम में ग्रेनाइट खनन एक दुधारी तलवार बन चुका है—एक ओर जहां संभावनाएं हैं, वहीं दूसरी ओर स्थानीय हितों की अनदेखी, पर्यावरणीय संकट, और सामाजिक असंतुलन, ग्राम के विकास में उनकी भूमिका ने इस प्रक्रिया को विवादास्पद बना दिया है।यदि यह खनन कार्य सरकारी मापदंडों के अनुसार, स्थानीय जनभागीदारी के साथ, और पारदर्शी योजनाओं के अंतर्गत किया जाए, तो यह ग्राम के लिए वरदान सिद्ध हो सकता है। अन्यथा, यह विकास की आड़ में सांस्कृतिक, सामाजिक और प्राकृतिक विनाश का कारण बनेगा।

सुझाव

1. पंचायत को खनन कंपनियों से CSR के तहत गांव में जल, स्वास्थ्य और शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण, ग्राम विकास पर निवेश करवाना चाहिए।

2. स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षण देकर रोजगार देना अनिवार्य किया जाए।

3. पर्यावरण सुरक्षा के लिए धूल नियंत्रण, वृक्षारोपण, और धमाका सीमा तय होनी चाहिए।

4. खनन कार्यों की स्थानीय स्तर पर निगरानी समिति बनाई जाए।”विकास वहीं सार्थक होता है, जो सबको साथ लेकर चले। केवल आंकड़ों का विकास अगर ज़मीन की सच्चाई को नज़रअंदाज़ करे तो वह दीर्घकाल में विनाशकारी सिद्ध होता है।”

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