जाँच अधिकारी मनमाने तरीके से बैंक खातों को फ्रीज नहीं कर सकते-राज.उच्च न्यायालय

- दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 102(3) के तहत मजिस्ट्रेट को सूचना देना आवश्यक
जोधपुर 26 जून केकड़ी पत्रिका ) राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधिपति मनोज कुमार गर्ग ने आपराधिक याचिका का निस्तारण करते हुए याचिका कर्ता कैलाश कंवर पत्नि हुक्म सिंह,विक्रम सिंह पुत्र हुक्म सिंह व नारायण सिंह पुत्र विक्रम सिंह द्वारा प्रस्तुत याचिका स्वीकार करते हुए उनके बैंक खातों को फ्रीज करने की कार्यवाही को अवैध व नियम विरुद्ध मानते हुए न्यायिक मजिस्ट्रेट व अपर जिला न्यायाधीश के आदेश को रद्द कर करते हुए उनके बैंक खातों को चालू करने के निर्देश दिए।
प्रकरण के तथ्यों के अनुसार पुलिस थाना पुलिस थाना केलवा जिला राजसमंद में दर्ज मुकदमे में जाँच के दौरान अनुसन्धान अधिकारी ने याचिकाकर्ताओं के बैंक खातों को फ्रीज कर दिया जिस पर उन्होंने सम्बंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन किया जिसे मजिस्ट्रेट ने ख़ारिज कर दिया जिसकी रिवीजन पेश होने पर सत्र न्यायाधीश द्वारा उसे भी ख़ारिज कर दिया गया जिससे व्यथित होकर प्रार्थीगण ने मौजूदा याचिका प्रस्तुत की।
याचिकाकर्तागण के तर्क
-याचिका कर्ता गण के अधिवक्ता का मुख्य तर्क यह रहा कि पुलिस थाना में दर्ज प्राथमिकी में मौजूदा प्रार्थियों के ऊपर गबन का कोई आरोप नहीं है।गबन का मुख्य आरोप हुक्म सिंह पर है जबकि प्रार्थी गण उसकी पत्नि व पुत्र हैं।प्रार्थीगण विधिवत पंजीकृत आयकर दाता हैं और उनके सभी लेनदेन पार दर्शी और जवाब देह हैं जिनके पूरे बैंक खातों को फ्रीज करना अन्यायपूर्ण है। *पुलिस एजेंसी द्वारा खातों को फ्रीज करने से पूर्व निकततम मजिस्ट्रेट को सूचना नहीं देकर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 102(3) के अनिवार्य प्रावधानों की पालना नहीं किये जाने से भी खातों को फ्रीज किये जाने की कार्यवाही अवैध है।
इसके साथ ही प्रार्थीगण का तर्क रहा कि जाँच अधिकारी आपराधिक कानून के तहत निर्धारित प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को दरकिनार नहीं कर सकते न्यायाधिपति मनोज कुमार गर्ग ने दोनों पक्षो की दलीले सुनने के बाद निर्देश दिया कि जांच अधिकारियों द्वारा यांत्रिक तरीके से बैंक खातों को अनुचित तरीके से फ्रीज करना भारतीय व्यवसायों और कॉर्पोरेट संस्थाओं के लिए एक बढ़ती हुई चिंता के रूप में उभरा है।
इस तरह की कार्यवाहीयां अक्सर केवल आरोपों या संदेहों पर आधारित होती हैं कि दागी धन को निर्दोष पक्षों के खातों में जमा किया गया है,चाहे वे व्यावसायिक संस्थाएं हों या व्यक्ति,बिना आरोपी पर औपचारिक रूप से आरोप लगाए या यहां तक कि प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) में नाम दर्ज किए।नतीजतन,जांच के दौरान खातों को फ्रीज किया जा सकता है,भले ही खाताधारक किसी अपराध में सीधे तौर पर शामिल हो या नहीं।यह अभ्यास किसी व्यवसाय के परिचालन कामकाज को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है और संबंधित पक्षों पर महत्वपूर्ण वित्तीय कठिनाइयां डाल सकता है,जो अक्सर उन्हें गंभीर संकट में डाल देता है।
इस चर्चा में,यह न्यायालय इस मुद्दे पर वैधानिक प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों और कानूनी स्थिति को रेखांकित करना चाहता है और मनमाने ढंग से बैंक खातों को फ्रीज करने के मामलों में पीड़ित पक्ष के लिए उपलब्ध कानूनी उपायों पर प्रकाश डालना चाहता है।उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट के निर्णय मुक्ताबेन एम मशरू बनाम राज्य (एन सी टी दिल्ली ) व सुप्रीम कोर्ट के निर्णय टी.सुब्बू लक्ष्मी बनाम पुलिस आयुक्त उषा माहेश्वरी बनाम राज्य न्यायिक दृष्टांटो का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया की दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 102(3) के प्रावधानों की पालना किया जाना आवश्यक है जिसके अभाव में की गई कार्यवाही अवैध है और तद नुसार निर्देश जारी किया।
- सादर-डॉ.मनोज आहूजा एडवोकेट,अध्यक्ष बार एसोसिएशन केकड़ी, मोबाइल नंबर 9413300227