23 June 2025

शोक्या खेड़ा के संकट मोचन बालाजी: विस्थापन में भी अडिग रहे आस्था के प्रतीक, 41 फीट ऊंचा मंदिर बना एकता और विश्वास का केन्द्र

0
Picsart_25-06-23_08-36-20-221

{"remix_data":[],"remix_entry_point":"challenges","source_tags":["local"],"origin":"unknown","total_draw_time":0,"total_draw_actions":0,"layers_used":0,"brushes_used":0,"photos_added":0,"total_editor_actions":{},"tools_used":{"transform":1},"is_sticker":false,"edited_since_last_sticker_save":true,"containsFTESticker":false}

सावर (अजमेर) 23 जून (केकड़ी पत्रिका) अजमेर जिले की सावर पंचायत समिति क्षेत्र के शोक्या खेड़ा गांव में स्थित संकट मोचन बालाजी का मंदिर आज आस्था और श्रद्धा का जीवंत केंद्र बना हुआ है। यह स्थान न केवल धार्मिक रूप से पूजनीय है, बल्कि विस्थापन की पीड़ा के बीच लोगों की सामूहिक एकता और विश्वास का अमिट प्रतीक भी है।

बांध बना,गांव छूटा,पर भक्ति रही अडिग

करीब 45 वर्ष पूर्व, जब बिसुदनी बांध का निर्माण हुआ तब शोक्या खेड़ा गांव को विस्थापित किया गया। गांव के लोग तीन नई जगहों — चौकी का झौपडा, बड़ा झोपड़ा, और बीड का झोपड़ा में बस गए।

यह तीनों ढाणियां भले ही भौगोलिक रूप से लगभग 1 किलोमीटर के दायरे में हैं, लेकिन भावनात्मक रूप से आज भी एकजुट हैं और इस एकता का सबसे बड़ा केंद्र बना है — शोक्या खेड़ा का संकट मोचन बालाजी मंदिर।

बाकी देवता गए नए स्थान मान्यता के अनुसार बालाजी ने कहा – मैं नहीं जाऊंगा

गांव के विस्थापन के समय ग्रामीण अपने देवी-देवताओं को साथ ले गए चारभुजा भगवान को मैन बड़ा झोपड़ा,सगस जी महाराज को चौकी का झोपड़ा,रामदेव जी मंदिर बीड का झोपड़ा में स्थापित किया गया लेकिन जब संकट मोचन हनुमान जी (बालाजी) को स्थानांतरित करने की बात आई, तो मान्यता है कि उन्होंने कहा होगा:

“मैं सभी का हूं। यदि किसी एक ढाणी में चला गया तो बाकी भक्तों को पीड़ा होगी। मैं यथास्थान ही रहूंगा, ताकि सभी मुझसे जुड़े रहें।”

छोटे से धोरे पर विराजे दो देव : भक्ति और शक्ति का संतुलन

बालाजी आज भी एक छोटे से धोरे (टीले) की एक ओर विराजमान हैं, और दूसरी ओर भगवान शंकर का मंदिर स्थित है। यह दृश्य न केवल भव्य है, बल्कि यह शक्ति और भक्ति के संतुलन का प्रतीक बन गया है।

पूर्वमुखी मूर्ति :हर मुराद होती है पूरी

मंदिर में बालाजी की मूर्ति पूर्व दिशा की ओर स्थापित है। भक्तों का कहना है कि यहां सच्चे मन और श्रद्धा से मांगी गई हर मन्नत अवश्य पूरी होती है।कोई संतान सुख के लिए आता है, कोई बीमारी से मुक्ति के लिए — और हर मंगलवार व शनिवार को यहां दर्शनार्थियों की लंबी कतारें लगती हैं।

भक्तों की आस्था से बना भव्य धरोहर

इस मंदिर का पुनर्निर्माण भक्तों के सहयोग से हुआ।लाखों रुपये की लागत से बने इस मंदिर का शिखर 41 फीट ऊंचा है ,जो यह दर्शाता है कि श्रद्धा की नींव पर खड़ा कोई भी निर्माण केवल ईंट-पत्थर का नहीं होता, वह लोगों की आस्था और आत्मा से जुड़ा होता है।

तीन गांव,एक मंदिर ,एक विश्वास

विस्थापन ने गांव को तीन भागों में बांट दिया, लेकिन बालाजी मंदिर ने सबको फिर से जोड़ दिया।आज भी चौकी का झोपड़ा, मैन बड़ा झोपड़ा और बीड का झोपड़ा,तीनों गांवों के लोग यहां बराबर आते हैं, पूजा करते हैं, भोग चढ़ाते हैं और मन की बात बालाजी से कहते हैं।

बालाजी मंदिर :एक स्थान, अनेक भावनाएं

एक पीढ़ी की विस्थापन की वेदना,दूसरी पीढ़ी की सांस्कृतिक विरासत और नई पीढ़ी के लिए आस्था और एकजुटता की शिक्षा,शोक्या खेड़ा बालाजी का यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि यह एक संघर्ष, श्रद्धा और समर्पण की कहानी है।यह बताता है कि जब गांव उजड़ते हैं, तब ईश्वर ही वह शक्ति हैं जो लोगों को जोड़ते हैं, संभालते हैं और आश्रय बनते हैं।(दिलखुश मोटिस की रिपोर्ट)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed

You cannot copy content of this page