22 October 2025

काव्य/मारवाड़ी शायरी:”धन्धो कर धन जोडल्यो”

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धन्धो कर धन जोडल्यो लाखां बीच करोड़,
मरती बेलयां मानवी लेसी सूत कनकती तोड़!

खाल्यो पिल्यो खरचल्यो करल्यो जीव की सेर,
ई मनख जूण सा पावणा मिलसी न दूजी बेर!

सुतां सुतां क्या करे मानखां सुतां आवे रे नींद ,
काल सिराणे उभो ज्यों सज तोरण पर बिन्द!

ना कहीं ख़ुशी बिकती ना कहीं गम बिकता है,
लोग गलतफहमी पाले हैं की मरहम बिकता है!

इंसान ख्वाइशों से बंधा एक जिद्दी परिंदा है,
उम्मीदों से ही घायल और उम्मीदों पे जिंदा है!

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