किवदंतियों के अनुसार दशहरा पर इस पक्षी के दर्शन होते है शुभ

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कुशायता 12 अक्टूबर (केकड़ी पत्रिका न्यूज/हंसराज खारोल) बात आस्था पर विश्वास की हो तो त्योंहार और उत्सव का अपना अलग ही महत्व है जिसमे किवदंती,कथा और प्रकृति की बात नही हो ऐसा हो नही सकता।

ग्राम पिपलाज के राजकुमार पाराशर ने बताया कि दशहरा के दिन इस विशेष पक्षी के दिखाई देने को शुभ माना जाता है और उसके देखने से अशुभ भी शुभ हो जाता है, तो वहीं शुभ कार्य तो और भी अच्छे तरीके से पूरा हो जाता है।

इस पक्षी को भगवान शंकर के एक स्वरूप के रूप में जाना जाता है। आइए जानते हैं इस पक्षी के बारे में और ऐसी जानकारी जो शायद ही आपने पहले कहीं पढ़ी होंगी। युद्ध शुरू करने से पहले किए दर्शन विजया दशमी के दिन ही प्रभु श्री राम ने रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्त कर माता सीता को उससे छुड़ाया था।

माना जाता है कि रावण के साथ अंतिम युद्ध करने के पहले श्री राम ने नीलकंठ पक्षी के दर्शन किए थे। इसी के चलते मान्यता हो गयी कि दशहरा के दिन नीलकंठ के दर्शन कर निकलने से काम बन जाते हैं। एक अन्य कहानी के अनुसार रावण के वध के बाद ब्रह्म हत्या के पाप से बचने के लिए श्री राम ने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ भगवान शिव की पूजा की तो उन्होंने नीलकंठ रूप में ही दर्शन दिए।
शुभ शकुन का है प्रतीक रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने भगवान श्रीराम की बारात के निकलने का बहुत ही सुंदर चित्रण करते हुए लिखा, कि बारात निकलते समय सुंदर शुभदायक शकुन होने लगे जिसमें नीलकंठ पक्षी बायीं ओर दाना चुग रहा है। स्पष्ट है कि यह शकुन मानों समस्त मनोकामना को पूर्ण करने वाला होता है। इसलिए नीलकंठ पक्षी का दिखना हमारे कार्यों के पूर्ण होने का संकेत है।महादेव का स्वरूप अमृत की प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन में अमृत के पहले कालकूट विष निकला जो बहुत ही घातक था। उसकी तेजी से सभी जीव जलने लगे तब देवताओं ने महादेव से उसे ग्रहण करने की प्रार्थना की। महादेव विष के प्याले को पीकर अपने गले में ही रोक लिया जिससे उनका गला नीला हो गया और नीलकंठ कहलाने लगे।

इन लोकोक्तियों में नीलकंठ की मान्यता: देश के कुछ स्थानों पर नीलकंठ को भगवान राम का प्रतिनिधि मान कर कहा जाता है, “नीलकंठ तुम नीले रहियो, दूध भात का भोजन करियो, हमरी बात राम से करियो।” एक अन्य लोकोक्ति में नीलकंठ के दर्शन को पवित्र गंगा स्नान के समान बताया गया है, “नीलकंठ के दर्शन पाए, घर बैठे गंगा नहाए।”
पुराने समय में ऐसा था प्रचलन दशहरा के दिन सुबह उठते ही नीलकंठ पक्षी के दर्शन शुभ माने गए हैं।

पुराने समय में ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ लोग नीलकंठ पक्षी को लेकर घर-घर जाकर कुंडी खटखटाते थे कि बाहर आकर शकुन देख लें, शकुन दर्शन के बदले उन्हें दक्षिणा मिलती थी।

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