वैवाहिक जीवन के सुख और समृद्धि का पर्व कजली तीज, 22 अगस्त को मनाई जाएगी सातुड़ी तीज

0

कुशायता 21 अगस्त (,केकड़ी पत्रिका न्यूज पोर्टल/हंसराज खारोल) हरियाली तीज के बाद आने वाली कजरी तीज सुहागिनों के लिए खास होती है. इस दिन विवाहित महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती के साथ चंद्रमा की पूजा करती हैं. इसे सातूड़ी तीज या बड़ी तीज के नाम से भी जानते हैं।

कजरी तीज के दिन सुहागिनें पति की लंबी की कामना के लिए व्रत रखती हैं. भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की तृतीया को कजरी तीज का त्योहार मनाया जाता है. यह त्योहार 22 अगस्त को मनाया जाएगा. पंडित राजकुमार पाराशर निवासी पिपलाज ने बताया कि भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि 21 अगस्त 2024 को शाम 05.06 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 22 अगस्त 2024 को दोपहर 01 बजकर 46 मिनट पर समाप्त होगी।

उदया तिथि के अनुसार कजरी तीज 22 अगस्त को मनाई जाएगी. यह पर्व उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान सहित कई राज्यों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. कजरी तीज को कजली तीज, बूढ़ी तीज व सातूड़ी तीज भी कहा जाता है. जिस तरह से हरियाली तीज, हरतालिका तीज का पर्व महिलाओं को लिए बहुत मायने रखता है।

उसी तरह कजरी तीज भी सुहागन महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण त्योहार है:: ज्योतिषाचार्य राजकुमार पाराशर निवासी पिपलाज ने बताया कि हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि यानी रक्षा बंधन के तीन दिन बाद कजरी तीज मनाई जाती है. कजरी तीज को कज्जली तीज भी कहा जाता है. हरियाली और हरितालिका तीज की तरह कजरी तीज भी अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए रखा जाता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए दिन भर निर्जला व्रत रखती हैं और करवाचौथ की तरह शाम के समय चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण करती हैं. इस दिन शिव जी और माता पार्वती की पूजा की जाती है. मान्यता है कि कजरी तीज के दिन विधि पूर्वक पूजा करने से भगवान शिव और माता पार्वती प्रसन्न होते हैं. *ज्योतिषाचार्य राजकुमार पाराशर निवासी पिपलाज ने बताया कि हरियाली तीज, हरतालिका तीज की तरह कजली तीज भी सुहागन महिलाओं के लिए अहम पर्व है:।

वैवाहिक जीवन की सुख और समृद्धि के लिए यह व्रत किया जाता है. कहा जाता हैं कि इस दिन जप कन्या या सुहागने पूरे श्रद्धा से अगर शिव भगवान और माता पारवती की पूजा की जाए तो उन्हें अच्छा जीवनसाथी सदा सौभाग्यवती होने का वरदान प्राप्त होता है.माना जाता हैं की इस दिन मां पार्वती ने शिव जी को अपनी कठोर तपस्या के बाद प्राप्त किया था. मान्यता है कि कजली तीज के मौके पर विशेष रूप से गौरी की पूजा करें. व्यक्ति की कुंडली में चाहे कितने ही बाधाए क्यों न हों, इस दिन पूजा से नष्ट किए जा सकते हैं. लेकिन इसका फायदा तभी होगा जब कोई अविवाहिता इस उपाय को खुद करे.।

ज्योतिषाचार्य राजकुमार पाराशर निवासी पिपलाज ने बताया कि कजली तीज के बारे में मान्यता है कि आज के दिन ही मां पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त किया था:।इसके लिए उन्हें काफी कठोर तपस्या करनी पड़ी थी. कजरी तीज के दिन सुहागिनों को भगवान शिव और पार्वती की पूजा अर्चना करनी चाहिए. बताया जाता है कि इससे उन कन्याओं को अच्छे वर की प्राप्ति होती है, जिनकी शादी नहीं हुई है।

पति के साथ और अच्छे रिश्ते बनाने के लिए कुछ ऐसे काम होते हैं, जिन्हें न तो सुहागिनों को करना चाहिए और न ही पति को. ये काम हैं पति या पत्नी से छल, गलत व्यवहार, परनिंदा आदि. पांचवे माह भादों के कृष्ण पक्ष की तीज को कजली तीज के रूप में मनाया जाता है. आज के दिन शादीशुदा महिलाएं और कुंवारी लड़कियां व्रत करती हैं जो कि उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

कजली तीन के दिन सुहागिन व्रत रखती हैं. उन्हें आज के दिन श्रृंगार करना चाहिए. इसमें मेहंदी, चूड़ियां शामिल हैं. वहीं, शाम के समय शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करनी चाहिए. इस दिन पत्नी अपने पति की लंबी उम्र के लिए उपासना करती हैं. कजली तीज के दिन घर में झूला डाला जाता है और औरतें इसमें झूला झूलती हैं. इस दिन महिलाएं अपनी सहेलियों के साथ इकट्ठा होती हैं पूरा दिन नाच गाना करती हैं. औरतें अपने पति के लिए और कुवारी लड़कियां अच्छा पति पाने के लिए व्रत रखती है.।

कजरी तीज तिथि: भविष्यवक्ता एवं कुंडली विश्लेषक राजकुमार पाराशर निवासी पिपलाज ने बताया कि पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि 21 अगस्त 2024 को शाम 05.06 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 22 अगस्त 2024 को दोपहर 01 बजकर 46 मिनट पर समाप्त होगी. उदया तिथि के अनुसार इस साल कजरी तीज 22 अगस्त को मनाई जाएगी.।

पूजा मुहूर्त: भविष्यवक्ता राजकुमार पाराशर निवासी पिपलाज ने बताया कि कजरी तीज पर पूजा भोर का तारा देखकर की जाती है. पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातः 04:26 से प्रातः 05:10 तक रहेगा. ।

गाय की होती है पूजा:: कुंडली विश्लेषक राजकुमार पाराशर निवासी पिपलाज ने बताया कि इस दिन गेहूं, चना और चावल को सत्तू में मिलाकर पकवान बनाएं जाते है. व्रत शाम को सूरज ढलने के बाद छोड़ते है. इस दिन विशेष तौर पर गाय की पूजा की जाती है. आटे की रोटियां बनाकर उस पर गुड चना रखकर गाय को खिलाया जाता है. इसके बाद व्रत तोड़ा जाता है.।

पूजन विधि:: भविष्यवक्ता एवं कुंडली विश्लेषक राजकुमार पाराशर निवासी पिपलाज ने बताया कि सर्वप्रथम नीमड़ी माता को जल व रोली के छींटे दें और चावल चढ़ाएं. नीमड़ी माता के पीछे दीवार पर मेहंदी, रोली और काजल की 13-13 बिंदिया अंगुली से लगाएं. मेंहदी, रोली की बिंदी अनामिका अंगुली से लगाएं और काजल की बिंदी तर्जनी अंगुली से लगानी चाहिए. नीमड़ी माता को मोली चढ़ाने के बाद मेहंदी, काजल और वस्त्र चढ़ाएं. दीवार पर लगी बिंदियों के सहारे लच्छा लगा दें. नीमड़ी माता को कोई फल और दक्षिणा चढ़ाएं और पूजा के कलश पर रोली से टीका लगाकर लच्छा बांधें. पूजा स्थल पर बने तालाब के किनारे पर रखे दीपक के उजाले में नींबू, ककड़ी, नीम की डाली, नाक की नथ, साड़ी का पल्ला आदि देखें. इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें.।

कजली तीज व्रत के नियम:,: कुंडली विश्लेषक राजकुमार पाराशर निवासी पिपलाज ने बताया कि यह व्रत सामान्यत: निर्जला रहकर किया जाता है. हालांकि गर्भवती स्त्री फलाहार कर सकती हैं. यदि चांद उदय होते नहीं दिख पाये तो रात्रि में लगभग 11:30 बजे आसमान की ओर अर्घ्य देकर व्रत खोला जा सकता है. उद्यापन के बाद संपूर्ण उपवास संभव नहीं हो तो फलाहार किया जा सकता है.।

व्रत कथा: : भविष्यवक्ता राजकुमार पाराशर निवासी पिपलाज ने बताया कि एक गांव में गरीब ब्राह्मण का परिवार रहता था. ब्राह्मण की पत्नी ने भाद्रपद महीने में आने वाली कजली तीज का व्रत रखा और ब्राह्मण से कहा, हे स्वामी आज मेरा तीज व्रत है. कहीं से मेरे लिए चने का सत्तू ले आइए लेकिन ब्राह्मण ने परेशान होकर कहा कि मैं सत्तू कहां से लेकर आऊं भाग्यवान. इस पर ब्राहमण की पत्नी ने कहा कि मुझे किसी भी कीमत पर चने का सत्तू चाहिए. इतना सुनकर ब्राह्मण रात के समय घर से निकल पड़ा वह सीधे साहूकार की दुकान में गया और चने की दाल, घी, शक्कर आदि मिलाकर सवा किलो सत्तू बना लिया. इतना करने के बाद ब्राह्मण अपनी पोटली बांधकर जाने लगा. तभी खटपट की आवाज सुनकर साहूकार के नौकर जाग गए और वह चोर-चोर आवाज लगाने लगे. ब्राह्मण को उन्होंने पकड़ लिया साहूकार भी वहां पहुंच गया. ब्राह्मण ने कहा कि मैं बहुत गरीब हूं और मेरी पत्नी ने आज तीज का व्रत रखा है. इसलिए मैंने यहां से सिर्फ सवा किलो का सत्तू बनाकर लिया है. ब्राह्मण की तलाशी ली गई तो सत्तू के अलावा कुछ भी नहीं निकला. उधर चांद निकल आया था और ब्राह्मण की पत्नी इंतजार कर रही थी. साहूकार ने कहा कि आज तुम्हारी पत्नी को मैं अपनी धर्म बहन मानूंगा. उसने ब्राह्मण को सातु, गहने, रुपये, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर अच्छे से विदा किया. सभी ने मिलकर कजली माता की पूजा की. जिस तरह ब्राह्मण के दिन फिरे वैसे सबके दिन फिरे. *माता पार्वती को समर्पित है ।

कजरी तीज:: भविष्यवक्ता एवं कुंडली विश्लेषक राजकुमार पाराशर निवासी पिपलाज ने बताया कि माता पार्वती को यह त्योहार समर्पित है. 108 जन्म लेने के बाद देवी पार्वती, भगवान शिव से विवाह करने में सफल हुईं. इस दिन को निस्वार्थ प्रेम के सम्मान के रूप में मनाया जाता है. कजरी तीज का व्रत रखकर सुहागन महिलाएं अखंड सौभाग्य और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं. माना जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है. घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है. कजरी तीज को कजली तीज, बूढ़ी तीज और सातूड़ी तीज नाम से भी जाना जाता है।

. यह व्रत निर्जला किया जाता है. व्रत में स्त्रियां अन्न और जल का त्याग करती हैं. यह व्रत दांपत्य जीवन से जुड़ी परेशानियों को दूर करता है. इस दिन गायों की विशेष रूप से पूजा की जाती है. व्रत का पारण चंद्रमा के दर्शन करने और उन्हें अर्घ्य देने के बाद किया जाता है. इस दिन सुहागिन महिलाओं के साथ कन्याएं भी व्रत रखती हैं. सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती है तो वहीं कन्याएं अच्छा वर पाने के लिए इस व्रत को करती हैं. माना जाता है कि अगर किसी कन्या के विवाह में कोई बाधा आ रही है तो इस व्रत के प्रभाव से दूर हो जाती है. इस व्रत में माता गौरी को सुहाग की 16 सामग्री अर्पित की जाती हैं, वहीं भगवान शिव को बेल पत्र, गाय का दूध, गंगा जल, धतूरा आदि अर्पित किया जाता है. इस व्रत में शिव-गौरी की कथा का श्रवण विशेष फलदायी है.।

कजरी तीज पर सुहागिन स्त्रियां करें खास काम: ,: भविष्यवक्ता एवं कुंडली विश्लेषक राजकुमार पाराशर पिपलाज निवासी ने बताया कि विवाहित महिलाएं इस दिन दुल्हन की तरह तैयार होकर देवी पार्वती और शंकर जी की पूजा करती हैं तो उन्हें अखंड सौभाग्य का वरदान मिलता है. इस दिन सोलह श्रृंगार कर पूजा करना चाहिए. तीज पर महिलाएं पूजा पाठ के बाद लोकगीत जरूर गाएं. इससे वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा आती है. तीज पर झूला झूलने की परंपरा सदियों से चली आ रही है.।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed

You cannot copy content of this page