जिसके हृदय में दया की भावना नहीं उसका जीवन निषफल है-डॉ.श्री राजमती जी

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जैतारण 09 मई (केकड़ी पत्रिका न्यूज़ पोर्टल/डॉ. मनोज आहूजा ) जैतारण स्थित पावन धाम पर विराजित महाश्रमणी राजस्थान सिंहनी गुरुमाता महासती श्री पुष्पवती जी(माताजी) मारासा आदि ठाणा सात ने गुरुवार को धर्मसभा को संबोधित करते हुए उपप्रवर्तिनी मरूधरा शिरोमणि सदगुरुवर्या डॉ.श्री राजमती जी मारासा ने कहा कि दया धर्म का मूल है।

जिस प्रकार मूल के बिना वृक्ष नहीं टिक सकता वैसे ही दया के बिना धर्म रूपी कल्पवृक्ष नहीं टिकता।दया का पालन धर्म रूपी वृक्ष के मूल में जल सिंचन के समान हैं।सभी प्राणियों की आत्मवत रक्षा करना अपना परम धर्म है। धर्म से सुख की प्राप्ति होती है और पाप से दुःख की।दया जैसा कोई श्रेष्ठ धर्म नहीं है।

उन्होंने कहा कि मानवता के विकास के लिए दयार्द्र हृदय अनिवार्य है,जिसके हृदय में दया नहीं उसका जीवन निष्फल है।जिस प्रकार पानी से आर्द्र बनी भूमि में बीजारोपण हो सकता है उसी प्रकार करुणा से आर्द्र हृदय की भूमि में धर्म के बीजों का वपन हो सकता है।

डॉ.साध्वी राज रश्मि जी मारासा ने कहा लक्ष्मी बिजली के समान चंचल है,पाप कर्म का उदय हो तो चली जाएगी।मौज शौक में जितना खर्च कर रहे हो उतना दान धर्म में भी खर्च करने की भावना रखें तो पुण्य का उपार्जन भी होता रहेगा।

प्रत्येक कार्य को सोच विचार कर,यतना पूर्वक करने से जीवों की विराधना से बचोगे।यातना से हमारी प्रवृतियों का संशोधन होता है।डॉ.साध्वी राजऋद्धि जी ने कहा कि पुरुषार्थ हो तो पुरुषोत्तम बना जा सकता है।

अहंकार मिटाकर ही अरिहंत बनने का मार्ग प्रशस्त होता है।माया को त्याग कर महावीर बन सकते है और क्रोध को शांत रखकर कृष्ण जैसी महानता को प्राप्त कर सकते हैं।पाप मुक्ति का मार्ग यातना और कषाय दमन है।आत्मा में परमात्मा बनने की ताकत है लेकिन कर्मावरण तोड़ने का पुरुषार्थ तो करना पड़ेगा।

जैतारण स्थित श्री मरुधर केसरी पावन धाम पर परम पूज्या राजस्थान सिंहनी महाश्रमणी गुरुमाता महासती श्री पुष्पवती जी मारासा,परम पूज्या उपप्रवर्तिनी मरुधरा शिरोमणि सद्गुरुवर्या महासती श्री राजमती जी मारासा प्रखर वक्ता डॉ.साध्वी श्री राज रश्मि जी मारासा,निर्भीक वक्ता डॉ.साध्वी श्री राज ऋद्धि जी मारासा, तपवारिधि साध्वी श्री राजलक्षी जी मारासा मधुर व्याख्यानी साध्वी श्री राज वृद्धि जी मारासा,नव दीक्षिता साध्वी श्री राज कीर्ति जी मारासाआदि ठाणा-7 मौजूद है।

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