गुरूओ के गुण व उपकार हमेशा हृदय में रखना चाहिए – मुनि सुश्रुत सागर महाराज
मनाया आचार्य विधासागर महाराज एवं आर्यिका ज्ञान मति माताजी का अवतरण दिवस
केकड़ी 28 अक्टूबर (केकड़ी पत्रिका न्यूज पोर्टल) शहर में स्थित देवगांव गेट के पास विद्यासागर मार्ग पर स्थित चंद्रप्रभु चैत्यालय मे वर्षायोग के लिए विराजित मुनि सुश्रुत सागर महाराज ने आयोजित धर्मसभा में प्रवचन करते हुए कहा कि गुरूओ के गुण व उपकार हमेशा हृदय में रखना चाहिए। गुरूओ का एवं उपकारी के उपकारों को कभी भूलना नहीं चाहिए। गुरू के गुणों को सीखना चाहिए,धारण करना चाहिए। सभी चारित्रवान , तपस्वी दिगम्बर निर्ग्रन्थ गुरू हमारे लिए वंदनीय व पूजनीय है। गुरू के मुखारविंद से निकले शब्दों में बहुत ताकत होती है और उनका बहुत ही गहन अर्थ और उद्देश्य होता है। गुरू के वचनों को जीवन में अमल करना चाहिए यही जीवन में सफलता दिलाते हैं।जीवन के अंधकार रूपी अज्ञान को गुरू ही दूर करते हैं। गुरू के बिना ज्ञान होना असम्भव है। गुरू की कठोर उक्तियां हमारे जीवन को फूल की तरह खिला सकती है। गुरूओ की आराधना,भक्ति करने से जगत में सम्मान व कीर्ति मिलती है।जिनका वर्तमान उज्जवल हो चुका है, उनके माध्यम से हमें भी अपने वर्तमान को सुधार लेना चाहिए इससे हमारा भी जीवन व भविष्य उज्ज्वल हो जायेगा।
मुनिराज ने आज शरद पूर्णिमा को जिनधर्म की दो दिव्य महान शक्तियों संत शिरोमणि आचार्य विधासागर महाराज एवं आर्यिका ज्ञानमती माताजी के अवतरण दिवस पर विशेष संबोधन दिया। उन्होंने बताया कि शरद पूर्णिमा को दिव्य नक्षत्र में दिव्य आत्माओं का जन्म होता है आज के दिन दो दिव्य शक्तियों का अवतरण हुआ था। दोनों ही महान आत्माओं ने जिनशासन की अभूतपूर्व प्रभावना की है, और अभी भी कर रहे हैं। दोनों ही विभूतियों अपने अपने जीवन को निस्पृह जी रहे हैं और सभी जीवों का भरपूर धर्म से जोड़ने का उत्तम सत्कार्य कर रहे हैं। दोनों ही तीक्ष्ण बुद्धि वाले हैं और स्व और पर का कल्याण कर रहे हैं।अनेक जनकल्याणकारी योजनाओं द्वारा जन जन का कल्याण कर रहे हैं।और जिनशासन को भी ऊंचाईयों पर पहुंचाया है। आज संत शिरोमणि आचार्य विधासागर महाराज का 78 वां एवं आर्यिका ज्ञानमती माताजी का 90 वां अवतरण दिवस है। महान पुरुषों की महोत्सव तिथियां अवश्य ही हमें खुलकर बड़े ही आनंदित, उत्साहित, भावविभोर, भक्तिपूर्वक मनाना चाहिए।
मुनिराज ने दोनों ही संतों की जीवनी एवं जीवन के कई प्रमुख प्रसंगों को बताया। उन्होंने बताया कि आचार्य विधासागर महाराज ने आजीवन नमक, गुड़,शक्कर, हरी,तेल का त्याग,चटाई का त्याग, सूखें मेवों का त्याग सहित अनेक प्रकार के त्याग कर रखे हैं वे नीरस आहार लेकर भी सरस व्यक्तित्व के धनी हैं आचार्य श्री ने जन कल्याण के भाव से कई चेतन व अचेतन कृतियों का सृजन किया है। सैकड़ों साधु संत इनसे दीक्षित है। कई ग्रंथों की इन्होंने रचना की है। मूकमाटी जैसे क्रांतिकारी आध्यात्मिक महाकाव्य का सृजन किया जो कि अनेक भाषाओं में अनुदित हुआ।जिस पर सौ से अधिक शोधार्थियों ने डी लिख,पी एच डी की उपाधि प्राप्त की। अनेक भाषाओं के ज्ञाता आचार्य श्री ने सैंकड़ो प्राचीन जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पड़े उपेक्षित तीर्थ क्षेत्रों का जीर्णोद्धार सहित प्रतिभास्थली,जैसी शैक्षणिक संस्थान, भाग्योदय तीर्थ जैसा चिकित्सा सेवा संस्थान, सैकड़ों गौशालाएं,भारत को इंडिया नहीं भारत कहें कि नारा, हथकरघा आदि अनेक देश व राष्ट्र को जन कल्याणकारी योजनाओं को जन-जन के कल्याण हेतु दिया। इनके व्यक्तित्व से सभी परिचित हैं इनका जीवन सहज,सरल, आडम्बर व प्रदर्शन से दूर सादगी के सौंदर्य से सुशोभित कठिन त्याग तपस्या साधना के धारी है। आर्यिका ज्ञान मति माताजी ने 500 से अधिक, सैंकड़ो ग्रंथों की रचना की और अभी भी कर रही है। हस्तिनापुर तीर्थक्षेत्र में जम्बूद्वीप की रचना अयोध्या तीर्थ क्षेत्र के निर्माण सहित कई क्षेत्रों का जीर्णोद्धार करवाया। दोनों ही संत जिनशासन की शान है।
दिगम्बर जैन समाज एवं वर्षायोग समिति के प्रवक्ता नरेश जैन ने बताया कि मुनि महाराज के प्रवचन से पहले आचार्य विधासागर महाराज एवं आचार्य सुनील सागर महाराज के चित्र अनावरण,दीप प्रज्ज्वलन एवं मुनि सुश्रुत सागर महाराज के पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य महेन्द्र कुमार हार्दिक कुमार छायांश पाटनी परिवार को मिला।
प्रातः श्रद्धालुओं ने मुनि सुश्रुत सागर महाराज के परम पावन सानिध्य में संत शिरोमणि आचार्य विधासागर महाराज एवं आर्यिका ज्ञानमती माताजी के गुणों का गुणगान पूजन भजन के माध्यम से करके धर्म लाभ का आनन्द उठाया। पूज्यों की पूजन व गुणों का गुणानुवाद करते हुए यह भावना रही कि हम भी अपने जीवन में इनका जैसा ही पायें और जिनशासन की प्रभावना के लिए संयम का मार्ग प्रशस्त करें।