दान लोभ के अभाव मे सत्पात्रों को दिया जाता है – मुनि सुश्रुत सागर महाराज
केकड़ी 26 सितंबर (केकड़ी पत्रिका न्यूज पोर्टल) केकड़ी शहर में चंद्रप्रभु चैत्यालय मे मुनिराज सुश्रुत सागर महाराज ने आयोजित धर्मसभा मे प्रवचन करते हुए कहा कि बाहरी धर्म और आत्मा के अंतरंग धर्म को जीवित रखने के लिए त्याग अत्यंत आवश्यक है।धर्म की इमारत त्याग रूपी नींव पर खड़ी होती है। त्याग के साथ दान भी जुड़ा रहता है। रूपया, पैसा,धन- धान्यादि सभी तरह की बाहरी वस्तुओं का दान ही त्याग माना जाता है। दान पराश्रित होता है।दान मे दो सदस्यों की आवश्यकता होती है। एक दान देने वाला और दूसरा दान लेने वाला। दान देने के पीछे नाम एवं मान की भावना नहीं होना चाहिए। स्वेच्छा व श्रद्धा के साथ ही दान देना चाहिए।दान मे यह ध्यान रखना आवश्यक है कि दान देने वाला यानि दाता योग्य हो, दान दी जाने वाली वस्तु दान योग्य हो एवं दान लेने वाला भी योग्य पात्र हो।दान चार प्रकार का होता है।औषध दान,शास्त्र दान,अभय दान और आहार दान।दान लोभ के अभाव मे सत्पात्रों मुनि, आर्यिका,उत्कृष्ट श्रावक,श्राविका को दोष से रहित द्रव्य का दान दिया जाता है,यही त्याग है। दान मे उसके प्रति मोह नहीं छूटता है, दान के बाद और कमाने की इच्छा होती है। त्याग से आशय है कि अंतरंग से जिसको सर्वथा रूप मे सम्पूर्ण तरह से छोड़ा जावे। त्याग वस्तु की अपेक्षा वस्तु के प्रति होने वाले रागादि परिणामो, ममत्व भावों का होता है। आत्मा मे उठने वाले अंतरंग परिणामों के त्याग फलस्वरूप वस्तु का त्याग तो स्वयं: ही हो जाता है। त्याग मे दूसरे की आवश्यकता नहीं होती है। त्याग के पश्चात किसी तरह की कोई इच्छा नहीं होती है। त्याग अंतरंग का धर्म है। सम्पूर्ण त्याग मुनिराज ही कर सकते हैं। त्याग, व्रत से जीवन का उत्थान होता है।
मुनिराज ने उत्तम त्याग धर्म का कठोरता से पालन करने वाले दादागुरु तपस्वी सम्राट आचार्य सन्मति सागर महाराज के जीवन के कई प्रासंगिक प्रसंग बताये। मुनिराज ने बताया कि आचार्य सन्मति सागर महाराज का गृहस्थ जीवन का नाम ओमप्रकाश था। इन्होंने अठारह वर्ष की अल्पायु मे आगरा के बेलनगंज मे आचार्य महावीर कीर्ति महाराज से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया। व्रत लेते ही आजीवन नमक का त्याग कर दिया। तेईस वर्ष की उम्र मे आजीवन शुद्र जल का त्याग कर,सात प्रतिमा के व्रती बने। मेरठ मे 1961 मे नेमिसागर नाम पाकर क्षुल्लक दीक्षा ली। क्षुल्लक दीक्षा लेते ही आजीवन दही,तैल और धी का त्याग कर दिया।
1962 मे सम्मेद शिखर जी मे आचार्य विमल सागर महाराज से दिगम्बर मुनि दीक्षा ली, नाम मुनि सन्मति सागर मिला। दीक्षा लेते ही आजीवन गुड और शक्कर का त्याग कर दिया। कलकत्ता 1975 मे आजीवन सभी प्रकार के अन्न,अनाजों का त्याग कर दिया।1998 मे सम्मेद शिखर जी की वंदना दर्शन करने पश्चात अविग्रह,प्रण किया कि आहार मे सबसे पहले अंजुली मे दूध लूंगा, तो ही आजीवन दूध लूंगा ।दूध नहीं मिलने पर आजीवन दूध का त्याग कर दिया।मथुरा (उ.प्र.) 1972 वर्षायोग मे एक दिन उपवास एक दिन आहार लिया, फिर दिन दो दिन का उपवास एक दिन आहार लिया। फिर तीन दिन उपवास एक दिन आहार और विशेष यह कि आहार मे मात्र मूंगफली व पानी ही ले जीवन के अंतिम दस वर्षों मे केवल छाछ और पानी ही आहार मे लिया। आचार्य सन्मति सागर महाराज वाणी सिद्ध थे इनके आशीर्वाद मे चमत्कार था जो कहते वो होता था। 72 वर्ष की कुल उम्र रही।इसमे 10000 से अधिक उपवास किए। रात्रि मे मात्र 3 धंटे ही अल्प निंद्रा लेते थे। और धंटो-धंटो खड़े रहकर खड्गासन ध्यान मे खड़े ही रहते थे। जीवन मे अनेकों उपसर्ग सहन किये इसलिए उपसर्ग – परिषहों के विजेता कहलाये। नि:स्पृह,शांत, सौम्य,कठोर तपस्वी,प्रशांत वाणी, अद्भुत तेज,अनुपम आभामंडल,सिंह के समान निर्भिक वृति वाले थे दादागुरु आचार्य सन्मति सागर महाराज। मुनिराज ने कहा कि ऐसी ही कठिन तपस्या की राह पर अब दीक्षागुरु आचार्य सुनील सागर महाराज चल रहे हैं।
पर्वाधिराज दशलक्षण महापर्व पर आठवें दिन उत्तम त्याग धर्म गुणों की पूजा आराधना की गई। श्रद्धालु श्रावको द्वारा जिनेन्द्र भगवान के अभिषेक पश्चात मंत्रों के उच्चारण के साथ-साथ सौभाग्यशाली मुख्यपात्रों अरिहंत बज और मनोज पाण्ड्या ने शांतिधारा की।अष्ट द्रव्यों से देव शास्त्र गुरु पूजन व नित्यमह पूजन सहित सोलह कारण पूजन,दशलक्षण धर्म की पूजा की गई व साथ ही अन्य अर्घ्य समर्पित किये गये। दशलक्षण महामंडल विधान मे उत्तम त्याग धर्म की पूजा करते हुए मंडल विधान पर ग्यारह श्रीफल अर्घ्य समर्पित किए।
” ॐ ह्लीं उत्तम त्याग धर्मांगाय नमः ” का एक सौ आठ बार जाप्य किया गया। अंत मे शांतिपाठ बाद विसर्जन पाठ किया गया।
दिगम्बर जैन समाज एवं वर्षायोग समिति के प्रवक्ता नरेश जैन ने बताया कि मुनि महाराज के प्रवचन से पहले चित्र अनावरण,दीप प्रज्ज्वलन एवं मुनि सुश्रुत सागर महाराज के पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य अनिल कुमार अनुपम कुमार प्रवीण कुमार जैन को मिला।
दोपहर मे मुनिराज सुश्रुत सागर महाराज द्वारा तत्त्वार्थसूत्र का बड़ी ही सरलता से अर्थ समझाया। शाम को आरती,भक्ति संगीत पश्चात ऋषभ भैया द्वारा प्रवचन किया गया।रात्रि मे विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए।