13 June 2025

अपनी चेतना को धर्म मार्ग पर लगाना चाहिए – मुनि सुश्रुत सागर महाराज

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केकड़ी 13 सितंबर (केकड़ी पत्रिका न्यूज़ पोर्टल) दिगम्बर जैन समाज एवं वर्षायोग समिति,केकड़ी अपनी चेतना को धर्म मार्ग पर लगाना चाहिए – मुनि सुश्रुत सागर महाराज देवगांव गेट के पास विद्यासागर मार्ग पर स्थित चंद्रप्रभु चैत्यालय में वर्षायोग के लिए विराजित मुनि सुश्रुत सागर महाराज ने आयोजित धर्मसभा मे प्रवचन करते हुए कहा है उन्होंने कहाकि प्रकाश के आते ही अंधेरा चला जाता हैं।दीपक जलाते ही अन्धकार गायब हो जाता है। दीपक जलाने का पुरूषार्थ करना आवश्यक होता है अन्धकार स्वयं ही चलायमान हो जाता है। मुश्किल से मिलते इस मनुष्य जीवन मे सम्यक्त्व का बहुत महत्व है। सम्यकदर्शन प्राप्त होते ही मिथ्यादर्शन का विलोप हो जाता है,नष्ट हो जाता है। सम्यक्त्व आत्मा की क्रिया है। आत्मिक सत्पुरूषार्थ के द्वारा ही इसकी उपलब्धि होती है। और यह मोक्ष महल की पहली सीढ़ी है। सम्यकदर्शन अपने आत्मस्वरुप का बोध , ज्ञान कराता है, यही से हमारे जीवन के विशुद स्वरूप का प्रकट होना चालू होता है। स्वभाव का ज्ञान होने से उसके जीवन के विकारी परिणाम दूर होकर जीवन मे शांति ,सहजता, सरलता बढ़ने लगती है। मुनिराज ने कहा कि हमें अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना आना चाहिए जिससे हमारी सोच मे गहनता आवे। किसी भी बात की प्रतिक्रिया देने से पहले उसको उसी रूप मे देखना और सोचना चाहिए जिस रूप मे वह कही गई है। हमारी सोच ही परिणामों को जन्म देती है। हमारे पुराने कर्म ही निमित्त बनकर हमें शुभ या अशुभ फल देने वाले होते है। बस इनके उदय मे अत्यधिक दुःखी व सुखी नहीं होते हुए प्रशम,समभाव रखते हुए समीचीन सोच रखनी चाहिए। यह भाव जीवन को संयमित एवं संतुलित बनाएगा।

मुनिराज ने कहा कि हमें अपनी चेतना को धर्म मार्ग पर लगाना चाहिए। अपनी दृष्टि को भेदज्ञान के ज्ञान से परिपूर्ण करना चाहिए। शरीर और संसार की अनादिकाल से चली आ रही प्रवृत्ति को हटाकर आत्मा की सच्ची वास्तविकता को पहचान कर सन्मार्ग पर बढ़ना चाहिए। धर्म हमारी आत्मा मे विराजें और हम धर्म के मार्ग पर ही चले हमेशा ऐसी भावना हृदय मे धारण करना चाहिए। दिगम्बर जैन समाज एवं वर्षायोग समिति के प्रवक्ता नरेश जैन ने बताया कि मुनिराज के प्रवचन से पहले चित्र अनावरण, दीप प्रज्ज्वलन एवं मुनि सुश्रुत सागर महाराज के पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य प्रकाशचंद विकास कुमार आर्जव पाण्डया परिवार को मिला।

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