जहां दया है वहां दुर्गुणों का मिलना मुश्किल – मुनि सुश्रुत सागर महाराज

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केकड़ी। 12 सितंबर (केकड़ी पत्रिका न्यूज पोर्टल) देवगांव गेट के पास विद्यासागर मार्ग पर स्थित चंद्रप्रभु चैत्यालय में वर्षायोग के लिए विराजित मुनि सुश्रुत सागर महाराज ने आयोजित धर्मसभा मे प्रवचन करते हुए कहा कि दया, करूणा, अनुकम्पा, परोपकार ये मनुष्य जीवन के परम धर्म है।इनके द्वारा ही मनुष्य मे
मानवीयता आती है।ऐसे कार्य ,भाव मनुष्य को जीवन मे उत्कृष्टता की ओर ले जाते हैं। दयालुता जीवन मे दुर्गुणों को हटाती है यानि जहां दया है वहां दुर्गुणों का मिलना मुश्किल है।दयाशील मनुष्य के उदार हृदय मे करूणा का निर्मल स्त्रोत निरन्तर बहता रहता है।दयावान का हृदय विशाल होता है उसके हृदय मे सबके लिए जगह होती है।अपना पराया,गरीब अमीर,छोटा बड़ा का भेदभाव उसके हृदय और मन से दूर ही रहता है। सभी को समान समझता है। दूसरों के दुःखों को दूर करने के लिए हमेशा ‌तत्पर रहता है।किसी को भी कष्ट मे देखकर दलालु मनुष्य का हृदय द्रवित हो जाता है।
मुनिराज ने कहा कि जो जैसा करता है उसको वैसा ही फल मिलता है।जो मिश्री खायेगा उसका मुंह अवश्य ही मीठा होता है। अच्छे विचार,परिणाम भाव शरीर और मन दोनों को प्रसन्नता देते है। यह निश्चित है कि जो दूसरों की भलाई करता है वह भी भलाई पाता है। अच्छे संस्कार और चरित्र वाले मनुष्य का जीवन सुगन्धित फूल के समान होता है। जो मनुष्य दूसरों की भलाई को अपने हृदय का हार बनाये हुए हैं।सभी जन उनको हमेशा ही सम्मान की दृष्टि से देखती है।
दिगम्बर जैन समाज एवं वर्षायोग समिति के प्रवक्ता नरेश जैन ने बताया कि मुनिराज के प्रवचन से पहले चित्र अनावरण, दीप प्रज्ज्वलन एवं मुनि सुश्रुत सागर महाराज के पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य भागचंद कैलाश चंद सुभाषचंद सुरेन्द्र कुमार टोंग्या परिवार को मिला।

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