एक समय का स्वानुभव अनंत भवों को सुधारता है -मुनि सुश्रुत सागर
केकड़ी 09 अगस्त केकड़ी पत्रिका न्यूज़ पोर्टल) जिला मुख्यालय में देवगांव गेट के पास विद्यासागर मार्ग पर स्थित चंद्रप्रभु चैत्यालय में वर्षायोग के लिए विराजित मुनिराज सुश्रुत सागर महाराज ने आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि बिजली का करन्ट और ऊर्जा, मंत्रों की ताकत, गुरु का आशीर्वाद आंखों से दिखाई नहीं देता लेकिन होता तो है ही, फलित होता अनुभव मे तो आता ही है। बहुत से उदाहरण है जो कि इनकी उपस्थिति का भान कराते है।
उन्होंने कहा कि जीवन में प्लास्टिक का उपयोग नहीं करना चाहिए। प्लास्टिक को बनाने में ली जाने वाली रसायन वस्तुएं, सीसा, कैडमियम,पारा आदि शरीर के लिए विषाक्त और हानि पहुंचाने वाले वाले होते है। प्लास्टिक का उपयोग मुख्यतः कैंसर का कारण है इसके साथ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता,पाचन तंत्र, लीवर,आंते, इम्यून सिस्टम को कमजोर करता है, बच्चों के शरीर के विकास में बाधक है। प्लास्टिक का उपयोग खाद्य सामग्री के लिए तो लेना ही नहीं चाहिए।
मुनिराज ने कहा कि प्रायः देखने में आता है कि प्लास्टिक और पालिथीन में रसोई से बची खाध सामग्री, सब्जियों के छिलके आदि भरकर सड़क पर डाल देते है जिनमें असंख्य छोटे जीव चींटी आदि आ जाते है, गाय ,पशु पालिथीन समेत खा लेते है जिससे वह पोलीथीन उसके पेट में, आंतों में फंस जाती है और इससे इनकी मृत्यु तक हो जाती है। यह अहिंसा के पालन में भी बाधक है। हिंसा रूपी पाप से बचने के लिए हमें ध्यान रखना होगा कि हमसे अज्ञानवश,अनजाने में,लापरवाही में ऐसा कोई काम नहीं होवे जिससे किसी भी तरह से हमारे निमित्त से जीवो की हिंसा होवे, कार्य करते समय अवश्य ही इतना विवेक और ध्यान रखना चाहिए। प्लास्टिक नष्ट नहीं होता, धुलता नहीं है यह इसका सबसे बड़ा दोष है।
मुनिराज ने कहा कि प्लास्टिक निम्न श्रेणी में आता है। आजकल मंदिरों में प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है, दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है,जो कि मंदिरों के अतिशय को कम कर रहा है। मंदिरों में प्लास्टिक का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। यह नेगेटिव ऊर्जा फैलाता है और पाज़िटिव एनर्जी को खींचता है।
मुनिराज ने कहा कि व्यक्ति के जीवन में लकड़ी का बड़ा ही संयोग है।जन्म से लेकर मरण तक व्यक्ति लकड़ी का साथ हमेशा ही रहता है।पालने से लेकर अर्थी और अंतिम संस्कार तक के सफर में लकड़ी से संबंध बना ही रहता है। बस पालने से लेकर अर्थी पर लेटने के समय से पूर्व अपनी आत्मा में निराकुल भाव,निर्मोह भाव चौबीस परिग्रहों से रहित भाव जगा देना चाहिए ये ही हमारे परमार्थ के मार्ग संयम मार्ग पर चलाने और मुक्ति के लिए आवश्यक है। अंतिम संस्कार की आग हमको निगले उससे पहले जो आत्मा के मोह राग द्वेष विकारी परिणाम है, स्वानुभव आत्मदृष्टि, शुद्धात्मानुभूति द्वारा इन संसार के विकारी परिणामों को निगल जाना चाहिए।एक समय का स्वानुभव अनंत भवों को सुधारता है।
दिगम्बर जैन समाज एवं वर्षायोग समिति के प्रचार संयोजक नरेश जैन ने बताया कि मुनिराज के प्रवचन से पहले चित्र अनावरण, दीप प्रज्ज्वलन एवं मुनि सुश्रुत सागर महाराज के पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य सुजानमल नवीन कुमार चौधरी परिवार को मिला। मुनिराज के प्रवचनों से पूछे गये प्रश्नों के सही उत्तर देने वालों को पुरस्कृत किया गया।