सच्चे देव शास्त्र गुरु का मिलना, श्रावको का विशेष पुण्य का उदय — मुनि सुश्रुत सागर
केकड़ी 17 जुलाई (केकड़ी पत्रिका न्यूज पोर्टल)दिगम्बर जैन मुनिराज सुश्रुत सागर महाराज ने कहा कि पढ़ने से , देखने से , सुनने से, श्रद्धान करने से ज्ञान का क्षयोपशम बढ़ता है। हमें सच्चे ज्ञान को प्राप्त करने का पुरूषार्थ करना चाहिए। चंद्रप्रभु चैत्यालय में वर्षायोग के लिए विराजित मुनिराज आयोजित धर्मसभा में प्रवचन कर रहे थे उन्होंने कहा कि सच्चा ज्ञान विचारों में उत्पन्न होने वाली मलीनता ,गंदे विचारों को दूर करता है। यही मनुष्य के जीवन जीने की सुन्दरतम और श्रेष्ठ कला हैं। यही ज्ञान मन को सद्भावनाओं से भर देता है। जिससे हमारे जीवन के क्रिया कलापों में सम्यक बदलाव आता है। जीवन में मानवीय भावनाओं एवं परोपकार की भावनाएं जागृत होती है। व्यक्ति की पहचान उसके कार्य से होती है। लौकिक पढ़ाई के साथ व्यवहारिक ज्ञान भी आवश्यक है।
मुनिराज ने कहा कि सच्चे देव शास्त्र गुरु का मिलना श्रावकों का विशेष पुण्य का उदय होता है। श्रद्धावान, विवेकवान , क्रियावान श्रावक प्रातः पूजन अभिषेक स्वाध्याय से दिन की शुरुआत करता है और दोपहर एवं रात तक धार्मिक सामायिक चिंतन मनन करता हैं । देव पूजा, गुरु की उपासना, स्वाध्याय,संयम ,तप और दान इन षट् आवश्यको का नियम पूर्वक पालन करता है।
मुनिराज ने कहा कि जिनेन्द्र भगवान का अभिषेक करने से हमारी आत्मा में अनादिकाल से लगा कर्ममल धुलता है। कर्मों की जन्म जन्मांतर से पड़ी बेड़ियां खुलती हैं। उन्होंने कहा कि जो श्रावक मन,वचन,काय और सच्चे श्रद्धान द्वारा एक बार भी पांडुक शिला पर भगवान का अभिषेक करता हैं वो इतना बड़ा पुण्य अर्जित कर लेता है कि भविष्य में उसका भी पांडुकशिला पर अभिषेक होता है,वह भी अपने पुरूषार्थ द्वारा अपने आठों कर्मों को नष्ट कर देता है,और मुक्ति को प्राप्त कर लेता है।
दिगम्बर जैन समाज एवं वर्षायोग समिति के प्रचार संयोजक नरेश जैन ने बताया कि मुनिराज सुश्रुत सागर महाराज के प्रवचन से पूर्व आचार्य विधासागर महाराज एवं आचार्य सुनील सागर महाराज के चित्र अनावरण, दीप प्रज्ज्वलन एवं मुनि सुश्रुत सागर महाराज के पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य अशोक कुमार आशीष कुमार बाकलीवाल परिवार को मिला। आतिथ्य सत्कार का लाभ भी बाकलीवाल परिवार को ही मिला।