मुनि सुश्रुत सागर महाराज एवं क्षुल्लक सुकल्प सागर महाराज ससंध चातुर्मास वर्षायोग की मांगलिक स्थापना

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केकड़ी 02जुलाई (केकड़ी पत्रिका न्यूज पोर्टल) शहर के देवगांव गेट के पास विद्यासागर मार्ग पर स्थित चंद्रप्रभु चैत्यालय में अष्टान्हिका महापर्व पर आयोजित सिद्धचक महामंडल विधान के दौरान श्रद्धालुओं को धर्म का उपदेश करते हुए मुनि सुश्रुत सागर महाराज ने कहा कि जो जीव संसार के दुःखों से भयभीत हो गए और भयभीत होकर सजग हो गये, वे भगवान द्वारा बताए गए मार्ग पर सच्चे पुरूषार्थ के बल पर चलकर आठों कर्मों का क्षय करके संसार के भ्रमण से छूट गए और सिद्ध अवस्था को प्राप्त कर सिद्ध शिला पर हमेशा हमेशा के लिए विराजित हैं गये। ऐसे ही सिद्ध अवस्था को प्राप्त हुए सिद्ध भगवान की भक्ति आराधना का स्मरण मात्र भी विधिपूर्वक करने से जीवन में पवित्रता का विकास होता है।

सौम्य,शांत और तनाव रहित जीवन:मुनिराज ने कहा कि जीवन को सौम्य, शांत और तनाव रहित बनाना चाहिए। मनुष्य जीवन की जन्म और मरण की अवस्था में खाली हाथ ही रहता है। लेकिन जब तक सांस लेता है,जीता है तब तक अंतरंग और बाहरी परिग्रह को एकत्रित करने में लगा रहता है। यह परिग्रह ही उसे संसार परिभ्रमण कराता है।

जीवन में शांति की युक्ति: मुनिराज ने जीवन की शान्ति के लिए सूक्ति बताई कि ” जो है – हो है ” पर श्रद्धा भाव रखें। इससे शुभ और अशुभ कर्म के उदय से  परिणामों में होने वाले उतार चढ़ाव में समभाव रहते हैं। मुनिराज ने अत्यंत आत्मिक और भावनात्मक रूप में कहा कि हमारा / मेरा इस जगत में मेरी आत्मा के अलावा, अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। विश्व का एक कण मात्र भी मेरा नहीं है। ” इस संसार में मेरा कुछ भी नहीं है ” ऐसी भावना पर हमेशा श्रद्धा भाव रखना और अपने चिंतन में रखना चाहिए।

महामंडल विधान की महिमा: मुनि सुश्रुत सागर महाराज के मुखारविंद से बड़े ही सरल शब्दों में सिद्धचक महामंडल विधान की महिमा का कथानक श्रीपाल और मैना सुंदरी कथा का  वाचन एवं समझाया जा रहा है कि किस प्रकार धर्म और कर्म पर पर श्रद्धा भक्ति रखने वाली मैना सुन्दरी ने सिद्धचक महामंडल विधान की विशेष भक्ति  आराधना करते हुए अपने पति का पूरे शरीर में फैला हुआ कुष्ठ रोग दूर किया। कथानक  को सुनकर श्रद्धालुओं ने सिद्धचक महामंडल की महिमा के जयकारों से आयोजन स्थल विधासागर हाल  को गूंजा दिया।

सिद्धचक महामंडल में सिद्ध भगवान को चढाये श्रीफल अर्ध

मुनि सुश्रुत सागर महाराज एवं क्षुल्लक सुकल्प सागर महाराज के सानिध्य में चल रहे सिद्धचक महामंडल विधान के दौरान सातवीं पूजन में आज अर्हन्त , सिद्ध , आचार्य , उपाध्याय ,और साधु के पांच सौ बारह गुणों की पूजा आराधना करते हुए उनके जैसे ही गुण हमें भी प्राप्त  होवे, ऐसी भावना लिए मंडल विधान पर श्रीफल अर्ध समर्पित किए गए।    

जलाभिषेक: सिद्धचक महामंडल विधान से पूर्व भगवान आदिनाथ का जलाभिषेक किया गया। अभिषेक बाद विश्व में सभी प्रकार से शांति होवे, सभी जीव सुखी हो, समृद्धि को प्राप्त होवे ऐसी मंगल भावना के साथ शांतिधारा की गई। मुनि सुश्रुत सागर महाराज ने शांति धारा के मांगलिक मंत्रों का उच्चारण किया।प्रथम शांतिधारा करने का सौभाग्य मनीष कुमार आशीष कुमार टोंग्या परिवार एवं दूसरी ओर से शांतिधारा करने का सौभाग्य अंकित कुमार अर्पित कुमार अंकुर कुमार पाटनी परिवार को मिला।

पूजा और आरती: शांतिधारा पश्चात पंडित देवेन्द्र जैन के विधानाचार्यत्व में नित्य नियम के मांगलिक कार्य के साथ पूजन क्रिया, स्थापना, स्वस्ति मंगल पाठ, देव शास्त्र पूजन , चंद्रप्रभु पूजन,नंदीश्वर द्वीप पूजन, विनायक यंत्र पूजन पश्चात सिद्धचक महामंडल विधान की आराधना की।

भजनों पर थिरके श्रद्धालु : इस अवसर पर  टीकमगढ़ मध्यप्रदेश से आये संगीतकार पुष्पेन्द्र जैन के निर्देशन में पार्श्वनाथ म्यूजिकल ग्रुप द्वारा सुमधुर धुनों पर प्रस्तुत भजनों पर श्रद्धालु श्रावक श्राविकाओं ने प्रभु भक्ति में भाव विभोर हो नृत्य किया। 

महा आरती:सायंकाल जिनेन्द्र भगवान और सिद्धचक महामंडल विधान की महाआरती करने का सौभाग्य अंकित कुमार डाॅ अर्पित कुमार, अंकुर कुमार पाटनी परिवार को मिला। निवास स्थान पाटनी सदन लाभचंद मार्केट से चंद्रप्रभु चैत्यालय गाजे बाजे के साथ महाआरती का जुलुस निकाला गया। महाआरती को विशेष रूप से सजाया गया। चंद्रप्रभु चैत्यालय पहुंचकर प्रभु भक्ति में नाचते गाते हुए सिद्धचक महामंडल विधान और पेंटी आरती की। संगीतकार पुष्पेन्द्र जैन ने भजन प्रस्तुत किए। पंडित देवेन्द्र जैन द्वारा शास्त्र प्रवचन किया गया।

मुनि सुश्रुत सागर महाराज एवं क्षुल्लक सुकल्प सागर महाराज ससंध के चातुर्मास वर्षायोग की मांगलिक स्थापना

मांगलिक क्रियाएं :चंद्रप्रभु चैत्यालय में रविवार चतुर्दशी के दिन मुनि सुश्रुत सागर महाराज एवं क्षुल्लक सुकल्प सागर ससंध ने चातुर्मास स्थापना की मांगलिक धार्मिक क्रियाएं की। जैन धर्म के अनुसार वर्षाकाल में जीवों की उत्पत्ति अधिक होती है और उनका धात ना हो हिंसा नहीं होवे ऐसे ही अहिंसा के मूल सिद्धांत की रक्षा के लिए साधु साध्विकाऐं  विहार नहीं करते हैं और वे एक ही स्थान पर रूककर अपनी आत्मा के कल्याण के लिए धर्म- ध्यान और साधना करते है। अपनी आत्मा के दया, अनुकम्पा गुण का पालन करते हुए सभी को  प्रवचनादि के माध्यम से धर्मोपदेश देते हैं, धर्म प्रभावना करते हैं।मुनिराज सुश्रुत सागर महाराज ने इस बार के चातुर्मास  का एक विशेष नाम ” स्वानुभव वर्षायोग ” रखा। कहा कि वर्षायोग स्व यानि अपनी आत्मा के अनुभव का रसपान करने की प्रक्रिया है और वह मुझे लेना है।

चातुर्मास मंगल कलश स्थापना का भव्य आयोजन: आगामी नौ जुलाई को चंद्रप्रभु चैत्यालय परिसर में विविध धार्मिक कार्यक्रम आयोजित कर किया जायेगा।

गुरु पूर्णिमा पर मुनिसंध के सानिध्य में आयोजित होगे कार्यक्रम

सोमवार को गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर मुनि सुश्रुत सागर महाराज ससंध के मंगल सानिध्य में  दीक्षा गुरु आचार्य सुनील सागर महाराज की पूजन सहित विविध धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

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