जीवन में ऐसा व्यवहार करना चाहिए जिससे अपनी एवं दूसरों की आत्मिक और मानसिक शांति भंग नहीं होवे_मुनि सुश्रुत सागर

0


केकड़ी 28 जून (केकड़ी पत्रिका न्यूज पोर्टल) 
देवगांव गेट के पास विद्यासागर मार्ग पर स्थित चंद्रप्रभु चैत्यालय में अष्टान्हिका महापर्व पर श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के दौरान मुनि सुश्रुत सागर महाराज ने प्रवचन करते हुए कहा कि जीवन में ऐसा व्यवहार करना चाहिए जिससे अपनी एवं दूसरों की आत्मिक और मानसिक शांति भंग नहीं होवे।जीवन में उत्तम विचारों के साथ अच्छी संगति में ही संगत करना चाहिए। हमारे संस्कारों में संगति का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। जैसे कि किसी की संगति व्यसन करने वाले से होगी तो उसमें भी व्यसन करने के लक्षण पनप जाते हैं, सज्जन की संगति करने से सज्जनता बढ़ती ही है।

मुनि श्री ने कहा कि संसार में यह जीव अपने विभाव परिणामों के कारण परिभ्रमण कर रहा है। पूर्वोपार्जित साता वेदनीय कर्म के उदय में सुखी और असाता वेदनीय कर्म के उदय में दुखी महसूस करता है। राग द्वेष और मोह के कारण अपमान एवं सम्मान का अनुभव करता हैं। संसार में जीव की पर्याये शाश्वत नहीं है जीवन में सुख दुःख,उतार चढ़ाव आते जाते रहते हैं। व्यक्ति को पुण्य के कारण मिली बाहरी वस्तुओं में एवं अपने क्षयोपशम से मिले ज्ञान का अहंकार नहीं करना चाहिए। 

उन्होंने कहा कि यह मनुष्य पर्याय बड़े ही मुश्किल से एवं विशेष पुण्य के फलस्वरूप मिली है। इस मनुष्य पर्याय में हमें आठों कर्मों से छूटने का प्रयास करना चाहिए और आत्मा को सिद्ध बनाना है तो सिद्ध भगवान के जो परिणाम और भाव ,गुण थे उन गुणों को सच्चे मन से ध्याना पड़ेगा। ऐसे ही संस्कार हमें सिद्ध पद दिला सकते है। ऐसे सिद्ध भगवान की आराधना जब तक शरीर में सांस चल रही है तब तक पूरी जिंदगी करनी चाहिए। अरहन्त भगवान की सौम्य शांत छवि को देखकर आनंदित होना चाहिए। वीतरागी भगवान सिद्धो की आराधना अशुभ एवं पाप से बचाकर शुभ एवं पुण्य मे लाती है। सिद्ध भगवान की भक्ति से मनुष्य इस भव के साथ परभव को भी सुधार सकता है।जीवन के अमूल्य क्षणों को परोपकार, परमार्थ के कार्यों में लगाकर अपना जीवन सार्थक करना चाहिए।

मुनि सुश्रुत सागर महाराज एवं क्षुल्लक सुकल्प सागर महाराज के पावन मंगल आशीर्वाद एवं सानिध्य एवं पंडित देवेन्द्र जैन के विधानाचार्यत्व में चल रहे सिद्धचक महामंडल विधान के तीसरे दिन आज तीसरी पूजा में सिद्ध भगवान के शुद्ध चैतनत्व स्वरूप, शुद्ध ज्ञान स्वरूप के बत्तीस गुणों की पूजा में मंडल विधान पर बत्तीस श्रीफल अर्ध समर्पित किए गए। इससे पूर्व सभी मुख्य पात्र इंद्रों सहित अन्य सभी पूजनार्थियो ने भगवान आदिनाथ की प्रतिमा को पाण्डुक शिला पर विराजमान कर अभिषेक पाठ एवं अभिषेक क्रिया के मंत्रों का उच्चारण करते हुए अभिषेक किया।अभिषेक पश्चात शांतिधारा की गई। बोली द्वारा प्रथम शांतिधारा करने का सौभाग्य सुशील कुमार विभांश कुमार पाण्ड्या परिवार एवं दूसरी तरफ से शांतिधारा करने का सौभाग्य प्रेमचंद नरेन्द्र कुमार सेठी परिवार को मिला। मुनि सुश्रुत सागर महाराज ने अपनी मधुर वाणी से शांतिधारा के मंत्र उच्चारित किये। शांतिधारा के बाद श्री जिन प्रतिमा का परिमार्जन पश्चात यथा स्थान विराजित किया गया। इसी दौरान मंगलाष्टक पाठ सहित दैनिक नित्यमह देव शास्त्र गुरु पूजन भगवान आदिनाथ पूजन,विनायक यंत्र पूजन, नंदीश्वर द्वीप पूजन सहित अन्य मांगलिक क्रियाएं की। पश्चात शांतिपाठ के बाद विसर्जन किया गया। 

शाम को सात बजे गाजे बाजे के साथ जुलुस के माध्यम से अपने निवास स्थान से चंद्रप्रभु चैत्यालय महाआरती लाने एवं सिद्धचक महामंडल विधान एवं पंचपरमेष्ठी की आरती करने काे सौभाग्य मनीष कुमार आशीष कुमार टोंग्या परिवार को मिला। आरती के बाद भगवान की भजनों के माध्यम से भक्ति की गई। विधानाचार्य पंडित देवेन्द्र जैन द्वारा शास्त्र प्रचवन किया गया। टीकमगढ़ से आये संगीतकार पुष्पेन्द्र जैन द्वारा प्रस्तुत भजनों के दौरान श्रद्धालुओं ने भाव विभोर हो भक्ति नृत्य किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed

You cannot copy content of this page