चंद्रप्रभु चैत्यालय के विधासागर हाल में आयोजित सिद्धचक्र महामंडल विधान का हुआ आयोजन

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केकड़ी 27 जून (केकड़ी पत्रिका न्यूज पोर्टल) दिगम्बर जैन मुनि सुश्रुत सागर महाराज ने कहा कि जैन दर्शन में आत्मा से परमात्मा बनने की सम्पूर्ण विधा बताई जाती है। परमात्मा बनने के लिए आत्मा के गुणों का विकास किया जाता है।चार धातिकर्म क्रमशःज्ञानावरण, दर्शनावरण,मोहनीय और अंतराय एवं चार अधातिकर्म क्रमशः वेदनीय,आयु,नाम और गोत्र इन आठों कर्मों की कालिमा जब तक आत्मा पर लगी है तब तक  सिद्ध स्वरूप  की प्रतीति नहीं होती। 

मुनि महाराज देवगांव गेट के पास विद्यासागर मार्ग पर स्थित चंद्रप्रभु चैत्यालय के विधासागर हाल में आयोजित सिद्धचक्र महामंडल विधान के दौरान प्रवचन कर रहे थे उन्होंने कहा कि चार धातिकर्म में ज्ञानावरण कर्म आत्मा के ज्ञान गुण को ढकता है यानि प्रकट नहीं होने देता है, ज्ञानावरण के नष्ट होने पर अनन्तज्ञान प्रकट होता है।दर्शनावरण कर्म आत्म तत्व के दर्शन में बांधा डालता है। इसके नष्ट होने पर अनंत दर्शन प्रकट होता है। मोहनीय कर्म आत्मा में राग और मोह की उत्पत्ति कराता है। अंतराय कर्म यह कर्म   दान देने वाले व्यक्ति एवं दान प्राप्त करने वाले व्यक्ति में व्यवधान उत्पन्न करता है,दान देते समय रोक देता है। उन्होंने कहा कि इसी तरह से बाकी चार अधातिकर्म में वेदनीय कर्म यह जीव को सुख और दुःख का अनुभव कराता है। आयु कर्म  जीव को वर्तमान पर्याय में रोक कर रखता है। नामकर्म यह शरीर की तरह तरह की रचना करता है।गोत्र कर्म से जीव ऊंच एवं नीचपने को प्राप्त करता है। जीव और कर्म का अनादिकाल से सम्बंध है।इन आठ कर्मा के कारण ही  जीव संसार में अनादिकाल से परिभ्रमण कर रहा है।

उन्होंने कहा कि आठों कर्मों को नष्ट करने के पश्चात ही सिद्ध पद प्राप्त होता है और हम सभी ऐसे ही जो अनंतानंत सिद्ध हुए हैं उन सभी भगवन्तों के गुणों की अत्यंत श्रद्धा भक्ति भाव से सिद्धचक महामंडल विधान के माध्यम से आराधना कर रहे हैं।ताकि इनकी सच्ची आराधना से हमारे भावों में भी वे गुण प्रकट होवे।सच्ची प्रभु भक्ति सिद्ध पद को दिलाती है। संसार से मुक्ति दिलाती है।यही मानव जीवन की सार्थकता है।

सिद्धचक महामंडल विधान के दूसरे दिन के दौरान आज  दूसरी पूजा में सिद्ध भगवान के सोलह गुणों की पूजा स्वरूप सोलह श्रीफल अर्थ मंडल विधान पर चढाये गये। पंडित देवेन्द्र जैन के विधानाचार्यत्व में बड़े ही उत्साह भक्ति पूर्वक आगमोक्त पद्धति से विधान के सभी मांगलिक कार्य संपन्न हो रहे हैं। टीकमगढ़ मध्य प्रदेश से पधारे श्री पार्श्वनाथ म्यूजिकल ग्रुप के डायरेक्टर संगीतकार पुष्पेन्द्र जैन एण्ड पार्टी ने सिद्धचक्र महामंडल विधान के दौरान एक से बढ़कर एक कई भजनों की प्रस्तुतियां दी। श्रद्धालु श्रावक श्राविकाओं ने अतिउत्साहित होकर प्रभु की भक्ति में भाव विभोर हो नृत्य किया।

सिद्धचक महामंडल विधान पूजन से पहले जिनेन्द्र भगवान  का सभी इंद्रों ने रजत कलशों से जलाभिषेक किया। पश्चात शांतिधारा की। बोली से चयनित शांतिधारा करने का सौभाग्य मूलचंद नौरतमल टोंग्या परिवार एवं महेन्द्र कुमार संदीप कुमार जैन परिवार बिजली वालों को मिला। मुनि सुश्रुत सागर महाराज के मुखारविंद से उच्चारित शांतिधारा के मंत्रोच्चारण से अतिशय भव्यता प्राप्त हुई। शांतिधारा पश्चात पूजा पीठिका, पंचकल्याणक अर्ध,पूजा प्रतिज्ञा पाठ,चौबीसी एवं परमर्षि स्वस्ति मंगल पाठ,देव शास्त्र गुरु पूजन आदिनाथ भगवान की पूजन,अर्धावली,विनायक यंत्र पूजन, नंदीश्वर द्वीप पूजन शांतिपाठ विसर्जनादि सहित कई मांगलिक क्रियाएं की गई। 

सायंकालीन सात बजे गाजे बाजे के साथ जुलूस रूप में अपने निवास स्थान से महाआरती लाने एवं सिद्धचक्र महामंडल विधान की आरती करने का सौभाग्य महावीर प्रसाद सूरज कुमार टोंग्या परिवार ने प्राप्त किया।

सिद्धचक महामंडल विधान आरती,पंच परमेष्टी की आरती पश्चात भक्ति संगीत एवं पंडित देवेन्द्र जैन द्वारा शास्त्र प्रवचन किया गया। श्रद्धालुओं ने सभी कार्यक्रमो में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेकर धर्मलाभ ले पुण्यार्जन किया।

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