केकड़ी में ध्वजारोहण व धटयात्रा के साथ हुआ श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान का शुभारम्भ

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केकड़ी 26 जून (केकड़ी पत्रिका न्यूज पोर्टल) देवगांव गेट के पास विद्यासागर मार्ग पर स्थित चंद्रप्रभु जैन चैत्यालय में अष्टान्हिका महापर्व के मंगल पावन अवसर पर अनंतानंत सिद्ध भगवन्तों की भक्ति आराधना करने का मांगलिक प्रदायक अवसर छब्बीस जून से चार जुलाई तक होने वाले जैन धर्म के विशेष धार्मिक अनुष्ठान श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान एवं विश्व शांति महायज्ञ महोत्सव का आयोजन मुनि 108 श्री सुश्रुत सागर जी महाराज एवं क्षुल्लक 105 श्री सुकल्प सागर जी महाराज के पावन मंगल सानिध्य में पंडित देवेन्द्र जैन एवं पंडित विवेक जैन के निर्देशन में सोमवार को पूरे धार्मिक विधि विधान के साथ शुभारम्भ किया गया।

नरेश जैन प्रचार संयोजक दिगम्बर जैन समाज, केकड़ी ने बताया कि श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान प्रारंभ होने के पूर्व चंद्रप्रभु जैन चैत्यालय परिसर में कार्यक्रम की शुरुआत के लिए प्रातः साढ़े छह बजे से जिनेन्द्र देव की आज्ञा, साक्षात विराजमान परम पूज्य मुनि 108 श्री सुश्रुत सागर जी महाराज एवं क्षुल्लक 105 श्री सुकल्प सागर जी महाराज गुरु आज्ञा पश्चात मंत्रोच्चारण के साथ ध्वजारोहण किया गया। 

  उन्होंने बताया कि ध्वजारोहण करने का सौभाग्य प्रकाशचंद शिखरचंद सुभाषचंद निर्मल कटारिया परिवार को मिला। इसी दौरान चंद्रप्रभु जैन चैत्यालय परिसर से घटयात्रा यात्रा निकाली गई। महिलाएं मस्तिष्क पर मांगलिक कलश धारण कर चल रही थी। धटयात्रा कार्यक्रम स्थल से प्रारंभ होकर भगवान पारसनाथ मंदिर, लाभचंद मार्केट, सब्ज़ी मंडी, गणेश प्याऊ,धंटाधर विधासागर मार्ग होते हुए वापिस चंद्रप्रभु जैन चैत्यालय पहुंचीं।धटयात्रा पश्चात मंडप शुद्धि एवं प्रतिष्ठा, आचार्य निमंत्रण सकलीकरण, एवं बोलियों द्वारा मांगलिक कार्यों में मुख्य भूमिका निभाने के लिए पात्रो का चयन इंद्र प्रतिष्ठा के रूप में किया गया।

अरिहंत परिवार ने किया उद्घाटन बोलियों में सौधर्म इंद्र भंवरलाल अरिहंत कुमार बज परिवार, यज्ञनायक मनीष कुमार आशीष कुमार टोंग्या परिवार, धनकुबेर महावीर प्रसाद सूरज कुमार टोंग्या परिवार, ईशान इंद्र चेतन कुमार मनीष कुमार टोंग्या परिवार,सनत कुमार इंद्र विनय कुमार विनोद कुमार पाटनी परिवार, महेन्द्र इंद्र चेतन कुमार अनिल कुमार रांवका परिवार, श्रीपाल मैना सुंदरी डाॅ अर्पित एवं प्राची पाटनी परिवार, दीप प्रज्ज्वलन शीतल कुमार अनमोल कुमार कटारिया परिवार ने प्राप्त किया। महामंडल महाआरती का सौभाग्य पदम कुमार विनय कुमार कटारिया परिवार ने प्राप्त किया। भंवर लाल अरिहंत कुमार बज परिवार ने पांडाल मंडल का फीता खोलकर उद्धाटन किया।

गाजे-बजे के साथ हुआ आगमन कार्यक्रम स्थल विद्यासागर हाल में गाजे बाजे के साथ श्री जी की प्रतिमा जी का आगमन हुआ। भगवान जिनेन्द्र देव की प्रतिमा जी को रजत पांडुशिला की वेदिका पर विराजमान किया गया।और बोली से चयनित मुख्य पात्र बने इंद्रों सहित श्रद्धालुओ ने अभिषेक पाठ के मंत्रो के माध्यम से जिनेन्द्र प्रभु का अभिषेक किया। जिनेन्द्र प्रभु की प्रथम शांतिधारा करने का सौभाग्य छीतरमल दीपक कुमार बाकलीवाल परिवार एवं दूसरी तरफ से शांतिधारा करने का सौभाग्य चांदमल शीतल कुमार जैन पारा वाले परिवार को मिला विश्व में सभी तरह से मंगल ,सुख शांति समृद्धि की कामना के साथ मंत्रोच्चारण के बीच जिनेन्द्र प्रभु की शांतिधारा की गई । मुख्य पात्रों ने मंडल विधान पर मंगल कलशों की स्थापना की।

 पूजनादि क्रिया स्थापना, स्वस्ति मंगल पाठ देव शास्त्र गुरु पूजन सहित नित्यमह पूजन पश्चात श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान की प्रथम दिन की पूजा के अन्तर्गत जीव के अष्ट कर्मों के नष्ट होने से प्रकट होने वाले अष्ट गुणों की पूजा स्वरूप मंडल विधान पर आठ श्री फल अर्ध समर्पित किये गये। 

पुष्पेन्द्र एण्ड पार्टी द्वारा भजनों की प्रस्तुति:

टीकमगढ़ से आये संगीतकार पुष्पेन्द्र एण्ड पार्टी द्वारा सुमधुर धुनों पर प्रस्तुत भजनों के दौरान श्रद्धालु श्रावक श्राविकाओं ने प्रभु भक्ति में भाव विभोर हो कर नृत्य किया। सायं काल जिनेन्द्र प्रभु एवं सिद्धचक्र महामंडल विधान की महाआरती पश्चात भक्ति संगीत शास्त्र प्रवचन सहित विविध धार्मिक आयोजन आयोजित किए गए।

मुनि श्री का संबोधन : मुनि 108 श्री सुश्रुत सागर जी महाराज ने प्रवचन करते हुए कहा कि जैन धर्म में सबसे अधिक पुण्य देने वाली जिनेन्द्र प्रभु की पूजन ही है। जिनेन्द्र प्रभु की पूजन से सांसारिक जीवन में सुख समृद्धि के साथ मन मे शांति बढ़ती है। उन्होंने कहा कि जो हमारी आत्मा को पवित्र करें वह पर्व कहलाता है। महापर्व त्याग और तपस्या का महान आत्मिक पर्व है। परमात्मा के प्रति शंका रहित आराधना सद्गुणों को प्राप्त कराती है।पर्व के क्षणों में जीवन जीने का नया प्रकाश मिलता है। उन्होंने कहा कि संसारी प्राणी को जब तक आध्यात्मिक जीवन की अनुभूति नहीं होती तब तक संयम नियम पर्व उसे निर्रथक लगते हैं।

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