आजादी के प्रतीक आजाद चबूतरे के संरक्षण और सौंदर्यकरण की दरकार, जनता देख रही है भामाशाहों की तरफ

0

समय बड़ा बलवान है..… कुछ चीजो का समय के साथ बदलना आवश्यक है और कुछ चीजों पर समय और वक्त का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। बड़े संघर्ष के बाद देश को आजादी प्राप्त हुई और आजादी के संघर्ष और कहानियो को लेकर गांव_ गांव, शहर_ शहर का अपना इतिहास है और अपना अपना महत्व है। 

आजाद चौक :आजादी की कहानियों के बारे में अगर बात करें तो केकड़ी जिले के बघेरा कस्बे में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों ने संघर्ष किया और उसका सबसे बड़ा प्रतीक है बघेरा का हृदय स्थल माने जाने वाला आजाद चौक जो बिल्कुल किले के स्थित है। 

आजाद चबूतरा बघेरा:  इस आजाद चौक पर एक चबूतरा है जिस पर जिसे आजाद चबूतरा कहा जाता है,स्वतंत्रता संग्राम के समय से ही यहां तिरंगा झंडा फहराया जाता रहा है..और आज भी 15 अगस्त हो या 26 जनवरी गांव में सबसे पहले इसी आजाद चौक पर स्थित आजाद चबूतरे पर तिरंगा झंडा फहराया जाने की परंपरा रही है। 

कर्तव्य इतिश्री मात्र : आजादी के प्रतीक आजाद चबूतरे पर स्थानीय प्रशासन वर्ष में दो बार यहां पर झंडा पहरा कर अपने कर्तव्य की तीसरी कर ली जाती है न कभी इस चबूतरे के आसपास सफाई की जाती है और नहीं इसके मरम्मत पर ध्यान दिया गया है । यह चबूतरा आज अपने संरक्षण की आवश्यकता महसूस कर रहा है लेकिन स्थानीय प्रशासन ने इसकी आज तक कोई सुध नहीं ली है और मानो युवा वर्ग को तो इससे कोई लेना-देना ही नहीं।  जरा सोचिए उस गुलामी के दौर में तिरंगा झंडा फहराना कितना चुनौतीपूर्ण और संघर्ष भरा रहा होगा, हम उनकी यादों को,उनके प्रतीक को यूं ही नहीं मिटने दे सकते।

भामाशाहो से अपेक्षा और उम्मीद: जब आजादी के प्रतीक स्मारकों, इमारतो की अपेक्षा होने लगती है, स्थानीय प्रशासन उस पर कोई ध्यान नहीं देता है, तो आम जनता भामाशाहों की तरफ देखने लगती है की कोई भामाशाह भागीरथी प्रयास करेगा। आवश्यकता है तो केवल एक सकारात्मक प्रयास करने की, एक पहल करने की।

आज आवश्यकता है की कस्बे के भामाशाहो द्वारा इस आजाद चबूतरे की मरम्मत, संरक्षण और सौंदर्यकरण पर ध्यान दिया जाए ,इसकी मरम्मत के साथ-साथ इस चबूतरे पर स्टील की रेलिंग लगाई जा सकती है और तिरंगा पहराने के पॉल/पाइप जो थोड़ा लंबाई/आकार में बड़ा लगवाया जा सकता है। आजाद चौक पर जलदाय विभाग की टंकी / जलाशय को भी हटाया जा रहा है नवीन जलाशय निर्माण के पश्चात इस आजाद चबूतरे के मरम्मत, सौंदर्यकरण और संरक्षण का कार्य किया जा सकता है।

आशा और विश्वास : मुझे आशा ही नहीं पूरा विश्वास है कि इस खबर को पढ़कर कस्बे के भामाशाह जरूर आगे आएंगे और आजादी के इस प्रतीक आजाद चबूतरे के संरक्षण का प्रयास वह करेंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed

You cannot copy content of this page