बघेरा का कल्याण मंदिर अपनी दुर्दशा पर बहा रहा है आंसू ,सरक्षण के लिए सामाजिक स्तर पर पहल की आवश्यकता
राजस्थान के टोंक जिले में मालपुरा …जयपुर रोड पर डिग्गी ग्राम में कल्याण मंदिर जन-जन की आस्था का केंद्र इसे “डिग्गी कल्याण” के नाम से जाना जाता है।यहां से करीब 59 किलोमीटर टोडा केकड़ी मार्ग पर टोंक जिले और केकड़ी जिले बसे बघेरा में स्थित कल्याणं मदिर अपनी प्राचीनता, ऐतिहासिकता और मंदिर निर्माण में चित्रशैली,कांच की मीनाकारी के कारण अपनी अलग पहचान रखता है, जिसे आमजन में बघेरा कल्याण के नाम से जाना जाता है।
दुर्दशा का शिकार हो रहा है यह मंदिर: यह प्राचीन मंदिर आज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है मंदिर भवन में जगह-जगह दरारें पड़ चुकी है,छतरियां टूट चुकी है बरामदे की दुर्दशा है, बरामदे के पिलर टूटे हुए है, मंदिर की दुकानों में दुकानों के अंदर के हालात इस कदर है कि दुकानों के अंदर जाने से ही डर लगता है कि कहीं कोई हादसा ना हो जाए ,अंदर सीलन इतनी है कि बारिश के मौसम में तो यहां पर अंदर दलदल सा रूप नजर आने लगता है। आज यह मंदिर भले ही ऊपर से अच्छा खासा दिखता हो लेकिन इसका आधार, इसकी नीव जर्जर हो चुकी है खंडहर अवस्था में पहुंच चुका है यहं मंदिर जिसे देखकर लगता है कि कभी कोई बड़ा हादसा हो जाए लेकिन जिम्मेदार व्यक्ति इसकी मरम्मत किए जाने पर ध्यान नहीं दे रहे है।मंदिर की दुर्दशा का यही यही हालात रहे तो यह मंदिर शीघ्र अपना मूल स्वरूप खो देगा और बचेगी तो फिर सिर्फ और सिर्फ बातें ही कभी यहां एक कल्याण मंदिर हुआ करता था। , आखिर कौन है इसके लिए जिम्मेदार ?
सामाजिक स्तर पर हो पहल :आज प्राचीन मंदिरों को तोड़कर नये मंदिर बनाने की लोगों में होड़ लगी है इतिहास मिटाने में लोग लगे हैं तो क्या प्राचीन धरोहर का संरक्षण करने के लिए लोग आगे नहीं आ सकते? क्या इस मंदिर की मरम्मत नहीं की जा सकती है? इसके लिए कोई कार्य योजना नहीं बनाई जा सकती ? आवश्यकता है तो एक पहल करने की सकारात्मक कदम उठाने की।
बताया जाता है कि इस प्राचीन मंदिर को बनाकर राज परिवार के द्वारा दिया गया था तो क्या आज राज परिवार की इस मंदिर के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है ? क्या पुजारी वर्ग का कोई उत्तरदायित्व नहीं है ?और क्या समाज में किसी के द्वारा इसकी पहल नहीं कर सकते ? नए मंदिर बनाने के लिए लोग पहल कर सकते हैं लेकिन इतिहास की धरोहर को बचाने के लिए लोग आगे बढ़ने से क्यों कदम हटाते हैं? जरा एक पहर करके तो देखो।
कल्याण मंदिर ही उपेक्षित क्यों वराह मंदिर सरकारी प्रयास से अपने मूल स्वरूप में आ रही है ..निखार आ रहा है और धरोहर को संरक्षण मिल रहा है उसी प्रकार ब्राह्मण माता मंदिर में कमेटी के प्रयासों से जन सहयोग से अकल्पनीय विकास कार्य हो रहे हैं लेकिन पीछे रहा है तो कल्याण मंदिर जैसी धरोहर और साथ ही बघेरा का तोरण द्वार जो लगभग 11:00 सौ साल से सीना तान खड़ा तोरण द्वार अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा है।
संस्था और कमेटी का हो गठन : जन सहयोग से इस मंदिर के अस्तित्व के बचाया जा सकता है ..साथ ही सरकारी सहयोग भी इस पर प्राप्त हो सकता है लेकिन शर्त यह है कि एक संस्था का निर्माण हो जिस पर किसी का ध्यान नहीं है मंदिर कमेटी में समाज से जुड़ेेेेेे हुए प्रबुद्ध ,धर्म प्रेमियों वरिष्ठ नागरिकों किस में भागीदारी हो जो इस पर अपना अनुभव से समाज और सरकारी स्तर पर प्रयास कर सके।
यहां है कल्याण मंदिर : बघेरा कस्बे के सदर बाजार में भगवान कल्याण का एक प्राचीन मंदिर स्थित है । इस मंदिर के गर्भगृह में श्वेत संगमरमर की भगवान कृष्ण की एक सुंदर प्रतिमा विराजमान है और इस विशाल मंदिर में उत्तर दिशा की तरफ देखता मुख्य द्वार है। मंदिर के मुख्य द्वार और पश्चिम में झरोखे मंदिर की विशालता को खुद ब खुद बयां करते है। इसके अतिरिक्त मंदिर के चारो कॉर्नर पर चार विशाल और कलात्मक छतरिया हर किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर ही लेती है।
मारवाड़ी शैली में बना है मन्दिर: इस मंदिर की शैली मारवाड़ शैली थी और इसके झरोखे तथा चित्रकारी और कांच की जड़ाई मंदिर के मुख्य द्वार पर की शोभा बड़ा रही है। इसके अतिरिक्त यह मंदिर शैखावाटी की प्राचीन हवेलीयो की तर्ज पर बना हुआ है। श्वेत पाषाण की है सुंदर प्रतिमा : मंदिर में श्वेत पाषाण श्री कल्याण की प्राचीन प्रतिमा विराजमान है जिसका आकार लगभग 2.1/2 फीट लंबी और 1.1/2 फीट चौड़ी है। जिसकी बनावट और सुंदरता देखते ही बनती है ।।आज देख रेख के अभाव में इसकी चित्रकारी कांच की नकाशी अपना अस्तित्व खोती जा रही है। भाटो की पोथियों के अनुसार : बघेरा कल्याण मंदिर और राज परिवार का कोई न कोई संबंध डिग्गी के कल्याण मंदिर और राजपरिवार से जरूर ही रहा है।