देवलियां खुर्द में कलश यात्रा के साथ शुरू हुआ सात दिवसीय धार्मिक आयोजन
बघेरा 06 मई(केकड़ी पत्रिका न्यूज पोर्टल) बघेरा कस्बे के समीपवर्ती ग्राम देवलिया खुर्द में सात दिवसीय धार्मिक कार्यक्रम की शुरुआत शनिवार को भव्य कलश यात्रा के साथ शुरू हुई। कलश यात्रा की शुरुआत विद्यालय परिसर से ग्यारह सौ महिलाओं ने राजस्थानी परिधान पहनकर कलश सिर पर धारण कर गाजे-बाजे के साथ नगर परिक्रमा द्वारा ग्राम में स्थित हनुमान मंदिर पहुंचकर कलश यात्रा का समापन हुआ। इस दौरान भागवत कथा की शोभायात्रा भी निकाली गई जिस पर जगह-जगह ग्रामीणों ने पुष्प वर्षा कर स्वागत किया। शोभा यात्रा के दौरान बैंड बाजे पर नाचते गाते और थिरकते महिलाएं और भक्त चल रहे थे। आयोजनकर्ताओं ने बताया कि सात दिवसीय धार्मिक कार्यक्रम की शुरुआत 6 मई से शुरू होकर 12 मई तक चलेगी जिसमें श्रीमद्भागवत कथा एवं प्रभातफेरी का आयोजन किया जाएगा। कार्यक्रम के दौरान मंदिर में विधि विधान के साथ मूर्तियों की स्थापना भी की जाएगी। भागवत कथा के दौरान 8 मई से 10 मई तक प्रतिदिन सायंकाल संगीतमय नानी बाई को मायरो तथा 11 मई को रात्रि विशाल भजन संध्या में भजन सम्राट गायक भगवंत सुथार अपनी प्रस्तुतियां देकर भजनों का रसपान कराएंगे।
कथा स्थल पर भागवत कथा का पूजन कर कथा की शुरुआत की। गोविंद कृष्ण शास्त्री ने कथा के पहले दिन में श्रीमद्भागवत कथा, ऐसी कथा है, जो जीवन के उद्देश्य एवं दिशा को दर्शाती है। इसलिए जहां कही भी भागवत कथा होती है, इसे सुनने मात्र से वहां का संपूर्ण क्षेत्र दुष्ट प्रवृत्तियों से खत्म होकर सकारात्मक उर्जा से प्रवाहित कर देती है।
उन्होंने कहा कि कथा की सार्थकता तभी सिद्ध होती है, जब इसे हम अपने जीवन और व्यवहार में धारण करें। श्रीमद्भागवत कथा के श्रवणमात्र से ही जन्म जन्मांतर के विकार नष्ट होकर प्राणी मात्र का लौकिक व आध्यात्मिक विकास होता है। अपने उद्बोधन में श्रीमद् भागवत महात्म्य के विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस कलयुग में मनुष्य अपने भावों को सत्संग के जरिए ही स्थिर रख सकता है। सत्संग के बिना विवेक उत्पन्न नहीं हो सकता और बिना सौभाग्य के सत्संग सुलभ नहीं हो सकता श्रीमद् भागवत कथा का सात दिनों तक श्रवण करने से मनुष्य के सात जन्मों के पाप धुल जाते हैं, मनुष्य अपने जीवन में सातों दिवस को किसी ने किसी देवता की पूजा अर्चना करता है, लेकिन मानव जीवन में आठवां दिवस परिवार के लिए होता है। कथावाचक द्वारा जीवन में भजन, और भोजन में अंतर बताते हुए कहा कि भजन में कोई मात्रा नहीं होती, भजन करने से मानव का मन सीधा ही प्रभु से जुड़ जाता है।उसी प्रकार भोजन में मात्रा होती है, मनुष्य को भोजन को भजन एवं प्रसाद के रूप मेंकरने से मनुष्य के सात जन्मों के पाप धुल जाते हैं, मनुष्य अपने जीवन में सातों दिवस को किसी ने किसी देवता की पूजा अर्चना करता है, लेकिन मानव जीवन में आठवां दिवस परिवार के लिए होता है। शास्त्री ने जीवन में भजन, और भोजन में अंतर बताते हुए कहा कि भजन में कोई मात्रा नहीं होती, भजन करने से मानव का मन सीधा ही प्रभु से जुड़ जाता है।उसी प्रकार भोजन में मात्रा होती है, मनुष्य को भोजन को भजन एवं प्रसाद के रूप में ग्रहण करना चाहिए।
स्वामी जी द्वारा कथा वाचन के दौरान कहा गया कि इस कलयुग में केवल भोलेनाथ ही शीघ्र भक्ति से प्रसन्न हो जाते हैं। केवल तीन महीने भोलेनाथ की भक्ति करने से मनुष्य के सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं। प्रथम दिन की कथा के समापन से पूर्व आरती की गई. आरती करने के पश्चात उपस्थित श्रद्धालुओं में प्रसाद का वितरण किया गया।