आंसू बहा रहा हूँ अपनी हालत पर,मैं तोरण द्वार बोल रहा हूं

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कौन सुनेगा, किसको सुनाएं इसीलिए अपने दर्द पर आंसू बहा रहा हूं आएगा कोई महापुरुष उसी का इंतजार कर रहा हूं । कुछ यही पंक्तियां बघेरा के ऐतिहासिक तोरण द्वार के लिए चरितार्थ हो रही है ।ऐतिहासिक ग्राम बघेरा और आसपास के क्षेत्रों के हर खास और आम व्यक्ति, इतिहास विषय में रुचि रखने वाले इतिहासकारो, जनप्रतिनिधियो,इतिहास प्रेमी बंधुओ, और देश का भविष्य और गांव बघेरा के वर्तमान के युवाओ …

मैं बघेरा का तोरण द्वार  बोल रहा हू अपनी व्यथा सुना रहा हूँ । मैं तोरण द्वार जो करीब 1100 वर्षो से कड़ी धूप, सर्दी, गर्मी, बरसात की मार झेलता हुआ अपना अस्तित्व बनाए रखा हूं। लेकिन लोगों ने मेरा वजूद मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी न जाने कितने लोगों ने मेरे बदन पर  कुल्हड़िया चलाकर उनकी धार पेनी की न जाने कितनों ने मेरी अपेक्षा की मुझे नजरअंदाज किया ।अब मैं जर्जर हो गया हूं, मेरा बुढापा आ गया है तो छोड़ दिया है मुझे मेरे हाल पर…।

लोगो ने अपने स्वार्थों के कारण मुझे जर्जर हालत में पंहुचा दिया । आज मुझे सार- संभाल की आवश्यकता है। दुख उस वक़्त होता है जब सभी ग्रामवासियों ने, इतिहासकारों ने, जनप्रतिनिधियों, ने मुझे अनाथ छोड़कर मुझे जर्जर होने को मजबूर कर दिया।

याद कीजिए मैं बघेरा का तोरण द्वार कभी राजस्थान के  इतिहास का कभी बघेरा का गौरव रहा हूं, इतिहासकरो ने अपनी लेखनी से मुझे सहेजा..लेकिन आज मैं अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा हूं। आखिर मैं इसके लिये जिम्मेदार किसको मानु और किसको नहीं। जब राजस्थान का इतिहास पढ़ाया जाता है तो राजस्थान के इतिहास के इस हिस्से को भुला दिया जाता है। बस सरकार का काम है संरक्षण के लिए नीला बोर्ड लगाना वह लगा दिया और छोड़ दिया इससे किसी अनाथ की तरह अपनी हालत पर।

जर्जर होता मैं बघेरा का तोरण द्वार आज आपसे मार्मिक अपील करता हूं कि मेरी इस दुर्दशा पर ध्यान दो, मेरी सार संभाल लो ..मेरे इतिहास को सहेज लो…मुझे बचा लो, नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब मेरी कमर टूट जाएगी और में गिरने को मजबूर हो जाऊंगा फिर ना इतिहास बचेगा और न गांव का गौरव रहेगा । याद रखिये केवल इतिहास की कहानियो में ही  मेरा वजूद रहेगा जिसके गुणगान आप आने वाली पीढ़ियों के सामने करोगे कि कभी इस बघेरा की पावन धरती पर एक तोरण द्वार  हुआ करता था।

 आखिर में तोरण द्वार किस को जगा रहा हूं…. आखिर तुम लोग कैसे भूल गए कि आखिर मेरा (तोरण द्वार का) संबंध बघेरा की इस पवन धरती से करीब 1100 वर्षों से रहा है.. मैं भी आपका अपना हूं, आपका व मेरा इतिहास एक रहा है, आपने और हमने मिलकर इस पावन धरती पर अपने जीवन को गुजारा है आखिर कैसे मुझे आप लोग यूं भुला सकते हो ?  कैसे मेरी उपेक्षा कर सकते हो? कैसे मुझे अनाथ छोड़ सकते हो?  क्या ? आपकी मार्मिकता इतनी मर चुकी है? क्या आप इतने संवेदनहीन हो चुके हैं ? कभी पत्थरों से कभी बल्लियों से मेरा शरीर जख्मी करते हो । कभी लोग पूजा करते थे मुझे पर  आज में गंदगी में सांस लेने को मजबूर हूँ, स्वानो की शरण स्थली बन गया हूँ।

आपका और मेरा(तोरण द्वार का) संबंध कई पीढ़ियों से रहा है तो आखिर कैसे आप लोग मुझे अनाथ छोड़ कर यू  दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर कर रहे हो ? अभी भी समय है मुझे बचालो ,अपने गांव के इतिहास को बचा लो, अपने गांव के गौरव को बचा लो मेरा संरक्षण करके मेरी मरम्मत तो जरा तुम करा दो । बड़े-बड़े विशालकाय स्मारक ,मंदि,र भवन, समारोह करने के साथ-साथ मुझ (तोरण द्वार) जैसे ऐतिहासिक तोरण द्वार, मंदिर ,स्मारक, ऐतिहासिक गौरव को भुलाये जा रहे हो। इतिहास के प्रति तुम लोगों का कोई कर्तव्य नहीं है जी हमारी उपेक्षा कर रहे हो।

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अब मुझे वराह सागर के किनारे की शीतलता औऱ भगवान वराह की शरण की जरूरत है तभी मेरी आत्मा को शीतलता और सुकून मिलेगा मेरा खोया हुआ गौरव मुझे वापस मिलेगा मुझे लोगों की चोट नहीं लोगों का प्रेम और विश्वास मिलेगा।

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जर्जर हो रहे मेरी( तोरण द्वार की)हालात पर दर्द अपना सुना रहा हु .. मेरी मार्मिक अपील सुनकर अगर गांव के नागरिकों और जनप्रतिनिधियों,  युवाओं का मन भी नहीं पसीजता है तो ….आपसे किस बात की अपेक्षा करे..। चाहकर भी तुम लोग इतिहास से सम्बद्ध नही तोड़ सकेंगे। एक दूसरे पर जिम्मेदारियों का बहाना बनाकर  तुम हमे यूं न बिसरायो। यह इतिहास कभी माफ नही करेगा।

मुझे आज भी इंतजार है उस भागीरथ व  दानवीर की जो  मेरी इस दशा की सुध ले सके मेरे संरक्षण के लिए भागीरथी प्रयास कर सकते। “आ लोट के आजा मेरे हमदर्द तुझे मेरा दर्द पुकारता है,आँसू बहा रहा हूँ अपनी हालत पर मुझे बचाने आजा तुम्हे जख्मी तोरण द्वार पुकारता है।”

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