व्यक्ति को जहां से भी गुणों की प्राप्ति हो अवश्य ही ग्रहण करना चाहिए — मुनि सुश्रुत सागर
केकड़ी 20अगस्त (केकड़ी पत्रिका न्यूज पोर्टल) केकड़ी में चंद्रप्रभु चैत्यालय में वर्षायोग के लिए विराजित मुनिराज सुश्रुत सागर ने रविवार 20 अगस्त को लोगों को दिए गए अपने प्रवचनों के दौरान कहा कि जीव आत्मा के साथ लगे कर्मों के उदय के कारण नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति चारों गतियों में धूमता रहता है। कर्मों के फलस्वरूप गति मिलती है, गति से देह मिलती है, देह से स्पर्शन, रसना,ध्राण,चक्षु और कर्ण ये पांच इंद्रियां मिलती है। यह जीव इंद्रियों के विषयों से राग – द्वेष कषाय करता है। और यही राग – द्वेष संसार का कारण है, संसार बढ़ाता है , परिभ्रमण कराता है। मुनिराज ने कहा कि ज्ञान की शोभा विनय , नम्रता से ही होती है। विनयशीलता और नम्रता जीवन में ज्ञान को बढ़ाती है। ज्ञान व्यक्ति में गुणों की वृद्धि कराता है। गुण उनके पास ही मिलता है जो गुणी हो। जीवन में गुणों का विकास अवश्य ही होना चाहिए। गुण और गुणी का संबंध फूल और इसकी महक के सम्बन्ध के समान है। कोई भी पदार्थ, वस्तु उसके गुणों के आधार पर जानी जाती हैं, उसका मूल्यांकन उसी के अनुसार होता है। गुणों का शत्रु अवगुण है। बहुत सारे गुण एक अवगुण के कारण मूल्य विहीन हो जाते हैं। व्यक्ति को जहां से भी गुणों की प्राप्ति हो , अवश्य ही ग्रहण करना चाहिए। दिगम्बर जैन समाज एवं वर्षायोग समिति के प्रवक्ता नरेश जैन ने बताया कि मुनिराज के प्रवचन से पहले चित्र अनावरण, दीप प्रज्ज्वलन एवं मुनि सुश्रुत सागर महाराज के पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य प्रकाशचंद कैलाशचंद चंद्रप्रकाश बज परिवार को मिला। मुनिराज के प्रवचनों से पूछे गये प्रश्नों के सही उत्तर देने वालों को पुरस्कृत किया गया।