सुरेन्द्र दुबे…एक अविस्मरणीय व्यक्तित्व की गुलगांव से वैश्विक पहचान तक की यात्रा

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केकड़ी 04 (केकड़ी पत्रिका न्यूज़ पोर्टल) भारत को सोने की चिड़िया के साथ-साथ अगर हीरो की खान कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि भारत में ऐसे अनेकों अनेक कालजय और प्रेरणादायक व्यक्तित्व के धनी लोगो ने अपने कर्मों एवं व्यक्तित्व से इतिहास में नहीं मिटने वाले कार्यों से न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई है। ऐसे ही प्रेरणादायक,हसमुख के व्यक्तित्व  रहे हैं देश- प्रदेश के महान व्यक्ति स्वर्गीय सुरेंद्र दुबे…

राजस्थान के केकड़ी जिले की केकड़ी तहसील के छोटे से ग्राम गुलगांव में 19 जून 1959 को पिताश्री मिश्री लाल दुबे और माता श्रीमती त्रिवणी देवी के घर जन्मे ‘हास्यमेव जयते’ के उद्घोषक हास्य के सिरमौर विश्वविख्यात कवि श्री सुरेन्द्र दुबे जी 1 जनवरी 2018 को इस भौतिक संसार से विदा हो गये, किंतु उनकी अमर स्मृतियां, सदाबहार कविता, श्रेष्ठतम गीत और उन्मुक्त अट्टहास हर काव्यप्रेमी श्रोता को सदैव स्मरण में रहे है। 

वे कवि ही नही अकेले ही कवि सम्मेलन थे

अपनी जीवंत उपस्थिति और कविताओं से श्रोताओं को हँसाने, खुद गुदगुदाने और आत्मविभोर कर देने वाले कविवर सुरेन्द्र दुबे देश के अनेक नामी कवियों की प्रेरणा के पुंज रहे। काव्य के सभी रसों में निष्णात् स्व- सुरेन्द्र दुबे का आकस्मिक निधन प्रत्येक श्रोता व देश भर के साहित्य प्रेमियों के लिए, अपूर्णीय क्षति है। वे अकेले ही सम्पूर्ण कवि सम्मेलन हुआ करते थे। 

देश विदेश में हुए सम्मानित

प्रदेश के सर्वोच्च हास्य कवि पुरस्कार एवं देश-विदेश में अनेक सम्मानों से सम्मानित रहे स्व- सुरेन्द्र दुबे को राजस्थान का प्रथम अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि होने का भी गौरव प्राप्त था। अमेरिका, योरोप और खाड़ी देशों के अनेक देशों की कई बार उन्होंने काव्य यात्रा की। ‘आओ निंदा-निंदा खेलें’ और ‘कुर्सी तू बड़भागिनी’ उनकी दो प्रमुख प्रकाशित पुस्तकों के अलावा श्रेष्ठ व्यंग्य लेख भी उन्होंने लिखे। श्रीमद्भगवत गीता का श्रेष्ठ काव्यानुवाद भी उन्होंने किया जो हिन्दी साहित्य की बहुमूल्य कृति है, उनके जीवन की विशिष्ट उपलब्धि रही। कवि सम्मेलनों में अभिनव प्रयोगों के प्रेणता रहे।

संपादनकर्ता,गीतकार, कवि

श्री सुरेन्द्र दुबे ने ‘कवि सम्मेलन समाचार’ नाम से विशिष्ट पत्रिका का प्रकाशन और संपादन किया जो हिंदी कवि सम्मेलनों की, एकमात्र पत्रिका रही और कवि सम्मेलनों के इतिहास की अभूतपूर्व उपलब्धि है। उक्त पत्रिका में प्रकाशित सामग्री उनके द्वारा लिखे लेख, कवि सम्मेलनों वं काव्य जगत के लिये, चिर उपादेय बने रहेंगे। देश भक्ति में हास्य के नव प्रयोगों के साथ-साथ अपने अंतिम समय में उन्होंने संवेदनाओं से भरे अमर गीतों की रचना की। उनके द्वारा लिखे गये, विलक्षण गीत हिंदी साहित्य की ऐसी सम्पदा है जो उन्हें हिंदी गीतकारों में शीर्षस्थ स्थान पर प्रतिस्थापित करती है। 

स्मृति संस्थान की स्थापना

उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम में उन्हीं के नाम पर एक स्मृति संस्थान की स्थापना कर यह संकल्पना की गई कि सम्पूर्ण कवि एवं गीतकार रहे श्री सुरेन्द्र दुबे की स्मृतियों को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए अन्य विशिष्ट कार्यों के अलावा प्रति वर्ष उनकी स्मृति में एक लाख ग्यारह हजार एक सौ ग्यारह रुपए की राशि से देश के किसी वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार को सम्मानित किया जाएगा।

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