समाज में इस नये चलन के नाम पर हम सामाजिक मूल्यों को खो रहे हैं

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केकड़ी 23 मई (केकड़ी पत्रिका न्यूज़ पोर्टल/ आशीष गोयल) भारतीय समाज जो अपनी परंपराओं और सांस्कृतिक मूल्यों के लिए पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान रखता चला आया है लेकिन पता नहीं इस धरोहर को इन सांस्कृतिक मूल्यों को किसकी नजर लग गई है ।आज हम आधुनिकरण के नाम पर या पश्चिमीकरण के नाम पर या फिर टीवी संस्कृति का अनुसरण करने के नाम पर हम अपने परंपराओं और सांस्कृतिक मूल्यों को खोते जा रहे हैं।

हमारी परंपराओं को छोड़कर हम नवीन परंपराओं का अनुसरण करने लगे हैं चाहे वह हमारा खान-पान हो चाय हमारा रहन-सहन हो या हमारी वेशभूषा है बदलने लगी है और उसकी सबसे बड़ी कीमत चुकाई जा रही है सांस्कृतिक मूल्यों का पतन आखिर इन मूल्यों के पतन के लिए कौन जिम्मेदार है क्या कभी इस बारे में चिंतन मनन किया है या फिर इसकी आवश्यकता महसूस ही नहीं की गई। परंपरा और सांस्कृतिक मूल्यों के हनन को दिन आत जाएंगे तो शायद गिना नहीं पाएंगे समय ही नहीं बल्कि जिंदगी छोटी पड़ जाएगी।आधुनिक करण के नाम पर या टीवी संस्कृति का अनुसरण करने के नाम पर आज समाज में एक नई परंपरा स्थापित हो चुकी है जिसे भारतीय समाज के लिए हितकारी नहीं माना जा सकता शादी जोहा 16 संस्कारों में से एक संस्कार हैं लेकिन आज यह कार्यक्रमों और यह कार्यक्रमों से पूर्व की परंपराओं कार्यक्रम में संस्कार नाम की कोई चीज बची ही नहीं है तो फिर हम इसे विवाह संस्कार का नाम क्यों देते हैं जिसमें संस्कार ही नहीं हो… जी हां हम बात कर रहे हैं…. प्रीवेडिंग की..

….Pre wedding shoot के नाम पर शादी से पहले ही हनीमून कराके संस्कृति का चीरहरण करने वाले,कभी दुल्हन को कभी सुट्टा, चिलम फूंकता दिखाते हैं,कभी हाथ में शराब का गिलास पकड़ा देते हैं,कभी नीचे से लहँगा गायब कर शॉर्ट्स पहना देते हैं..!! परंतु हम इनका विरोध नहीं करते बल्कि हमारे समाज की बेटियाँ प्री-वेडिंग शूट के नाम पर इनका अनुकरण करने लगी हैं। जिनका भारतीय संस्कृति में दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है कोई संबंध नहीं है।वेस्टर्न की नकल कर हिंदू दूल्हा-दुल्हन शेंपियन की बॉटल खोल रहे हैं या मंडप पर चुँबन ले रहे हैं। बहुत आवशयक हो तो शालीन रहें इस फूहड़पन से अगली पीढ़ी क्या सीखेगी ?

सनातन संस्कृति यानी हिंदू विवाह पद्धति में दुल्हन देवी स्वरुप लक्ष्मी होती है और दूल्हा विष्णु अवतार स्वरूप में माना जाता है सेहरा पहने लड़के से चरण स्पर्श तक नहीं करवाये जाते,लेकिन रतिक्रिया की कसर छोड़ हर तरह की अश्लीलता का प्रदर्शन हो रहा है। हम हमारे संस्कारों की धज्जियां उड़ाने वाले टीवी नौटंकी, फिल्मों और फिल्मी लोगों की शादियाँ से प्रभावित हो अपने पवित्र संस्कारों को नष्ट करने पर तुले हैं। क्या यह सब कुछ भारतीय समाज के हित में है? क्या इन सब का अनुसरण करके हम हमारी संस्कृति को नष्ट नहीं कर रहे हैं? बात कड़वी है लेकिन सच है इस पर विचार मंथन होना चाहिए, इस पर सकारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है, शुरुआत में विरोध होगा लेकिन कुछ अच्छा करने के लिए, अपने देश की संस्कृति सभ्यता को बचाने के लिए यह विरोध झेलना पड़े तो झेलना होगा । आखिर यह सब कुछ अपना कर समाज हमारे बच्चों को क्या संस्कार देंगे। हम केवल पश्चिमी का अनुसरण करने के नाम पर इनको मूक स्वीकृति नहीं दे सकते । विवाह एक संस्कार हैं और संस्कार की तरह ही इसको अपनाया जाना चाहिए।

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