एडवोकेट डॉ.मनोज अहूजा ने लिखा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र

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केकड़ी,2 मई ( केकड़ी पत्रिका ) बार कौंसिल ऑफ़ राजस्थान की अनुशासन समिति के सदस्य एडवोकेट डॉ.मनोज आहूजा ने  महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू व देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी को पत्र लिखकर साइबर अपराधियों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए कठोर कानून बनाने तथा सोशल मीडिया पर सम्प्रदायिकता फैलाने वालों के खिलाफ भी कठोर कानून बनाने की मांग की है।एडवोकेट आहूजा ने बताया कि वर्तमान में हर व्यक्ति सोशल मीडिया प्लेटफार्म व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम का उपयोग करते हैं। जिससे जहां एक ओर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है वहीं दूसरी ओर ये एक ऐसा मंच भी बन चुका है जिसने हम सबको एक परिवार के सदस्य की भांति जोड़ रखा है।वसुधैव कुटुम्बकम की भावना साकार हो रही है।लेकिन इसके विपरीत इसका बुरा असर भी बहुत हो रहा है।सोसायटी में जो गंदे लोग हैं।आपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं।वो आजकल सोसायटी को छोड़कर यहां अपना चेहरे पर नकाब लगाकर बैठे हैं तथा आपराधिक कृत्य कर रहे हैं जिसकी वजह से साईबर क्राईम में भी काफी बढ़ोतरी हुई है, उक्त कृत्यों की खबरें नियमित रूप से समाचार पत्रों के माध्यम से प्रकाशित होती रहती है।कानूनी पेचिदगियों के चलते एवं एक लम्बी प्रक्रिया के फलस्वरूप काफी व्यक्ति साईबर क्राइम की प्राथमिक दर्ज नहीं करवा पाते हैं तथा वे अपने नुकसान को सहन करते हुए चुपचाप बैठ जाते हैं, जिसका मुख्य कारण यह भी है कि पुलिस विभाग के अधिकारियों को उक्त आपराधिक प्रक्रिया की कोई जानकारी नहीं होती है।इसलिए इस सम्बन्ध में पुलिस के अधिकारियों व कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाना आवश्यक है ताकि उक्त प्रकार के अपराधियों को ट्रेस कर उनके खिलाफ कार्यवाही करते हुए अपराधों पर लगाम लग सके।वर्तमान में सोशल मीडिया पर गंदगी फैलाने वालों की ताताद भी काफी बढ़ गई है,खास तौर पर जब चुनावी माहौल होता है,तब राजनीति से जुड़े हुए लोग अपने निजी स्वार्थों के खातिर एक दूसरे की धार्मिक आस्था पर टीका टिप्पणी कर माहौल को गंदा करते हुए साम्प्रदायिकता फैलाते हैं, साम्प्रदायिकता फैलाने वालों के खिलाफ कानून का शिकंजा कसना आवश्यक है,ऐसे बेलगाम घोड़ों को कठोर कानून बनाकर ही रोका जा सकता है।

हमारे देश का संविधान हमें विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।ये बहुत अच्छी बात है।देश के हर नागरिक को अपनी बात कहने की स्वतंत्रता होनी ही चाहिए।लेकिन हमें इस बात का भी ध्यान रखना होगा। जो अधिकार हमारे हैं वो ही अधिकार सामने वाले के भी हैं।अधिकारों के साथ साथ हमारे कर्तव्य हैं।हमारे संस्कार हैं हमारे नैतिक मूल्य हैं। जब तक हमारे अधिकारों में हमारे कर्तव्यों और संस्कारों को शामिल नहीं किया जाएगा ये अधिकार व्यर्थ हैं।आज जो भी कानून बने हुए हैं। उनके पीछे जो लॉजिक है,वो हमारे संस्कार ही तो हैं। हमारी परंपराएं ही तो है।उन्हीं को संकलित करके ही तो कानूनी जामा पहनाया गया है।जबसे हम लोग सोशल मीडिया पर आने लगे, उससे संबंधित अपराध होने लगे तो हमारे देश की संसद को लगा कि इस पर कानून बनना चाहिए। निसंदेह आज जो कानून हमारे ऊपर लागू है। The Information Technology Act 2000 वो सोच विचारकर विधिवेताओं से राय लेकर ही बनाया गया था लेकिन गलतियां सबसे होती है। गलत कानून भी बनते हैं।इसलिए ही हमारे संविधान में ये व्यवस्थाएं की गई है कि हमारे देश की संसद यदि कोई गलत कानून पारित कर देती है तो उसे हमारी न्यायपालिका सुधार करने के निर्देश दे सकती है।उसे असंवैधानिक घोषित कर सकती है। ऐसा ही इस अधिनियम की धारा 66 ए के संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 24 मार्च 2015 को श्रेया सिंघल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया निर्णय पारित करते हुए इस धारा को असंवैधानिक घोषित किया।इस धारा को संविधान के आर्टिकल 19 (1) (A) के विपरीत माना बहुत अच्छा जजमेंट हमारे देश की सुप्रीम कोर्ट ने हम सबको,भारत के नागरिकों को दिया।निश्चित तौर पर यदि आज ये धारा सुप्रीम कोर्ट ने नहीं हटाई होती तो शायद मैं भी अपने विचार प्रकट नहीं कर पाता,लेकिन इस जजमेंट की आड़ में लोग ये भूल गए कि देश में और भी बहुत सारे कानून हैं जो हमारे विचारों की अभिव्यक्ति पर रोक लगाते हैं।जो सही भी हैं।कोई भी स्वतंत्रता किसी का अपमान करने के लिए नहीं हो सकती।मानहानि का कानून इसी कंसेप्ट पर आधारित है। कोई भी स्वतंत्रता खुद के धर्म प्रचार से संबंधित होनी चाहिए।दूसरों के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का किसी को कोई अधिकार नहीं है । 

जरूरत है इन सब बिंदुओं पर सख्त कानून लाने की

1. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अन्य व्यक्ति के अपमान के मध्य तारतम्य होना चाहिए। 2. सोशल मीडिया पर घृणा और शत्रुता फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कानून बनना चाहिए ।

3. विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को परिभाषित किया जाना चाहिए । विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से मतलब ये नहीं होना चाहिए कि आप समाज में गंदगी फैलाओ।भाई भाई को लड़ा दो।खुद की लोकप्रियता हासिल करने की दुर्भावना रखते हुए किसी वर्ग विशेष की भावनाओं को आहत करो। झूठी अफवाहें फैलाने वालों पर कानून का मजबूत शिकंजा होना चाहिए।ये लोग समाज के मानव बम से ज्यादा खतरनाक हैं। अजमानतीय अपराध होना चाहिए | कठोर कारावास की सजा होनी चाहिए। क्योंकि ये काम ज्यादातर राजनीतिज्ञ करते हैं,अपने निजी स्वार्थों के खातिर,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोक व्यवस्था पर विपरीत प्रभाव डालने वाली नहीं होनी चाहिए। शिष्टाचार और दुराचारियों के बीच की स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए।अतःश्रीमान जी से निवेदन है कि आज इस संबंध में स्पष्ट कानून के अभाव में भारत गणराज्य की एकता और अखंडता को प्रभावित किया जा रहा है।समाज में प्रदूषण फैलाया जा रहा है।लोगों की मानसिकता को दूषित किया जा रहा है।लोगों को किसी का भी अपमान करने की खुली छूट मिली हुई है । लोग शिष्टाचार भूल चुके हैं।हर व्यक्ति खुलकर आपराधिक भाषा का प्रयोग कर रहा जो किसी भी सभ्य समाज के लिए स्वीकार्य नहीं है।इन विषयों पर गंभीर चिंतन मनन की जरूरत है। कानून बनाए जाने से पहले जमीनी स्तर के लोगों से राय लिया जाना आवश्यक है तदनुसार कानून बनाया जाना आवश्यक है।

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